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Old 07-06-2012, 09:34 PM   #1
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Default टोबा टेक सिंह :: सआदत हसन मंटो

टोबा टेक सिंह :: सआदत हसन मंटो

बँटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान की हुकूमतों को ख़्याल आया कि अख़्लाक़ी क़ैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान पागल हिंदुस्तान के पागलख़ानों में हैं, उन्हें पाकिस्तान पहुँचा दिया जाए और जो हिंदू और सिख पाकिस्तान के पागलख़ानों में हैं, उन्हें हिंदुस्तान के हवाले कर दिया जाए.
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Old 07-06-2012, 09:35 PM   #2
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Default Re: टोबा टेक सिंह :: सआदत हसन मंटो

मालूम नहीं, यह बात माक़ूल थी या ग़ैर माक़ूल, बहरहाल दानिशमंदों के फ़ैसले के मुताबिक़ इधर-उधर ऊँची सतह की कान्फ्रेंसें हुईं और बिलआख़िर पागलों के तबादले के लिए एक दिन मुक़र्रर हो गया.

अच्छी तरह छानबीन की गई- वे मुसलमान पागल जिनके लवाहिक़ीन हिंदुस्तान ही में थे, वहीं रहने दिए गए; जितने हिंदू-सिख पागल थे, सबके-सब पुलिस की हिफाज़त में बॉर्डर पह पहुंचा दिए गए.

उधर का मालूम नहीं लेकिन इधर लाहौर के पागलख़ाने में जब इस तबादले की ख़बर पहुंची तो बड़ी दिलचस्प चिमेगोइयाँ (गपशप) होने लगीं.
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Old 07-06-2012, 09:35 PM   #3
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Default Re: टोबा टेक सिंह :: सआदत हसन मंटो

एक मुसलमान पागल जो 12 बरस से, हर रोज़, बाक़ायदगी के साथ “ज़मींदार” पढ़ता था, उससे जब उसके एक दोस्त ने पूछा: “मौलबी साब, यह पाकिस्तान क्या होता है...?” तो उसने बड़े ग़ौरो-फ़िक़्र के बाद जवाब दिया: “हिंदुस्तान में एक ऐसी जगह है जहाँ उस्तरे बनते हैं...!” यह जवाब सुनकर उसका दोस्त मुतमइन हो गया.

इसी तरह एक सिख पागल ने एक दूसरे सिख पागल से पूछा: “सरदार जी, हमें हिंदुस्तान क्यों भेजा जा रहा है... हमें तो वहाँ की बोली नहीं आती...” दूसरा मुस्कराया; “मुझे तो हिंदुस्तोड़ों की बोली आती है, हिंदुस्तानी बड़े शैतानी आकड़ आकड़ फिरते हैं...”
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Old 07-06-2012, 09:35 PM   #4
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Default Re: टोबा टेक सिंह :: सआदत हसन मंटो

एक दिन, नहाते-नहाते, एक मुसलमान पागल ने “पाकिस्तान: जिंदाबाद” का नारा इस ज़ोर से बुलंद किया कि फ़र्श पर फिसलकर गिरा और बेहोश हो गया.

बाज़ पागल ऐसे भी थे जो पागल नहीं थे; उनमें अक्सरीयत (बहुतायत) ऐसे क़ातिलों की थी जिनके रिश्तेदारों ने अफ़सरों को कुछ दे दिलाकर पागलख़ाने भिजवा दिया था कि वह फाँसी के फंदे से बच जाएँ; यह पागल कुछ-कुछ समझते थे कि हिंदुस्तान क्यों तक़्सीम हुआ है और यह पाकिस्तान क्या है; लेकिन सही वाक़िआत से वह भी बेख़बर थे; अख़बारों से उन्हें कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही अनपढ़ और जाहिल थे, जिनकी गुफ़्तुगू से भी वह कोई नतीजा बरामद नहीं कर सकते थे. उनको सिर्फ़ इतना मालूम था कि एक आदमी मुहम्मद अली जिन्नाह है: जिसको क़ायदे-आज़म कहते हैं; उसने मुसलमानों के लिए एक अलहदा मुल्क बनाया है जिसका नाम पाकिस्तान है; यह कहाँ है, इसका महल्ले-वुक़ू (भौगोलिक स्थिति) क्या है, इसके मुताल्लिक़ वह कुछ नहीं जानते थे- यही वजह है कि वह सब पागल जिनका दिमाग़ पूरी तरह माऊफ़ नहीं हुआ था, इस मख़मसे में गिरफ़्तार थे कि वह पाकिस्तान में है या हिंदुस्तान में; अगर हिंदुस्तान में है तो पाकिस्तान कहाँ है; अगर पाकिस्तान में हैं तो यह कैसे हो सकता है कि वह कुछ अर्से पहले यहीं रहते हुए हिंदुस्तान में थे.
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एक पागल तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान, पाकिस्तान और हिंदुस्तान के चक्कर में कुछ ऐसा गिरफ़्तार हुआ कि और ज़्यादा पागल हो गया. झाड़ू देते-देते वह एक दिन दरख़्त पर चढ़ गया और टहने पर बैठकर दो घंटे मुसलसल तक़रीर करता रहा, जो पाकिस्तान और हिंदुस्तान के नाज़ुक मसले पर थी... सिपाहियों ने जब उसे नीचे उतरने को कहा तो वह और ऊपर चढ़ गया. जब उसे डराया-धमकाया गया तो उसने कहा: “मैं हिंदुस्तान में रहना चाहता हूं न पाकिस्तान में... मैं इस दरख़्त ही पर रहूंगा...” बड़ी देर के बाद जब उसका दौरा सर्द पड़ा तो वह नीचे उतरा और अपने हिंदू-सिख दोस्तों से गले मिलकर रोने लगा- उस ख्याल से उसका दिल भर आया था कि वह उसे छोड़कर हिंदुस्तान चले जाएँगे...
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एक एमएससी पास रेडियो इंजीनियर में, जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से बिलकुल अलग-थलग बाग़ की एक ख़ास रविश पर सारा दिन ख़ामोश टहलता रहता था, यह तब्दीली नुमूदार हुई कि उसने अपने तमाम कपड़े उतारकर दफ़ेदार के हवाले कर दिए और नंग-धड़ंग सारे बाग़ में चलना-फिरना शुरू कर दिया.

चियौट के एक मोटे मुसलमान ने, जो मुस्लिम लीग का सरगर्म कारकुन रह चुका था और दिन में 15-16 मर्तबा नहाया करता था, यकलख़्त यह आदत तर्क कर दी उसका नाम मुहम्मद अली था, चुनांचे उसने एक दिन अपने जंगल में एलान कर दिया कि वह क़ायदे-आज़म मुहम्मद अली जिन्नाह है; उसकी देखा-देखी एक सिख पागल मास्टर तारा सिंह बन गया- इससे पहले कि ख़ून-ख़राबा हो जाए, दोनों को ख़तरनाक पागल क़रार देकर अलहदा-अलहदा बंद कर दिया गया.
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