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18-02-2015, 07:29 PM | #1 |
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गधा माँगे इन्साफ़
एक कहानी के लिए केन्द्रीय विचार (Central Idea) पौराणिक कथाओं (Mythology) से भी लिया जा सकता है। जैसे लगभग हर पशु-पक्षी किसी न किसी देवी या देवता का वाहन (Vehicle) है। बहुत कम लोगों को पता है कि देवर्षि (Sant of God) नारद का वाहन धेंकी है। चौंकिये मत। धेंकी किसी जीव-जन्तु या पशु-पक्षी का नाम नहीं है। धेंकी पैर से चलाए जाने वाले मूसल का नाम है जिससे धान कूटा जाता है। इस बात पर ग़ौर से विचार कीजिए और कल्पना कीजिए कि यही नारद का ग़म है। ऐसा क्यों? सभी देवी-देवता को वाहन के रूप में जीवित पशु-पक्षी और नारद के लिए एक निर्जीव वस्तु! चलिए, इस नए केन्द्रीय विचार पर आधारित एक व्यंग्यात्मक कहानी पढि़ए- ’गधा माँगे इन्साफ़’-
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18-02-2015, 07:31 PM | #2 |
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Re: गधा माँगे इन्साफ़
हमेशा की तरह देवराज इन्द्र के दरबार में सुन्दर-सुन्दर अप्सराओं के साथ देवलोक की प्रमुख नर्तकियाँ रम्भा, मेनका, ऊर्वशी और तिलोत्तमा नृत्य कर रहीं थीं। आज देवराज इन्द्र का चार सौ बीस करोड़वाँ जन्मदिन होने के कारण सभी देवी-देवता पधारे हुए थे जिसके कारण इन्द्र दरबार खचाखच भरा हुआ था। सभी देवी-देवता देवलोक में विशेष रूप से बनाए गए सुरा का पान करते हुए नशे में झूमते हुए नृत्य का आनन्द ले रहे थे। मुख्य अतिथि के रूप में भगवान विष्णु चीफ़-गेस्ट के सिंहासन पर बैठे हुए सुरापान के साथ अप्सराओं के नृत्य का आनन्द ले रहे थे और जब उन्हें किसी अप्सरा के ठुमके बहुत पसन्द आते तो ज़ोर से ’वाह-वाह’ करते हुए दोनों हाथों से सोने की मुद्राएं लुटाने लगते। सभी देवी-देवताओं में सबसे अमीर माने जाने वाले देवता भी वही थे। धन की देवी लक्ष्मी जी खुद उनकी पत्नी जो थीं। लक्ष्मी जी संसार को धन बाँटने के कार्य में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण नहीं आईं थीं। जब भगवान विष्णु नशे में धुत होकर बिना समझे-बूझे सोने की मुद्राएं अप्सराओं पर अपने चारों हाथों से लुटाने लगे तो लक्ष्मी जी से रहा न गया और वे देव दरबार में अपने वाहन उल्लू के साथ आ गईं। देव दरबार में आते ही लक्ष्मी ने ककर्श स्वर में विष्णु से कहा- ’अपनी बीबी की गाढ़ी कमाई का पैसा चारों हाथों से कलमुँही अप्सराओं पर लुटाते शर्म नहीं आती, विष्णु? चार पैसा कभी कमाया नहीं। जि़न्दगी भर पापियों को दण्ड देने के नाम पर धरती पर जन्म लेते रहे।’
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18-02-2015, 07:32 PM | #3 |
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Re: गधा माँगे इन्साफ़
लक्ष्मी को देखते ही विष्णु का सारा नशा हिरन हो गया। सकपका कर बोले- ’देवी, क्रोध मत करो। शान्त हो जाओ। यह मत भूलो- धरतीलोक के मन्दिरों में सबसे ज़्यादा कलैक्शन मेरे तिरुपति के मन्दिर में होता है।’
लक्ष्मी ने क्रोधपूर्ण स्वर में कहा- ’तो क्या हुआ? तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई- बिना मुझसे पूछे तिरुपति के मन्दिर की कमाई इस तरह आँख बन्द करके अप्सराओं पर लुटाओ?’
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18-02-2015, 07:33 PM | #4 |
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Re: गधा माँगे इन्साफ़
विष्णु ने सकपकाकर कहा- ’यह.. यह तिरुपति की कमाई नहीं है, देवी। तुम मुझे जेबखर्च के लिए रोज़ाना जो करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं देती हो, उसी को लुटा रहा हूँ।’
लक्ष्मी ने क्रोधपूर्वक कहा- ’जेबखर्च के लिए स्वर्ण मुद्राएं इसलिए नहीं देती कि तुम दारू पीकर अय्याशी करो और अप्सराओं पर आँख बन्द करके लुटाओ। मेरी तो छाती फटी जा रही है। तुमसे ये नहीं होता कि मेरी बहन सरस्वती के लिए कोई योग्य देव वर ढूँढकर लाओ। बेचारी कब से ब्रह्मा से नाराज़ होकर अलग रह रही है। तुम्हें ज़रा भी चिन्ता नहीं अपनी साली की। बेचारी कब तक सिंगल रहेगी?’
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18-02-2015, 07:34 PM | #5 |
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Re: गधा माँगे इन्साफ़
विष्णु ने भड़ककर कहा- ’अब मैं तुम्हारी बहन को मिंगल करने के लिए क्षीरसागर छोड़कर देवलोक में कहाँ मारा-मारा फिरूँ? और फिर लगभग सभी देवता किसी न किसी के साथ रिलेशनशिप में हैं। लव-मैरिज का ज़माना है, मगर एक तुम्हारी बहन है, किसी देवता को घास ही नहीं डालती।’
लक्ष्मी ने भी भड़ककर तेज़ आवाज़ में कहा- ’मेरी बहन भोली-भाली है। किसी को घास नहीं डालेगी। शर्माती है।’
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18-02-2015, 07:37 PM | #6 |
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Re: गधा माँगे इन्साफ़
विष्णु ने क्रोधपूर्वक कहा- ’शर्माएगी तो सिंगल रह जाएगी। यह शर्माने का जमाना नहीं है। समझाओ अपनी नादान बहन को।’
लक्ष्मी ने भड़ककर क्रोधपूर्वक कहा- ’अपनी भोली-भाली नादान बहन को घास डालना सिखाऊँ? तुम्हारी खोपड़ी में गोबर भरा है, विष्णु। होश में आओ। नहीं जेबखर्च बन्द कर दूँगी। देवलोक में सुरा पीकर क्षीरसागर में शेषनाग पर चैन से खर्राटे लेकर सोने की सारी मस्ती निकल जाएगी।’
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