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Old 23-12-2012, 08:42 PM   #1
jitendragarg
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Default सामूहिक बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन

क्या हम समाज की गलतियों के लिए सरकार को दोषी करार दे रहे है? क्या ऐसे विरोध प्रदर्शन से हमारे देश का कुछ भला होगा?
इस विरोध प्रदर्शन में देश की राजनेतिक पार्टियाँ क्यूँ शामिल हुई है?
क्या ये सब सिर्फ वोट की राजनीती है?

आइये इन सब बातों पर चर्चा करे!
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Old 23-12-2012, 09:10 PM   #2
Dark Saint Alaick
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ विरोध - क्या यह आ

बिलकुल ... समाज के बर्बर चेहरे के लिए देश का नेतृत्व ही जिम्मेदार है। आखिर देश को दिशा देने की जिम्मेदारी किसकी है, जब क़ानून बनाने का परचम लहरा रहे लोगों में ही ऐसे लोग बैठे हों, जिनके दामन पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के दाग मौजूद हैं, तब आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि यह नेतृत्व देश के समाज को कोई बेहतर बनाने और ऐसे अपराधों के लिए कठोर क़ानून बनाएगा।
नहीं ... राजनीतिक पार्टियां इसमें कहीं नहीं थीं, यह युवा वर्ग का स्वाभाविक गुस्सा है। क्या आपने महसूस किया कि ज़रा-ज़रा सी बात पर घंटों बकवास करने वाले अनेक नेता घरों में छुपे बैठे हैं। भाजपा और कुछ वामपंथी नेताओं के अलावा इस मुद्दे पर उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर पहले दिन ही सभी दलों ने प्रकरण की सामूहिक निंदा की होती और प्रदर्शनकारियों से एकजुटता दिखाई होती, तो संभवतः इतनी गंभीर स्थिति नहीं होती। कुछ दलों की महिला इकाइयां आज सक्रिय हुईं और प्रदर्शन को उग्र करने के लिए वही जिम्मेदार हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि आपका यह गुस्सा अब तक कहां छुपा था। ... और सबसे बड़ी मूर्खताएं दिल्ली पुलिस ने की हैं, बाबा रामदेव के प्रकरण में तो उसके अफसर बच गए थे, लेकिन इस बार की बर्बरता पर कोर्ट कठोर रुख अख्तियार करेगा, ऐसा मेरा मानना है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 23-12-2012, 09:19 PM   #3
jitendragarg
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ विरोध - क्या यह आ

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Originally Posted by Dark Saint Alaick View Post
बिलकुल ... समाज के बर्बर चेहरे के लिए देश का नेतृत्व ही जिम्मेदार है। आखिर देश को दिशा देने की जिम्मेदारी किसकी है, जब क़ानून बनाने का परचम लहरा रहे लोगों में ही ऐसे लोग बैठे हों, जिनके दामन पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के दाग मौजूद हैं, तब आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि यह नेतृत्व देश के समाज को कोई बेहतर बनाने और ऐसे अपराधों के लिए कठोर क़ानून बनाएगा।
नहीं ... राजनीतिक पार्टियां इसमें कहीं नहीं थीं, यह युवा वर्ग का स्वाभाविक गुस्सा है। क्या आपने महसूस किया कि ज़रा-ज़रा सी बात पर घंटों बकवास करने वाले अनेक नेता घरों में छुपे बैठे हैं। भाजपा और कुछ वामपंथी नेताओं के अलावा इस मुद्दे पर उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर पहले दिन ही सभी दलों ने प्रकरण की सामूहिक निंदा की होती और प्रदर्शनकारियों से एकजुटता दिखाई होती, तो संभवतः इतनी गंभीर स्थिति नहीं होती। कुछ दलों की महिला इकाइयां आज सक्रिय हुईं और प्रदर्शन को उग्र करने के लिए वही जिम्मेदार हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि आपका यह गुस्सा अब तक कहां छुपा था। ... और सबसे बड़ी मूर्खताएं दिल्ली पुलिस ने की हैं, बाबा रामदेव के प्रकरण में तो उसके अफसर बच गए थे, लेकिन इस बार की बर्बरता पर कोर्ट कठोर रुख अख्तियार करेगा, ऐसा मेरा मानना है।
lekin kya jo harkat ki gayi thi, usko police taal sakti thi? haan, kuch bachaav kar sakti thi, agar unhone ye samay par dhyaan diya hota. lekin, apraadh ko shuru hone se pehle rokna sambhav tha? phir hum logo se jyada police par kyu gussa dikha rahe hai?

aapko nahi lagta, ki humare desh ki maansikta ghatiya aur neech kism ki hai. mana, police unhe bacha sakti thi, par yahi kaam sadak chalte log bhi kar sakte the. phir akeli sarkar doshi kyun? aapke hisaab se sarkar ko kya niyam banana the, jo ye sab rok sakte?

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Old 23-12-2012, 10:42 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ विरोध - क्या यह आ

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Originally Posted by jitendragarg View Post
lekin kya jo harkat ki gayi thi, usko police taal sakti thi? Haan, kuch bachaav kar sakti thi, agar unhone ye samay par dhyaan diya hota. Lekin, apraadh ko shuru hone se pehle rokna sambhav tha? Phir hum logo se jyada police par kyu gussa dikha rahe hai?

Aapko nahi lagta, ki humare desh ki maansikta ghatiya aur neech kism ki hai. Mana, police unhe bacha sakti thi, par yahi kaam sadak chalte log bhi kar sakte the. Phir akeli sarkar doshi kyun? Aapke hisaab se sarkar ko kya niyam banana the, jo ye sab rok sakte?

सैद्धांतिक रूप से देखा जाये तो इस घटना को रोका जा सकता था बशर्ते दिल्ली पुलिस अपनी अकर्मण्यता की तख्ती अपराधियों को बार बार न दिखा रही होती. एक वर्ष में ६०० के लगभग रेप केस दर्ज किये जाते हैं, जिनमे से कुछ घटनाएं तो चलती कारों और बसों में पेश आयीं, इसका सबसे बड़ा कारण है रात के समय सड़कों पर और अपराध बहुल क्षेत्रों में पुलिस की न के बराबर मौजूदगी. यही हाल पी.सी.आर. गाड़ियों का भी है. यह देखा गया है कि रात की ड्यूटी वाले पुलिस कर्मी अपनी दवा दारू के इंतजाम में ही लगे रहते हैं. और दूसरे, आला अफसरों द्वारा अकस्मात् जाँच और छापों की कमी के चलते कर्मचारी कर्तव्य के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. जब हमारी क़ानून और व्यवस्था संभालने वाले लोग अपराधियों को सीधे सीधे न्योता देते हैं कि आओ भैय्या तुम्हारे जो जी में आये करो, बेखटके तो अपराध क्यों नहीं बढ़ेंगे? अपराधी जानता है उसे रोकने वाला कोई नहीं है. उसे कोई डर नहीं है. पुलिस कि छवि बुरी तरह नकारात्मक है. अब अनुशासन बनाए रखना तो सरकार का काम है. निगरानी बनाए रखना तो सरकार का काम है. यदि नहीं तो सरकार की फिर ज़रुरत क्या है? क्या आम जनता राम भरोसे बैठी रहे? उसके जानो माल और आबरू की क्या गारंटी है? हाँ, और भी पहलू हैं इस भयंकर नासूर के, लेकिन सबसे बड़ा कारण वाही है जो ऊपर लिखा गया है और जिसके बारे में सेंट अलैक जी ने भी विस्तार से बताया है. एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि शुरू से ही यह आन्दोलन अन्यान्य कॉलेजों के छात्रों और छात्राओं द्वारा चलाया जा रहा था. जैसा कि हमारी राजनैतिक पार्टियों का स्वभाव है, वे काफी देर तक हर समस्या को देखते रहते हैं फिर अपने हितों को देखते हुए प्रतिक्रिया देते हैं.

Last edited by rajnish manga; 23-12-2012 at 10:45 PM.
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Old 24-12-2012, 12:21 AM   #5
jitendragarg
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ विरोध - क्या यह आ

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Originally Posted by rajnish manga View Post
सैद्धांतिक रूप से देखा जाये तो इस घटना को रोका जा सकता था बशर्ते दिल्ली पुलिस अपनी अकर्मण्यता की तख्ती अपराधियों को बार बार न दिखा रही होती. एक वर्ष में ६०० के लगभग रेप केस दर्ज किये जाते हैं, जिनमे से कुछ घटनाएं तो चलती कारों और बसों में पेश आयीं, इसका सबसे बड़ा कारण है रात के समय सड़कों पर और अपराध बहुल क्षेत्रों में पुलिस की न के बराबर मौजूदगी. यही हाल पी.सी.आर. गाड़ियों का भी है. यह देखा गया है कि रात की ड्यूटी वाले पुलिस कर्मी अपनी दवा दारू के इंतजाम में ही लगे रहते हैं. और दूसरे, आला अफसरों द्वारा अकस्मात् जाँच और छापों की कमी के चलते कर्मचारी कर्तव्य के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. जब हमारी क़ानून और व्यवस्था संभालने वाले लोग अपराधियों को सीधे सीधे न्योता देते हैं कि आओ भैय्या तुम्हारे जो जी में आये करो, बेखटके तो अपराध क्यों नहीं बढ़ेंगे? अपराधी जानता है उसे रोकने वाला कोई नहीं है. उसे कोई डर नहीं है. पुलिस कि छवि बुरी तरह नकारात्मक है. अब अनुशासन बनाए रखना तो सरकार का काम है. निगरानी बनाए रखना तो सरकार का काम है. यदि नहीं तो सरकार की फिर ज़रुरत क्या है? क्या आम जनता राम भरोसे बैठी रहे? उसके जानो माल और आबरू की क्या गारंटी है? हाँ, और भी पहलू हैं इस भयंकर नासूर के, लेकिन सबसे बड़ा कारण वाही है जो ऊपर लिखा गया है और जिसके बारे में सेंट अलैक जी ने भी विस्तार से बताया है. एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि शुरू से ही यह आन्दोलन अन्यान्य कॉलेजों के छात्रों और छात्राओं द्वारा चलाया जा रहा था. जैसा कि हमारी राजनैतिक पार्टियों का स्वभाव है, वे काफी देर तक हर समस्या को देखते रहते हैं फिर अपने हितों को देखते हुए प्रतिक्रिया देते हैं.
aap ye bataiye, ki kya badlaav karne se ye rukega? 5000rs. mahine kamane wala police ka aadmi, 100rs nahi to 500rs. me to manega. phir, koi 10hazaar kharcha karke bus me change kyun kare, jabki 500rs. policemen ko dene se kaam banta hai. policemen ko corruption ki jyoti dikhane se accha, wo diya hum apne ghar me bhi to jala sakte hai. kisne kaha hai, ki sadak par bina helmet chalo, aur policemen ko 100rs. jurmana do. kisne kaha hai, ki sadak kharab hone par sarkar ko koso, aur jab ghar ka gatar band ho, to khud gadda khodo.

kya har baat ghum kar iss par nahi aati, ki log ki soch ghatiya hai. phir pradarshan kyun? sarkar rokne ko sab kuch rok sakti hai, par kya aap hitler ya british raaj ke niyam maanenge? kya aap US jaise niyam bhi yahan manenge? jab nahi, to phir pradarshan kyun?
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Old 25-12-2012, 03:05 PM   #6
aksh
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
बिलकुल ... समाज के बर्बर चेहरे के लिए देश का नेतृत्व ही जिम्मेदार है। आखिर देश को दिशा देने की जिम्मेदारी किसकी है, जब क़ानून बनाने का परचम लहरा रहे लोगों में ही ऐसे लोग बैठे हों, जिनके दामन पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के दाग मौजूद हैं, तब आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि यह नेतृत्व देश के समाज को कोई बेहतर बनाने और ऐसे अपराधों के लिए कठोर क़ानून बनाएगा।
नहीं ... राजनीतिक पार्टियां इसमें कहीं नहीं थीं, यह युवा वर्ग का स्वाभाविक गुस्सा है। क्या आपने महसूस किया कि ज़रा-ज़रा सी बात पर घंटों बकवास करने वाले अनेक नेता घरों में छुपे बैठे हैं। भाजपा और कुछ वामपंथी नेताओं के अलावा इस मुद्दे पर उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। अगर पहले दिन ही सभी दलों ने प्रकरण की सामूहिक निंदा की होती और प्रदर्शनकारियों से एकजुटता दिखाई होती, तो संभवतः इतनी गंभीर स्थिति नहीं होती। कुछ दलों की महिला इकाइयां आज सक्रिय हुईं और प्रदर्शन को उग्र करने के लिए वही जिम्मेदार हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि आपका यह गुस्सा अब तक कहां छुपा था। ... और सबसे बड़ी मूर्खताएं दिल्ली पुलिस ने की हैं, बाबा रामदेव के प्रकरण में तो उसके अफसर बच गए थे, लेकिन इस बार की बर्बरता पर कोर्ट कठोर रुख अख्तियार करेगा, ऐसा मेरा मानना है।
लगता है कि हम फिर से आदम युग की ओर लौट रहे है...?? उस सिपाही की चिंता किसी को भी नही है जो इस प्रदर्शन की भेंट चढ गया...!! मेरी नजर मै हिंसक प्रदर्शन के लिये एक सभ्य समाज मै कोइ जगह नही है...!!

क्या होता तो क्या हो जाता ये तो भगवान भी नही बता सकते है....फिर कोइ और कैसे प्रदर्शन कारियो के इस कदम को उचित ठहरा सकता है...??

अगर ऐसा ही चलता रहेगा तो वो दिन दूर नही जब आपका मरीज इस लिये मर जायेगा क्योंकि साथ वाले कमरे मै एक मरीज डोक्टर की लापरवाही की वजह से मर गया था और उसके परिजनो ने पूरे अस्पताल को आग लगा दी थी...!!

पीडित लड्की के साथ मै भी खडा हू...और चाहता हू कि उसे जल्द से जल्द इंसाफ मिले..और दोषी व्यक्तियो को कडी से क़डी सजा मिले...पर इसका मतलब ये नही होना चाहिये कि एक पुलिस के सिपाही के परिवार की पीडा को वढा दिया जाये...?? उसकी जिन्दगी उससे छीन ली जाये...?? इस केस के बहाने राजनीतिक रोटिया सेकी जा रही है...जो कि उचित नही है...
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Old 23-12-2012, 10:12 PM   #7
Dark Saint Alaick
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन

आपने ध्यान नहीं दिया जितेंद्रजी। कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद बस पर काले शीशे और परदे लगे थे और उस स्थान या कहें रूट पर तैनात पुलिसकर्मी नदारद थे, जिस पर कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है और जिम्मेदार अफसरों की पूरी सूची मांगी है। अगर यह कदम समय रहते उठाए गए होते, तो अपराधी यह दुष्कृत्य क्या इतनी निर्भयता से कर पाते। आपने अगर खबरों पर ध्यान दिया हो, तो सूचनाएं हैं कि दिल्ली के स्कूलों की बसों तक में अनेक नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और दिल्ली पुलिस आंख मूंदे हुए है। क्या ऎसी ही किसी घटना के इंतज़ार में?
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Old 23-12-2012, 10:26 PM   #8
jai_bhardwaj
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन

ऐसे लज्जाजनक और पशुवत आचरण के लिए प्रत्यक्ष रूप से दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कठोरतम न्यायिक कार्यवाही तो होनी ही चाहिए और साथ ही साथ परोक्ष रूप से दोषी अधिकारियों और व्यक्तियों के विरुद्ध भी उचित और कठोर कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए। जब तक अपराधियों के मन क़ानून का डर (आदर शब्द कहना उचित नहीं होगा) नहीं होगा तब तक ऐसे दुराचरण होते ही रहेंगे। आर्थिक और दैहिक लिप्सा के कारण समाज में निरंतर हो रहे नैतिक पतन की यह घटना बानगी मात्र है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
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Old 23-12-2012, 11:38 PM   #9
sombirnaamdev
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन

balatkar vastav me hamari kutsit mansikta ka ek prinaam bhar hain jise sirf naari ke prati apni badal kar hi tala ja sakta hai /

kyunki har maa har bahan ya beti ke sath police ki tainati sanbhav nhi .

basharte ki sabhi log naari poojaniye samjhkar uski izzat ki jaye naa ki bhog vilaash ka samaan bhar samjha jaye
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Old 24-12-2012, 12:15 AM   #10
jitendragarg
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Default Re: सामूहिक बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन

sahi kaha, sombir bhai! aur aise me hum sarkaar ko kyu kos rahe hai. pehle apni mansikta ko badalna chahiye.

jahan tak kale seeshe wagerah niyam hai. wo banaye gaye ki log unka paalan kare. par log to 100rs. do aur chutti pao, soch kar niyam todte rehte. aise me hum sarkar ko kyun doshi maan rahe hai? agar hum niyam tode, to uska jurmana kya hai? kya sarkaar hitler jaise ban jaye, aur logon ko ek dusre se milne bhi na de. agar ek ladki college ja rahi hai, aur aisi harkat college ke student karte hai, to kya hum college hi band karwa denge?

aur chalo, agar sarkaar ki galti maani bhi jaye, to pradarshan karne se kya hoga? kya bus todne se, paththar phenkne se, ya facebook par status post karne se, sarkar humari sun legi? kya lokpal ke waqt un logo ne pradarshan karne walo ki baat suni thi? kya koi bhi vyakti apne khilaaf ho rahe pradarshan ko badhawa dega? phir hum pradarshan karke, kya jataana chahte hai?
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