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Old 05-10-2018, 11:53 PM   #1
rajnish manga
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Default महाभारत के पात्र: कर्ण

महाभारत के पात्र: कर्ण



मंद शीतल वायु मेरे शरीर और आत्मा को ठंडक और सुख प्रदान कर रही है। साथ ही माँ के हांथों का स्पर्श और अश्रु जल भी मेरी आत्मा को शीतल कर रही है। इस के लिए पूरी जिंदगी अपने को जलता रहा था।

माँ के इस स्पर्श के लिए ना जाने कब से तरस रहा था। मैंने उसे वचन दिया था, उसके पाँच पुत्र जीवित रहेंगे। वचन पूरा करने का संतोष मुस्कान बन अधरों पर है। बचपन से आज तक मुझे अपनी जीवन के सारे पल याद आ रहें हैं। अभी तक ना जाने कितने अनुतरित प्रश्न मुझे मथते रहें हैं। कहतें हैं, मृत्यु के समय पूरे जीवन की घटनाएँ नेत्रों के सामने आ जाते हैं। क्या मेरी मृत्यु मुझे मेरे पूर्ण जीवन का अवलोकन करवा रही है? अगर हाँ, तब मैं कहना चाहूँगामृत्यु जीवन से ज्यादा सहृदया, सुखद और शांतीदायक होती है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Last edited by rajnish manga; 05-10-2018 at 11:58 PM.
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Old 05-10-2018, 11:59 PM   #2
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महाभारत के पात्र: कर्ण

मैं अपने आप को बादल सा हलका और कष्टों से मुक्त पा रहा हूँ। चारो ओर हाहाकार और रुदन है। रक्त धारा धरा के रंग को बदल रही है। यहाँ पर उपस्थित नर और नारी व्यथित हैं। सभी के आश्रुपुर्ण नयन हैं। पति, पुत्र या पिता के लिए विलाप करनेवालों की आवाज़ वातावरण को व्यथित कर रहीं है। पर मैं असीम सुख के सागर में डूब उतरा रहा हूँ। अब ना कोई दुख है ना कष्ट।

मैं, अंग नरेश, महायोद्धा , दानवीर, धर्मनिष्ठ, तेजोमय सूर्यपुत्र, ज्येष्ठ कुंती नन्दन, कौंतेय, कर्ण या राधेय का शरीर कुरुक्षेत्र की धरा पर अवश, निर्जीव पड़ा है। तन पर अनेकों घाव हैं। साथ है, बेरहमी से खींच कर निकाले कवच-कुंडल का ताज़ा घाव और मुख से बहती रक्त धार।

मेरे रथ का चक्का मृतिका में अटका , जकड़ा है। मैंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र रख कर दोनों हाथों से माटी में धसें रथ के चक्र को निकालने का असफल प्रयास कर रहा था। तभी छल से , युद्ध विधान के विपरीत, मुझ पर अर्जुन ने वार किया।

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Old 06-10-2018, 12:01 AM   #3
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महाभारत के पात्र: कर्ण

अभी भी ईश्वर के कठोरता की इति नहीं हुई। अभी भी मेरी परीक्षा शेष थी। जब मेरा अंत निकट था। मैं अपने शारीरिक कष्टों और आसन्न मृत्यु को देख व्यथित था। तब, पिता सूर्य और इंद्र मेरे कष्टों से द्रवित न हो , मेरे दानवीरता की सीमा जानने के बहस में लिप्त हो गए। मेरे दानवीरता को परखने के लिए भिक्षुक बन दोनों, मुझ से मेरे दाँतों में जड़ित तिल भर स्वर्ण की माँग कर बैठे। इंकार कैसे करता। मैंने ना बोलना नहीं सीखा है कभी। स्वर्ण टंकित दांत को कठोर पाषाण प्रहार से तोड़ भिक्षुक बने पिता सूर्य और इन्द्र को दे दिया था। अतः मुख भी आरक्त है। तप्त रक्त की धार मुख से बह कर मेरे संतप्त हृदय को ठंडक पहुंचने का प्रयास कर रही है।
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Old 06-10-2018, 12:04 AM   #4
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महाभारत के पात्र: कर्ण
(एक अन्य कोण से कर्ण की कथा)

आज मुझे अपने जन्म की कथा याद आ रही है। मैं अपने माँ के अंक में हूँ। एक सुंदर स्वस्थ शिशु जो अलंकारों से सज्जित है। ऐसे काम्य, सुंदर और स्वस्थ शिशु को देख कर माँ की आँखों में प्रसन्नता क्यों नहीं है? क्यों वह अचरज भरी आँखों से मुझ को देख रही है। अश्रु उसके ग्रीवा तक बह रहें है। फिर उसी माँ ने मुझे एक सुंदर मखमल युक्त पेटी में गंगा में प्रवाहित कर दिया।

मुझे मालूम था कि मैं अर्जुन से श्रेष्ठ हूँ। अतः मैंने अर्जुन को ललकारा। पर यहाँ मेरे योग्यता का सम्मान नहीं हुआ। कृपाचार्य ने मेरे राज्य और वंश पर प्रश्न चिन्ह लगाए। मैं एक सूत-पालित पुत्र मात्र था। मात्र राजा या राज पुत्रों का ऐसे आयोजन में भाग लेने की परंपरा रही है। मेरी आँखों में अश्रु कण छलक आए। पर वहाँ कोई नहीं था मेरे हृदय की कातरता को समझनेवाला। सामने सिहांसनारूढ़ माता कुंती तो जानती थी मेरा गुप्त परिचय। मेरे पिता, नभ स्वामी सूर्य तो पहचानते थे मुझे। पर वे चुपचाप चमकते रहे गगन में। मेरे माता-पिता सब जान कर मौन रहे, मेरा दुख और अपमान देखते रहे।
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Old 06-10-2018, 12:05 AM   #5
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महाभारत के पात्र: कर्ण

यह मेरे शर्म और अपमान की पराकाष्ठा थी। मेरे गुण सिर्फ इसलिए महत्वहीन थे, क्योंकि मेरे पास अपना परिचय नहीं था। मेरा हृदय तड़प रहा था अपना परिचय जानने के लिए। क्या जन्म लेना किसी शिशु के वश की बात होती है? शायद ईश्वर से मेरा दर्द सहा नहीं गया और मेरे सम्मान की रक्षा के लिए दुर्योधन को भेज दिया। उस दिन ज्येष्ठ कौरव दुर्योधन ने मेरे सम्मान की रक्षा की। उन्हों ने तत्काल मुझे अंग देश का राजा, अंगराज घोषित किया। अब मैं एक राजा की हैसियत से अर्जुन से युद्ध करने योग्य था। बदले में ने दुर्योधन ने मात्र मेरी सच्ची मित्रता चाही।

सभी मुझे अंगराज बनने की बधाई दे रहे हैं। मेरे राजा बनने की खुशी में दुर्योधन ने एक वृहद उत्सव आयोजित किया है। मेरे राज्य- अंगराज्य में खुशियाँ मनाई जा रहीं हैं।मेरा पूरा राज्य दीपों से जगमगा रहा है। पर किसी को मेरे मनः स्थिती का ज्ञान नहीं है। इतने बड़े सम्मान के बाद भी मेरे दिल का एक कोना खाली और अन्धकारमय है, जो मुझ से बारंबार पूछता है – तू है कौन? कहाँ से आया है? तेरे माता-पिता कौन हैं?
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Old 06-10-2018, 12:08 AM   #6
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Default Re: महाभारत के पात्र: कर्ण

महाभारत के पात्र: कर्ण

मैं सूर्य आराध्य हूँ। अंगराज बन मैंने निर्णय किया। सूर्य उपासना के समय आए किसी भी याचक को रिक्त हस्त कभी नहीं लौटने दूंगा। वे जो मांगेगे वही दान उन्हें मैं दूंगा। मैंने संपूर्ण जीवन इसका पालन किया। आज मैं दानवीर कर्ण कहलाता हूँ। पर इसका लाभ बहुतों ने मुझे क्षति पहुंचा कर उठाया, चाहे वे मेरी माता कुंती, देवराज इंद्रा या स्वयं मेरे पिता हिरणगर्भ कहलाने वाले सूर्य हों। सब समझते हुए भी मैं दानवीर बना रहा।
राजसिंहासनारूढ़ हो कर मैंने अपने कर्तव्य का पूर्णरूप निर्वाह किया। प्रजा का पूरा ध्यान संतान की तरह रखा। एक दिन राज्याव्लोकन करने अपने अश्व पर निकला। मार्ग में एक रोती हुई बालिका मिली। उसके पात्र से घृत मिट्टी में गिर गया था। मैंने अपनी ओर से उसे घृत देना चाहा। पर बाल हठ था कि उसे वही घी चाहिए। उस असहाय कन्या के अनुरोध पर मैंने जमीन पर गिरे घी को हाथों से निचोड़ कर मिट्टी मुक्त करना चाह। मिट्टी बलपूर्वक हथेलियों से दबाने से भूमि देवी ने कुपित हो मुझे श्राप दे दिया। कहा, जब मैं किसी भीषण युद्ध में संलग्न रहूँगा।तब वे मेरे रथ के चक्कों को वैसे ही बल से जकड़ लेंगी , जैसे आज उन्हें मैंने अपनी मुष्टिका में दबाया है।
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