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26-01-2013, 04:20 PM | #1 |
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चचा साम के नाम मंटो के खत
चचा साम के नाम मंटो के खत
-सआदत हसन मंटो
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
26-01-2013, 04:22 PM | #2 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
पहला खत
चचाजान, अस्सलामुअलैकुम! यह खत आपके पाकिस्तानी भतीजे की तरफ से है, जिसे आप नहीं जानते - जिसे आपकी सात आजादियों की सल्तनत में शायद कोई भी नहीं जानता। मेरा देश हिंदुस्तान से कटकर क्यों बना? कैसे आजाद हुआ? यह तो आपको अच्छी तरह मालूम है। यही वजह है कि मैं खत लिखने की हिम्मत कर रहा हूँ, क्योंकि जिस तरह मेरा देश कट कर आजाद हुआ उसी तरह मैं कट कर आजाद हुआ और चचाजान, यह बात तो आप जैसे सब कुछ जानने वाले से छुपी हुई नहीं होनी चाहिए कि जिस पक्षी को पर काटकर आजाद किया जाएगा, उसकी आजादी कैसी होगी! खैर इस किस्से को छोड़िए। मेरा नाम सआदत हसन मंटो है और मैं एक ऐसी जगह पैदा हुआ था, जो अब हिंदुस्तान में है - मेरी माँ वहाँ दफन है, मेरा बाप वहाँ दफन है, और मेरा पहला बच्चा उस जमीन में सो रहा है लेकिन वह अब मेरा वतन नहीं - मेरा वतन अब पाकिस्तान है, जो मैंने अंग्रेजों के गुलाम होने की हैसियत में पाँच-छ: बार देखा था। मैं पहले सारे हिंदुस्तान का एक बड़ा कहानीकार था, अब पाकिस्तान का एक बड़ा कहानीकार हूँ। मेरी कहानियों के कई संकलन छप चुके हैं। लोग मुझे इज्जत की निगाहों से देखते हैं। साबुत हिंदुस्तान में मुझ पर तीन मुकदमे चले थे और यहाँ पाकिस्तान में एक, लेकिन इसे बने अभी बरस ही कितने हुए हैं। अंग्रेजों की हुकूमत भी मुझे अश्लील लेखक समझती थी, मेरी अपनी हुकूमत का भी मेरे बारे में यही खयाल है। अंग्रेजों की हुकूमत ने मुझे छोड़ दिया था, लेकिन मेरी अपनी हुकूमत मुझे छोड़ती नजर नहीं आती - निचली अदालतों ने मुझे तीन माह कैद बामशक्कत और तीन सौ रुपए जुर्माने की सजा दी थी। सेशन में अपील करने पर मैं बरी हो गया, मगर मेरी हुकूमत समझती है कि उसके साथ नाइंसाफी हुई है। इसलिए अब उसने हाईकोर्ट में अपील की है कि वह सेशन के फैसले पर दुबारा गौर करे और मुझे सही और माकूल सजा दे - देखिए, हाईकोर्ट क्या फैसला देती है।
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26-01-2013, 04:24 PM | #3 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
मेरा देश आपका देश नहीं। इसका मुझे अफसोस है - अगर हाईकोर्ट मुझे सजा दे दे तो मेरे देश में ऐसा कोई अखबार नहीं जो मेरी तसवीर छाप सके, मेरे तमाम मुकदमों की कार्रवाई की तफसील छाप सके।
मेरा देश बहुत गरीब है। उसके पास आर्ट पेपर नहीं है, उसके पास अच्छे छापेखाने नहीं हैं - उसकी गरीबी का सबसे बड़ा सुबूत मैं हूँ। आपको यकीन नहीं आएगा चचाजान कि बाईस किताबों का लेखक होने के बाद भी मेरे पास रहने के लिए मकान नहीं। और यह सुनकर तो आप हैरत में डूब जाएँगे कि मेरे पास सवारी के लिए कोई पैकार्ड है न डॉज सैकिंडहैंड मोटर-कार भी नहीं। मुझे कहीं जाना हो तो साइकिल किराए पर लेता हूँ। अखबार में अगर मेरा कोई लेख छप जाए और सात रुपए प्रति कॉलम के हिसाब से मुझे बीस-पच्चीस रुपए मिल जाएँ तो मैं ताँगे में बैठता हूँ और अपने यहाँ की बनाई हुई शराब भी पीता हूँ। यह ऐसी शराब है कि अगर आपके देश में बनाई जाए तो आप उस डिस्टलरी को एटम बम से उड़ा दें, क्योंकि एक बरस के अंदर-अंदर ही यह खानाखराब इंसान को बिल्कुल ही बर्बाद कर देती है। मैं कहाँ-से-कहाँ पहुँच गया - असल में मुझे भाईजान अर्सकाइन काल्डवैल (Erskine coldwell) को आपके जरिए से सलाम भेजना था। उनको तो खैर आप जानते ही होंगे। उनके एक उपन्यास 'गाड्ज लिटिल एकर' (God's Little Acre) पर आप मुकदमा चला चुके हैं - जुर्म वही था जो अक्सर यहाँ मेरा होता है, यानी 'अश्लीलता'।
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26-01-2013, 04:26 PM | #4 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
यकीन जानिए, चचाजान, मुझे बड़ी हैरत हुई थी, जब मैंने सुना था कि उनके उपन्यास पर सात आजादियों के मुल्क में अश्लीलता के इल्जाम में मुकदमा चला है - आपके यहाँ तो हर चीज नंगी है। आप तो हर चीज का छिलका उतारकर अल्मारियों में सजाकर रखते हैं, वह फल हो या औरत, मशीन हो या जानवर, किताब हो या कैलेंडर। आप तो नंगेपन के बादशाह हैं - मेरा खयाल था, आपके देश में पवित्रता का नाम अश्लीलता होगा मगर चचाजान, आपने यह क्या गजब किया कि भाईजान अर्सकाइन काल्डवैल पर मुकदमा चला दिया।
मैं इस गम से असरअंदाज होकर अपने देश की देसी शराब अधिक मात्रा में पीकर मर गया होता, अगर मैंने फौरन ही मुकदमे का फैसला न पढ़ लिया होता। यह मेरे देश की बदकिस्मती तो हुई कि एक इंसान खस-कम-जहाँ-पाक होने से रह गया, लेकिन फिर मैं आपको यह खत कैसे लिखता। वैसे मैं बड़ा आज्ञाकारी हूँ। मुझे अपने देश से प्यार है। मैं, इन्शाअल्लाह थोड़े ही दिनों में मर जाऊँगा। अगर खुद नहीं मरूँगा तो खु़द-ब-खुद मर जाऊँगा, क्योंकि जहाँ आटा रुपए का पौने तीन सेर मिलता हो, वहाँ बड़ा ही निर्लज्ज इंसान होगा जो जिंदगी के पारंपरिक चार दिन गुजार सके। हाँ तो मैंने मुकदमे का फैसला पढ़ा और मैंने देसी शराब अधिक मात्रा में पीकर खुदकुशी का इरादा तर्क कर दिया - भाई, चचाजान, कुछ भी हो, आपके यहाँ हर चीज पर कलई चढ़ी है लेकिन वह जज, जिसने भाईजान अर्सकाइन काल्डवैल को अश्लीलता के जुर्म से बरी किया, उसके दिमाग पर यकीनन कलई का झोल नहीं था। अगर यह जज - (अफसोस है कि मैं उनका नाम नहीं जानता) - जि़ंदा हैं तो उनको मेरा अकीदत भरा सलाम जरूर पहुँचा दीजिए। उनके फैसले की यह आखिरी पंक्तियाँ उनके दिमाग की ताकत और गहराई का पता देती हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूँ कि ऐसी किताबों को सख्ती से दबा देने से पढ़नेवालों में खामखाह जिज्ञासा और हैरत पैदा होती है जो उन्हें कामुकता की टोह लगाने की तरफ प्रोत्साहित कर देती है, हालाँकि असल किताब की यह मंशा नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस किताब में रचानाकार ने सिर्फ वही चीज चुन कर ली है जिसे वह अमरीकी जि़ंदगी के किसी विशेष वर्ग के संबंध में सच्चा समझता है। मेरी राय में सच्चाई को अदब के लिए हमेशा उचित और स्थिर रहना चाहिए।
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26-01-2013, 04:28 PM | #5 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
मैंने निचली अदालतों को यही कहा था लेकिन उसने मुझे तीन माह कैदे-बामशक्कत और तीन सौ रुपए की सजा दी - उसकी राय यह थी कि सच्चाई को अदब से हमेशा दूर रखना चाहिए - अपनी-अपनी राय है।
मैं तीन माह कैदे-बामशक्कत काटने के लिए हमेशा तैयार हूँ लेकिन यह तीन सौ रुपए का जुर्माना मुझसे अदा न हो सकेगा - चचाजान, आप नहीं जानते, मैं बहुत गरीब हूँ। मेहनत का तो मैं आदी हूँ, लेकिन रुपयों का आदी नहीं। मेरी उम्र उंतालीस बरस के करीब है और यह सारा दौर मेहनतकशी में ही गुजरा है। आप जरा गौर तो फरमाइए कि इतना बड़ा लेखक होने पर भी मेरे पास कोई पैकार्ड नहीं। मैं गरीब हूँ, इसलिए कि मेरा देश गरीब है। मुझे तो फिर दो वक्त की रोटी किसी-न-किसी हीले मिल जाती है, मगर मेरे कुछ भाई ऐसे भी हैं जिन्हें यह भी नसीब नहीं होती। मेरा देश गरीब है, जाहिल है - क्यों, यह तो आपको पूरी तरह से पता है - यह आपके और आपके भाईजान बुल के साझे साज का ऐसा तार है जिसे मैं छेड़ना नहीं चाहता, इसलिए कि आपकी सुनने की शक्ति पर भारी पड़ेगा - मैं यह खत एक खुशनसीब बेटे की हैसियत से लिख रहा हूँ, इसलिए मुझे पहले और आखिर तक खुशनसीब बेटा ही रहना चाहिए। आप जरूर पूछेंगे : "तुम्हारा देश गरीब क्योंकर है, जबकि हमारे मुल्क से इतनी पैकार्डें, इतनी ब्युकें, मैक्स फैक्टर का इतना सामान वहाँ जाता है…"
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26-01-2013, 04:30 PM | #6 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
यह सब ठीक है चचाजान, मगर मैं आपके इस सवाल का जवाब नहीं दूँगा। आप अपने सवाल का जवाब खुद अपने दिल से पूछ सकते हैं, अगर आपने अपने काबिल सर्जनों से कहकर उसे अपने पहलू से निकलवा न दिया हो।
मेरे मुल्क की वह आबादी, जौ पैकार्डों और ब्यूकों पर सवार होती है, मेरा मुल्क नहीं - मेरा मुल्क वह है, जिसमें मुझ ऐसे और मुझसे बदतर गरीब बसते हैं। यह बड़ी कड़वी बातें हैं हमारे यहाँ शक्कर कम है, वर्ना मैं इन पर चढ़ाकर आपकी सेवा में पेश करता - इसको भी छोड़िए। बात दरअसल यह है कि मैंने हाल ही में आपके मुल्क के एक साहित्यकार ऐवलिन वॉग (Evelyn Waugh) की एक रचना (The Loved Once) पढ़ी है। मैं इससे इतना प्रभावित हुआ कि आपको यह खत लिखने बैठ गया - आपके मुल्क की अनुपमता का मैं यूँ भी प्रशंसक था, मगर यह किताब पढ़कर तो मेरे मुँह से तुरंत निकला : जो बात की, खुदा की कसम, लाजवाब की वाहवा, वाहवा, वाहवा, वाहवा चचाजान वल्लाह मजा आ गया। कैसे दिलवाले लोग आपके देश में बसते हैं!
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14-06-2013, 11:18 PM | #7 |
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Re: चचा साम के नाम मंटो के खत
मुआफी चाहता हूँ अलैक जी, कि मंटो के बेबाक स्टाईल की तर्जुमानी करने वाले ये ख़त मेरी निगाह से जाने कैसे बच कर निकल गये. आज 'ग़ज़ल के साये' ढूंढ रहा था तो ये मेरे हाथ लग गये. सच पूछिए तो मंटो को पढ़ना मंटो से मिलने से कम नहीं होता. बहुत बहुत धन्यवाद.
यहां मुझे मंटो द्वारा जवाहर लाल नेहरु को भेजे एक ख़त की भी याद आती है जो उन्होंने अपनी एक किताब में बतौर भूमिका पेश किया था. Last edited by rajnish manga; 14-06-2013 at 11:21 PM. |
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