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![]() ੴसति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि॥ Last edited by Dark Saint Alaick; 10-04-2013 at 11:05 AM. |
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आदि सचु जुगादि सचु॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु॥१॥
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#3 |
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सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥ भुखिआ भुख
न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥ सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥ किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥ हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥ |
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आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥
हुकमी होवनिआकार हुकमु न कहिआ जाई ॥ हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥ हुकमी उतमु नीचुहुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥ इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥ हुकमैअंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥ नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥ |
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गावै कोताणु होवै किसै ताणु ॥
गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥ गावै को गुण वडिआईआ चार ॥ गावै कोविदिआ विखमु वीचारु ॥ गावै को साजि करे तनु खेह ॥ गावै को जीअ लै फिरि देह ॥ गावैको जापै दिसै दूरि ॥ गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥ कथना कथी न आवै तोटि ॥ कथि कथि कथीकोटी कोटि कोटि ॥ देदा दे लैदे थकि पाहि ॥ जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥ हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥ नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥ |
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#6 |
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साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥
आखहि मंगहिदेहि देहि दाति करे दातारु ॥ फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥ मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥ अमृत वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥ करमी आवै कपड़ा नदरीमोखु दुआरु ॥ नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥ |
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#7 |
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थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ ॥ जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥ नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥ गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥ दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥ गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदंगुरमुखि रहिआ समाई ॥ गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥ जे हउ जाणा आखानाही कहणा कथनु न जाई ॥ गुरा इक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरिन जाई ॥५॥ |
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#8 |
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तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखाविणु करमा कि मिलै लई ॥ मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥ गुराइक देहि बुझाई ॥ सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥ |
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#9 |
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जे जुग चारे आरजा होरदसूणी होइ ॥
नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥ चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगिलेइ ॥ जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥ कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥ नानकनिरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥ तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥ |
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#10 |
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सुणिऐसिध पीर सुरि नाथ ॥
सुणिऐ धरति धवल आकास ॥ सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥ सुणिऐ पोहि न सकैकालु ॥ नानक भगता सदा विगासु ॥ सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥ |
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