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29-10-2010, 09:14 PM | #1 |
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हमारी शेर "ओ" शायरी
तुम्ही बताओ प्यार तुमसे कैसे करें
दिल के हर कोने में तुम ही तुम हो फिर दूसरा एहसास वहाँ पैदा कैसे करें कत्ले आम मचा रखा है तुम्हारे एहसास ने थोडी सी जगह खाली कर दो तो प्यार तुम से करें |
29-10-2010, 09:42 PM | #2 |
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वो पैकर-ए-बहार थे जिधर से वो गुज़र गये
ख़िज़ाँ-नसीब रास्ते भी सज गये सँवर गये ये बात होश की नहीं ये रंग बेख़ुदी का है मैं कुछ जवाब दे गया वो कुछ सवाल कर गये मेरी नज़र का ज़ौक़ भी शरीक़-ए-हुस्न हो गया वो और भी सँवर गये वो और भी निखर गये हमें तो शौक़-ए-जुस्तजू में होश ही नहीं रहा सुना है वो तो बारहा क़रीब से गुज़र गये
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30-10-2010, 10:52 AM | #4 |
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30-10-2010, 11:19 AM | #5 |
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इश्क और दोस्ती मेरी जिन्दगी का गुमान हैँ
इश्क मेरी रुह दोस्ती मेरा इमान हैँ इश्क पे कर दुँ फिदा अपनी सारी जिन्दगी मगर दोस्ती पर मेरा इश्क भी कुर्बान हैँ |
30-10-2010, 11:25 AM | #7 |
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चिट्ठी है वतन से चिट्ठी आयी है बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद .. वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है ... ऊपर मेरा नाम लिखा हैं, अंदर ये पैगाम लिखा हैं ... ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आँख में आँसू छोड़ गया तू कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं, चिट्ठी ... सूनी हो गईं शहर की गलियाँ, कांटे बन गईं बाग की कलियाँ ... कहते हैं सावन के झूले, भूल गया तू हम नहीं भूले तेरे बिन जब आई दीवाली, दीप नहीं दिल जले हैं खाली तेरे बिन जब आई होली, पिचकारी से छूटी गोली पीपल सूना पनघट सूना घर शमशान का बना नमूना... फ़सल कटी आई बैसाखी, तेरा आना रह गया बाकी, चिट्ठी ... पहले जब तू ख़त लिखता था कागज़ में चेहरा दिखता था... बंद हुआ ये मेल भी अब तो, खतम हुआ ये खेल भी अब तो डोली में जब बैठी बहना, रस्ता देख रहे थे नैना ... मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है, तेरी माँ का हाल बुरा है तेरी बीवी करती है सेवा, सूरत से लगती हैं बेवा तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा आजा उमर बहुत है छोटी, अपने घर में भी हैं रोटी, चिट्ठी ...
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22-11-2010, 11:28 AM | #8 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
क्या बात है मित्र दोस्ती पर इश्क भी कुर्बान हैँ । कहीँ ये दोस्ताना वाली दोस्ती तो नहीँ ? खैर आपकी पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीँ ।
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16-11-2010, 08:38 AM | #9 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
ग़ाफ़िल तुझे घड़ियाल ये देता है मुनादी
गरदूँ ने घड़ी उम्र की एक और घटा दी किसके लिए रुका है किसके लिए रुकेगा करना है जो भी कर ले ये वक़्त जा रहा है ... पानी का बुलबुला है इन्साँ की ज़िन्दगानी दम भर का ये फ़साना पल भर की ये कहानी हर साँस साथ अपने पैग़ाम ला रहा है करना है जो भी ... दुनिया बुरा कहे तो इल्ज़ाम ये उठा ले खुद मिट के भी किसी की तू ज़िन्दगी बचा ले दिल का चिराग़ तुझको रस्ता दिखा रहा है करना है जो भी ... काँटे जो बोये तूने तो फूल कैसे पाए तेरे गुनाह ही आख़िर हैं आज रंग लाए अब सोच में क्यूँ पगले घड़ियाँ गंवा रहा है करना है जो भी ...
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18-11-2010, 05:43 AM | #10 |
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Re: हमारी शेर "ओ" शायरी
मोहब्बत की मेरे इम्तेहां हो गई,
सारी बातें खत्म बस यहां हो गई, क्या से क्या हो गये जिनकी खातिर, बातें अब ये उनके लिये बचपना हो गयीं
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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