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04-01-2020, 11:15 AM | #1 |
Diligent Member
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ग़ज़ल- हे जनता के सेवक...
ग़ज़ल- हे जनता के सेवक...
■■■■■■■■■■■■ हे जनता के सेवक मेरी बात सुनो भूखे-प्यासे कट जाती है रात सुनो रोजी-रोटी ढूँढ रहे हम शहरों में पाते हैं लेकिन केवल आघात सुनो जब भी बटुआ खाली होता है अपना महँगाई की है मिलती सौग़ात सुनो सोने की कुर्सी मिट्टी हो जायेगी बिन बादल करने वालों बरसात सुनो तुम सत्ताधीशों की जनता है मालिक जनता को मत दिखलाना औकात सुनो "आकाश" नहीं सत्ता के मद में आ जाना वरना पल में खा जाओगे मात सुनो ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 03/01/2020 ■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो. न.- 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 04-01-2020 at 08:54 PM. |
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