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10-01-2012, 08:04 PM | #1 |
Diligent Member
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मौलिक शायरी
दोस्तों इस सूत्र में मैं अपनी मौलिक सायरी पोस्ट कर रहा हूँ
उम्मीद है आपको पसंद आएगी दिल की तनहाइयों में हम उनको ढूंढते रहते हैं . दूर होकर भी जालिम आँखों के सामने घुमते रहते हैं सोमबीर सिंह सरोया |
10-01-2012, 08:05 PM | #2 |
Diligent Member
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Re: मौलिक सायरी
बहकी बहकी सी जो हवा चली जो
टीस सी इक दिल में उठी है , लगता है जैसी इक दीवाने की अर्थी उठी है, सोमबीर सिंह सरोया |
10-01-2012, 08:09 PM | #3 |
Diligent Member
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Re: मौलिक सायरी
सोडा व्हिस्सकी या रम भर दे .
साकी आज पमाने सारे गम भर दे |
10-01-2012, 08:32 PM | #4 |
Special Member
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Re: मौलिक सायरी
काफी अच्छा प्रयास है
जारी रखें
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
11-01-2012, 12:01 AM | #5 |
Junior Member
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Rep Power: 0 |
Re: मौलिक शायरी
कैसे अजीब लोग बस्ते हैं तेरे शहर मैं,
शोक ए मोहब्त भी रखते हैं और एतबार भी नहीं करते” अपनी आंखों के समंदर में उतर जाने दे तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे, मगर जाने दे |
11-01-2012, 04:10 PM | #6 |
Diligent Member
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Re: मौलिक शायरी
ले तो आये तो थे हम तूफानों से कश्ती निकल कर मगर
किनारों ने धोखा दे दिया , दुश्मनों में ताकत नहीं थी हमें मरने की उन्हें तो अपनों ने मौका दे दिया सोमबीर सिंह सरोया , |
11-01-2012, 04:17 PM | #7 |
Diligent Member
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Re: मौलिक शायरी
गैरों के हाथों कतल हजारों बार हुए लेकिन उसका हमें कोई दुःख नहीं
ख़ुशी इस बात की है की अपने भी मुझे बरबाद करने लगे हैं उन्ही के हाथो मौत की नींद में हम आज सो गए जिनके लिए रात दिन जगे है सोमबीर सिंह सरोया , |
11-01-2012, 06:01 PM | #8 |
Special Member
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Re: मौलिक शायरी
क्या बात हैं अति सुन्दर . जारी रखे .
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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11-01-2012, 10:46 PM | #9 |
Diligent Member
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Re: मौलिक शायरी
आँखों में आज फिर नमी सी है
जिन्दगी में कुछ कमी सी है , , धड़कन हैं रुकी रुकी सांसे भी थमी सी है ,, जिन्दगी है डरी डरी सी मौत भी सहमी सी है आँखों में आज फिर नमी सी है जिन्दगी में कुछ कमी सी है , सोमबीर सिंह सरोया |
15-01-2012, 12:48 PM | #10 |
Diligent Member
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Re: मौलिक शायरी
वो कौन सी घडी वैरी थी जब हम हुए थे जुदा यारों ,
जग भी दुसमन हो गया न अपना रहा खुदा यारो . सोमबीर सिंह सरोया |
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