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18-01-2013, 07:12 PM | #1 |
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कलियां और कांटे
इस सूत्र में मेरे द्वारा अभी तक कुछ पढी, कुछ सुनी और कुछ अंतरजाल में देखी गयी खट्टी-मिट्ठी कहानियों को मैं प्रस्तुत करने का प्रयत्न करूँगा। आप सभी का सहयोग अपेक्षित है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
18-01-2013, 07:13 PM | #2 |
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Re: कलियाँ और काँटे
गरीबी
गंगा के सपाट मैदानी इलाके में बसा एक छोटा सा गांव कीरतपुर था. जिसमे कुल मिलाकर यही कोई पचास साठ घर होंगे. गाँव के पास से गुजरने वाली एक छोटी सी नहर के कारण गाँव पूरी तरह से आबाद था. गाँव में बड़े बूढ़े सब मिलाकर दो तीन सौ से ज्यादा आबादी न थी .गाँव में सब जाति के लोग थे लेकिन छोटी जाति के लोगों की संख्या ज्यादा थी .इसी गाँव के एक किनारे पर घास फूस से बना टूटा फूटा घर बदलू का था. इधर बदलू कई दिन से बहुत परेशान था .उसकी बीवी बहुत बीमार थी .उसके पेट में बहुत दर्द था जिसके कारण वह दर्द से कराह रही थी .रात काफी गुजर चुकी थी .उसने किसी तरह अपनी बेटी को तो सुला दिया लेकिन बदलू को अब भी नींद नहीं आ रही थी .वो अंदर गया और काफी देर तक अपनी बीवी के पास बैठा रहा फिर आकर सोने का प्रयास करने लगा .उसने जरा सा झपकी ली ही थी कि बीवी के कराहने की आवाज से फिर उसकी नींद खुल गई .वह धीरे से दबे पाँव अपनी बेटी के पास गया .बेटी को आराम से सोया देखकर उसे कुछ राहत मिली . इस साल बारिश बहुत कम हुई थी. पास की नहर का पानी भी पूरी तरह से सूख चूका था. भाँदो का महीना आ चुका था लेकिन बादलों का कहीं नामो निशान नहीं था. दूर दूर तक कहीं भी हरियाली नहीं दिखाई दे रही थी . बदलू ने जो फसल बोई थी वह पूरी तरह से सूख गई थी . बदलू के हाथ में अब एक भी पैसा न बचा था. जो दो चार रुपये बचे भी थे वह भी औरत की बीमारी में खर्च हो चुके थे .वह सोच रहा था कि अगर इस साल फसल अच्छी हो जाती तो वह साहूकार का सारा कर्ज चुका देता लेकिन अब वह क्या करे ?जब बहुत कोशिश करने पर भी नींद न आयी तो उसने बाहर आकर देखा, बाहर अभी बहुत अँधेरा था. वह सोंचने लगा कि इससे ज्यादा अँधेरा तो उसकी खुद की जिंदगी में फैला हुआ था .उसने आसमान की और देखा आसमान साफ़ और तारों से भरा हुआ था .वह फिर वापस आकर उस टूटी हुई चारपाई पर लेट गया .सुबह जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि सूर्य की किरणे अंदर तक आ रही थी .उसने अपनी बेटी को जगाया और लोटे में पानी लेकर उसका चेहरा धुलने लगा. बर्तनों के नाम पर उसके पास अब यही एक लोटा और एक थाली बचे थे. बाकी बर्तन वह पहले ही साहूकार को गिरवी रख चुका था. अंदर जाकर उसने देखा, उसकी बीवी आराम से सो रही थी बदलू ने उसे जगाना ठीक नहीं समझा . बाहर आकर उसने देखा दोनों बैल भूखे थे फिर भी चारे के इंतजार में शाँति से खड़े थे. बदलू अंदर गया और एक टोकरी भूसा लाकर उनके सामने डाल दिया .बदलू जानता था कि वह इससे ज्यादा भूसा बैलों को नहीं खिला सकता क्यों कि थोडा सा ही भूसा अब और बचा हुआ था .दिन धीरे धीरे चढ़ने लगा .उसने रोटियां बनाने के लिए आटा निकाला पर देखा कि आटा तो बस आज के लिए ही था .उसने उस आटे से चार रोटियां बनाई जिसमे से दो रोटियां बेटी को खिला दी, एक रोटी खुद खाई और एक रोटी बीवी के लिए रख दी . बीवी के कराहने की आवाज फिर आने लगी थी. वह बहुत परेशान हो गया .उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसका इलाज कैसे कराये? घर में एक रूपया भी नहीं था .वह पहले ही साहूकार से पैंतीस रुपये कर्ज ले चुका था .अब तो साहूकार ने भी उसे और कर्ज देने से मना कर दिया था .वह अंदर गया और एक नजर अपनी बीवी को देखा .यह साहूकार के आने का समय हो गया था. वह उससे कर्ज के पैसे वापस मांगेगा, हो सका तो दो चार गालियां भी सुनाएगा .उसने मन ही मन सोंचा कि गालियां तो वह सुन लेगा पर पैसे कहाँ से लौटाएगा? उसने वहाँ पर रुकना ठीक नहीं समझा. इसलिए अपना गमछा उठाकर वह जल्दी से घर से बाहर चला गया . जब वह वापस आया तो काफी रात हो चुकी थी .उसके आते ही उसकी बेटी दौडकर उससे लिपट गई. बदलू जानता था कि उसे भूख लगी है .उसने जितना भी आटा बचा था उसे गूंथकर तीन रोटियां बनाई .दो रोटियां फिर उसने बेटी को खिला दी .एक रोटी बीवी के लिए रख दी और खुद पानी पीकर लेट गया. बदलू लेट तो गया पर उसे भूख के मारे नींद नहीं आ रही थी .रह रह कर उसे साहूकार के कर्ज की चिंता सता रही थी .वह न तो बीवी का इलाज करवा पा रहा था और न ही साहूकार का कर्ज चुकता कर पा रहा था. बैलों का भूसा भी खत्म होने वाला था और उसके पास उन्हें खिलाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था .उसने बैलों को बेचने का फैसला कर लिया .उसने सोंचा कि बैलों को बेचकर साहूकार का कर्ज भी निपटा देगा और बीवी का इलाज भी करा देगा .इस बात से उसे कुछ राहत महसूस हुई और वह निश्चिंत होकर सो गया . अगले दिन जल्दी ही वह बैलों को लेकर साहूकार के पास पहुँच गया .इससे पहले कि साहूकार कुछ कहता बदलू ने उसके आगे अपना गमछा रख दिया “सरकार मेरी बीवी बहुत ज्यादा बीमार है और तो कुछ मेरे पास है नहीं, मेरे बैल आप रख लीजिए ,कर्ज से जो रुपये बढे वो मुझे दे दीजिए.” साहूकार ने हिसाब लगाया उसका कर्ज अब ब्याज लगाकर पछ्ह्त्तर रुपये हो चुका था जबकि उसके बैल बहुत ज्यादा करने पर भी साठ रुपये से ज्यादा के न ठहरते थे .इस तरह बदलू पर अब भी पन्द्रह रुपये का कर्ज बनता था. बदलू को उसने और पन्द्रह रुपये लाने को कहकर भगा दिया. बदलू उदास मन से घर की ओर चल दिया. उसकी आखिरी उम्मीद भी टूट चुकी थी. उसके कदम यहाँ वहाँ पड़ रहे थे .घर पहुँचने पर उसने देखा कि उसके घर के बाहर भीड़ जमा थी . बदलू का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह वहीँ पर सिर पकड़ कर बैठ गया. उसकी बीवी उसे छोड़कर जा चकी थी. उसकी आँखों से टप टप आंसू बहने लगे .अपनी गरीबी के कारण न तो वह अपनी बीवी का इलाज करा पाया ,न अपने बैलों को बचा पाया और न ही उस साहूकार का कर्ज चुका पाया|
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18-01-2013, 07:20 PM | #3 |
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Re: कलियाँ और काँटे
अचम्भा
” मम्मी!…गुलाब मौसी को हम गुलाब बुआ क्यों नहीं कहते?”…मैं जब छोटीसी बच्ची थी तब एक दिन मैंने अपनी मम्मी से प्रश्न किया! ” क्यों कि वह मौसी है…मौसी मतलब कि माँ की बहन; समझी? गुलाब मेरी बहन है और मैं …आप की मम्मी हूँ मिनी!…तो मेरी बहन आपकी मौसी ही तो हुई ना?” मम्मी ने मुझे समझाते हुए उत्तर दिया! ” ….और कल्पना बुआ जो हमारे घर में रहती है…..वह मेरे पापा की बहन है, इसलिए उसे बुआ कहते है?” मैंने और एक प्रश्न पूछा! “…हाँ!..मिनी बिटिया! वह आपके पापा की बहन है,इसलिए उसे आप बुआ कहती है!” “‘मम्मी!..गुलाब मौसी नानाजी के घर में क्यों रहती है”? आप की बहन है तो हमारे घर में क्यों नहीं रहती? मेरी बहन होगी, तो वह कहाँ रहेगी? ” मेरा बाल-मन सोच में पड गया था कि बुआ हमारे घर में रहती है तो मौसी नानाजी के घर में क्यों रहती है! ” अब चुप भी करो मिनी!…क्या मैं सारे काम छोड़ कर तुम्हारे साथ ही बतियाती रहूँ?…तुम बड़ी हो जाओगी तो यह सब समझ जाओगी…अब जाओ बाहर आँगन में जा कर खेलो और मुझे काम करने दो!” मैं आँगन में खेलने चली तो गई लेकिन मेरा बुआ और मौसी के बारे में सोचना जारी ही था! …जब कुछ बड़ी हो गई तब मेरी समझ में आ गया कि नाना-नानी, मामाजी , मौसी ये सब मम्मी के मायके की तरफ के रिश्तेदार है; और दादा-दादी, ताउजी,चाचाजी और बुआ ये सब मम्मी के ससुराल की तरफ से है!…मम्मी ससुराल में रहती है और अब ससुराल में ही रहेगी! मेरा ध्यान अब सभी के चेहरे की तरफ जाता था!…गुलाब मौसी मुझे बहुत सुन्दर लगती थी! उसका गोरा रंग, काले लंबे बाल, बड़ी-बड़ी काली आँखें देख कर मुझे लगता था…मेरी शकल मौसी जैसी क्यों नहीं है? मौसी जब हँसती है तो उसके दांत कितने सुन्दर दिखते है और मेरे टेढ़े-मेढे क्यों है?…मैं अपनी बुआ जैसी क्यों दिखती हूँ?…मौसी जैसी क्यों नहीं?…कई तरह के सवाल मन में उठते थे!..कुछ का जबाब मम्मी दे भी देती थी और कुछ का जवाब जब उसके पास होता ही नहीं था तो मुझे डांट-डपट कर चुप करा देती थी! …मैं बड़ी हो गई!..गुलाब मौसी ने बी.एस.सी.नर्सिंग का कोर्स किया था और वह नर्स बन गई थी!…अहमदाबाद के वाडीसारा अस्पताल में वह नर्स थी!..नर्स की यूनिफार्म में तो अब वह बहुत ही सुन्दर लगती थी!…मेरी बुआ स्कूल में टीचर थी…जल्दी ही बुआ की शादी भी हो गई और वह ससुराल चली गई!…अब सभी को गुलाब मौसी की शादी का इंतज़ार था!… ‘इतनी सुन्दर मौसी का दूल्हा भी तो उतना ही हैंडसम होगा!’ मैं मन में सोचती थी! एक दिन पता चला कि गुलाब मौसी ने अपने लिए जीवन-साथी चुन लिया है! …गुलाब मौसी और डॉक्टर विकास की प्रेम कहानी जल्दी ही घर वालों के कानों तक पहुँच गई! एक दिन डॉक्टर विकास का परिचय गुलाब मौसी ने अपने परिजनों से करवाया! डॉक्टर विकास भी बहुत हैंडसम थे! नाना-नानी को इस शादी से कोई आपत्ति नहीं थी….लेकिन जल्दी ही पता चला कि डॉक्टर विकास के घरवालों की मोटे दहेज की डिमांड थी!.. लगभग दस से -पन्द्रह लाख रूपये का खर्चा था; जो वहन करना नाना-नानी के बस में नहीं था!…और क्या होना था!…शादी होते होते रह गई!..डॉक्टर विकास ने भी अपने पैरेंट्स के खिलाफ जाने से मना कर दिया और किसी और लड़की से शादी कर ली!…लेकिन गुलाब मौसी का दिल टूट गया! उसका शादी की संस्था पर से ही विश्वास उठ गया! वह जीवन भर कुंवारी रही!
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18-01-2013, 07:21 PM | #4 |
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Re: कलियाँ और काँटे
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…समय आगे खिसकता गया! .मेरी शादी हो गई,,मेरी छोटी बहन की भी हो गई और मेरे भाई की भी हो गई!…अब सभी के घर अलग अलग हो गए!..मामाजी. चाचाजी, ताउजी…कोई कहाँ रहता था तो कोई कहाँ रहता था! गुलाब मौसी अब अस्पताल में मैट्रन के पद पर कार्यरत थी! वह बहुत ही सख्त स्वभाव की थी! सभी से कट कर रह गई थी! न किसी के घर जाती थी और न किसी को अपने घर बुलाती थी! होली हो या दिवाली…उसके लिए सब दिन एक जैसे होते थे! किसीसे कोई सारोकार नहीं था! …लेकिन मैं हंमेशा उसकी खोज-खबर लेती रहती थी!..जब भी समय मिले उससे मिलने अस्पताल पहुँच जाया करती थी!..कई बार तो वह मिलने से इनकार भी कर देती थी, लेकिन मैं बुरा नहीं मानती थी…मैं उससे बहुत प्यार करती थी!…वह कंजूस भी बहुत थी! घर पर फोन तक लगवाया नहीं था!..शायद प्रेम में असफलता हाथ आने से उसके अंदर असुरक्षा की भावना पनप उठी थी! एक बार अस्पताल मैं उसे मिलने पहुँच गई तो मुझे पता चला कि गुलाब मौसी रिटायर हो चुकी है और अहमदाबाद के ही पाश इलाके में एक फ्लोर ले कर रह रही है…मैंने उसका एड्रेस हासिल किया और उसके घर पहुँच गई! …मुझे देख कर मौसी ज्यादा खुश हुई नहीं!…चाय के लिए मुझसे पूछा लेकिन मेरे मना करने पर बनाई भी नहीं!..कुछ इधर उधर की बातें हुई और मैंने उससे विदा लेना ही ठीक समझा!..लेकिन मैंने गुलाब मौसी पीछा नहीं छोड़ा!…कभी कभार उसके घर पर जाती ही रही! ” तुमने आज बहुत सुन्दर साड़ी पहनी है!..” मैं एक दिन गुलाब मौसी घर गई! वह आज खुश लग रही थी…जीवन में पहली बार उसने मेरी तारीफ़ की और मै खुश हो गई!…आश्चर्य भी हुआ! ” थैंक यू मौसी!…क्या बात है? आज मेरी साड़ी की तरफ आप का ध्यान कैसे गया?”…मैंने भी चुटकी ली! “‘ मिनी!…मैंने सोच लिया!..अब मैं किसी से कट कर नहीं रहना चाहती!…अब तो बुढापा आ गया!..अपने सभी रिश्तेंदारों के साथ मेल-मिलाप बढ़ाना चाहती हूँ!…मुझे बहुत दु;ख हो रहा है कि इतने साल मैं सब से कट कर रही!…हट कर रही…दूर रही! मैं एक पार्टी देना चाहती हूँ! अपने घर पर सभी को आमंत्रित करना चाहती हूँ!…मिनी!..क्या इस काम में मेरी मदद करोगी?” …मै हैरान थी!…खुश भी हो रही थी कि मौसी में कितना अच्छा बदलाव आ गया!…मौसी ने मेरे से सभी रिश्तेदारों के एड्रेस ले लिए और कहा कि वह निमंत्रण-पत्र छपवाकर, एक निश्चित दिन तय करके सभी को आमंत्रित करेगी!…निमंत्रण-पत्र सभी को पोस्ट द्वारा भेजेगी!…मौसी ने ये भी कहा कि वह सब को सरप्राइज देना चाहती है! ” मिनी..किसी को कुछ मत बताना!…जब निमंत्रण पत्र सभी के हाथ में पडेंगे, तभी सभी को पता चलना चाहिए!…मैं सरप्राइज देना चाहती हूँ!” इस पर मैंने भी खुशी खुशी हामी भर दी और गुलाब मौसी से वादा किया कि किसी को नहीं बताउंगी!…यहाँ तक कि मैं भी निमंत्रण-पत्र मिलने के बाद ही यहाँ पार्टी में आउंगी!..पहले नहीं आउंगी!” ….निमंत्रण-पत्र की राह देख रही थी मैं…. कि अचानक सुबह दस बजे मेरे मोबाइल पर एक कॉल आ गई! ” आप मिनी बोल रही है?” कोई पुरुष बोल रहा था! ” जी…आप कौन”‘ ” मैं इन्स्पेक्टर चौहान बोल रहा हूँ….क्या मैट्रन गुलाब देसाई को आप जानती है?…उन्होंने आत्महत्या कर ली है!”” ….मैं अंदर तक काँप उठी! सभी रिश्तेदारों को फोन कर दिए और गुलाब मौसी के घर जा पहुँची!…वहाँ पता चला कि पार्टी की पूरी तैयारी थी!…पचीस-तीस लोगों के लिए अच्छे रेस्तोरां से बढिया सा खाना भी मंगवाके रखा हुआ था!..बडासा केक भी टेबल पर सजा हुआ था!…घर में भी बढिया सजावट की हुई थी!….लेकिन बेडरूम से गुलाब मौसी का मृत देह ही मिला!..एक स्यूसाइड नोट भी मिला!…सुबह मेहरी ने बार बार घंटी बजाने बाद भी दरवाजा न खुलने पर पड़ोसियों को सूचित किया…और पडोसियो ने पुलिस को बुला कर दरवाजा खुलवाया था! ….छान-बिन करने पर पुलिस को मौसी की कपड़ों की अलमारी में, कपड़ों की तह के नीचे रखे हुए निमंत्रण पत्र मिले!..उस पर सभी रिश्तेदारों के नाम-पते लिखे हुए थे…पोस्टल स्टैम्प्स भी लगी हुई थी!…पुलिस को एक पर्ची मिली थी जिस पर मेरा नाम और मोबाइल नंबर लिखा हुआ था…सो पुलिस ने मुझे फोन किया था! …अब सारा भेद खुल गया!…दरअसल मौसी निमंत्रण-पत्रों को पोस्ट करना ही भूल गई थी!..वह सोच रही थी कि सभी रिश्तेदारों को निमंत्रण-पत्र वह भेज चुकी है लेकिन सभी उससे बहुत नाराज है इसलिए कोई नहीं आया! मौसी के स्यूसाइड नोट में उसने यही लिखा था! ” मैं बहुत बुरी हूँ…जीवन भर सब से कट कर रही, सभी को बहुत दु;ख पहुंचाया! …अपनी भूल सुधारना चाहती थी!…सभी को मेरे घर आने के लिए निमंत्रण-पत्र भी भेजें…लेकिन कोई नहीं आया!…मुझे किसीने माफ नहीं किया!..मैं शायद इस लायक नहीं हूँ!….मुझे चाहिए कि अपने आप को सजा दूं…इसलिए नींद कि गोलियाँ खा कर आत्महत्या कर रही हूँ! -गुलाब, जो किसी की न हो सकी!” …सभी रिश्तेदार मौजूद थे और सभी की आँखों से आंसू छलक रहे थे!…सब कुछ खत्म हो गया था!…मुझे रह रह कर लग रहा था कि ‘काश! मौसी का कहा न माना होता और सभी रिश्तेदारों को पहले ही बता दिया होता कि मौसी क्या अचम्भा देने वाली है!’
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18-01-2013, 07:24 PM | #5 |
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Re: कलियाँ और काँटे
----------अंतर-------------
सुजाता की शादी उसके माता-पिता ने बीस साल की छोटी उम्र में ही कर दी! वह अपना ग्रैज्युएशन भी पूरा नहीं कर पाई थी कि सौरभ से उसकी शादी की बात चल पडी! सौरभ एक सरकारी कर्मचारी था और किसी सरकारी दफ्तर में हेड-क्लर्क था! सुजाता से दस साल बड़ा था फिर भी रिश्ता तय हो गया और दो महीनों के भीतर शादी भी हो गई! बेचारी सुजाता मन मार कर रह गई! सुजाता से छोटी दो बहनें और एक भाई भी था सो सुजाता के माता-पिता ने सुजाता को ससुराल भेज कर एक बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली! सुजाता के पिता कपडे की एक दुकान पर मुनीम थे. उनकी कम तनख्वाह में ही यह परिवार अपना गुजारा कर रहा था! अब माता-पिता का सारा ध्यान सुजाता से छोटे लड़के वसंत पर था! वसंत पढ़ाई में सामान्य ही था,बारहवी क्लास में पढता था. उसे मोटी फीस वाले इंग्लिश मीडियम के स्कूल में उन्होंने दाखिल करवाया था!डॉक्टर जो बनाना चाहते थे! उसकी पढ़ाई पर वे खुल कर खर्चा करते थे. महंगे टयूशंस भी उसके लिए उपलब्ध कराए गए थे! सोच रहे थे वह डॉक्टर बनेगा तो बहुत कुछ कमा लेगा. उनकी सारी परेशानियां दूर हो जाएगी. जीवन में सुख ही सुख होगा. बेटियाँ क्या ख़ाक देती है! सुजाता की दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई पर या उनके लालन-पालन पर माता-पिता खास ध्यान देते ही नहीं थे. वे कहते थे ’लड़किया है. सरकारी स्कूल में जितनी पढ़ाई कर लेगी ठीक है. उम्र में आने पर उनकी भी शादियाँ कही ना कही कर ही देंगे. आखिर बेटियाँ बोझ ही तो होती है. और भगवान ने हमें तीन तीन बेटियाँ दे दी. पता नही कौन से जन्म के पाप की सजा है ये! बेटा वसंत बारहवी भी, दो बार परीक्षा दे कर पास हुआ! डॉक्टर कहाँ से बनना था? कोलेज में भी पढ़ने में फिसड्डी ही साबित हुआ. बी.ए. भी पास नहीं कर पाया. अब पिताजी ने अपनी सारी जमा-पूंजी खर्च कर के और अपना मकान तक गिरवी रख कर कर वसंत के लिए रेडिमेड कपड़ों की दुकान ले ली और काम शुरू करवा दिया! आखिर उनका बेटा ही तो था! बेटियों की तरह सिर पर बोझ थोड़े ही था? सुजाता की एक बहन नताशा. बारहवी पास कर के किसी दुकान पर सेल्स गर्ल का काम करने लगी. अब माता पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी. शादी पर आने वाले खर्च की चिंता भी सताने लगी. लेकिन नताशा ने अपने लिए खुद ही लड़का ढूंढ लिया और आर्य समाज मंदिर में शादी भी कर ली! उसकी शादी की चिंता अब दूर हो गई थी! वसंत की रेडिमेड कपड़ों की दुकान अच्छी चल पडी लेकिन अब वह माँ-बाप की बिलकुल ही इज्जत करता नहीं था. रोजाना घर में झगडे होते थे. वह कहता था कि माँ-बाप ने मुझ पर एहसान थोड़े ही किए है. जो कुछ किया वह करना तो उनका फर्ज था! यह परिवार अब किराए के मकान में रह रहा था! बड़ी बेटी सुजाता अब दो बेटियों की माँ बन चुकी थी. उसका कभी-कभार आना भी माँ-बाप को अखरता था! दूसरी बेटी नताशा कभी माँ-बाप से मिलने आती ही नहीं थी! तीसरी बेटी नम्रता पढ़ाई में बहुत ही अच्छी साबित हुई. वह स्कॉलर-शिप ले कर पढ़ती रही और सी.ए. बन गई! उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई और बाद में उसने एम्.बी.ए. भी कर ली! वसंत ने एक अमीर बाप की बेटी से लव्ह-मैरिज कर ली और अलग से फ़्लैट ले कर रहने लगा! अपने सास-ससुर से उसकी पत्नी की बनती नहीं थी! अब माता-पिता के साथ छोटी बेटी नम्रता ही रह गई! वही घर चला रही थी. उसकी तनख्वाह से घर अच्छी तरह चल रहा था! किसी चीज की कमी नहीं थी लेकिन उसके माँ-बाप को अब नई चिंता सताने लगी कि अगर नम्रता शादी कर लेती है तो उनका क्या होगा? उनका खर्चा कैसे चलेगा? वे कहाँ रहेंगे? अब माता-पिता पछतावे की आग में जल रहे है कि बेटे और बेटियों में उन्होंने फर्क क्यों किया? बेटियों को प्यार क्यों नहीं दिया? बेटियों को कुछ दिया ही नहीं है तो उनसे अपेक्षा भी क्या कर सकतें है? क्या नम्रता को शादी कर के ससुराल जाने से रोक सकतें है? इस कहानी का कोई अंत नहीं है. हां! इस कहानी से बेटे और बेटियों में फर्क करने वाले माता-पिता शिक्षा जरुर ले सकतें है कि बेटियों को भी मान, सम्मान, प्यार और इज्जत देना उनका फर्ज है. बेटियाँ भी बेटों की तरह, उन्ही की संतान है। संतान में अंतर रखना उचित नहीं है।
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Re: कलियाँ और काँटे
---------------समाधान---------------
पांच बजे घडी के अलार्म से आँख खुली और रोज़ की तरह अपनी चाय का कप लेकर मैं बाहर बालकनी मैं जा पंहुंची सुबह सुबह बाहर की ताज़ी हवा ,शांत वातावरण एवं हरियाली के बीच मन को बहुत सुकून का एहसास होता है | लेकिन आज रोज़ की तरह बाहर शान्ति नहीं थी | कॉलोनी के काफी सारे लोग हमारी गली में रहने वाली मिसेज शुक्ला के घर पर इकठ्ठा थे | किसी अनहोनी की आशंका से मन भयभीत होने लगा | चाय का कप वैसे ही छोड़ कर मैं भी जल्दी से मिसेज़ शुक्ला के घर पहुँच गयी तो पता चला की मिसेज़ शुक्ला की पंद्रह दिन से लापता इकलौती बेटी श्रद्धा घर वापस आ गयी है तो मन को को शांति मिली | लेकिन अगले ही पल पता चला की उसकी मानसिक स्तिथि ठीक नहीं है , वह अजीब सी हरकतें कर रही थी , अपने आप से ही बातें कर रही थी | कोई शुक्ला जी को झाड फूक के लिए तांत्रिक बाबा के पास जाने की सलाह दे रहा था तो कोई डॉक्टर के पास ले जाने के लिए बोल रहा था | थोड़ी देर बाद सभी लोग शुक्ला जी को दिलासा और अपनी-अपनी सलाह दे कर अपने-अपने घर को चले गये | घर आ कर मैं भी सोफे पर बैठ गयी | कुछ काम करने का मन नहीं कर रहा था | आँखों के सामने आज से लगभग चार साल पहले के घटनाक्रम घूम रहे थे , जब श्रद्धा अपनी दसवीं कक्षा में ८०% अंकों से उत्तीर्ण होने की मिठाई ले कर आई थी | उसके दो साल बाद उसने इण्टर भी ८२% अंकों के साथ उत्तीर्ण किया था और इंजीनियरिंग की तैयारी करने लगी | पहले ही प्रयास में वह उसमें सफल हुई | अभी उसे इंजीनियरिंग में गए हुए लगभग एक साल ही बीता था कि अचानक एक दिन वह कॉलेज जाते समय लापता हो गई | शुक्ला जी ने पुलिस में रिपोर्ट की और सब जगह ढूंढा लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया | अचानक आज श्रद्धा मिली भी तो इस हालत में………..| आख़िरकार शुक्ला जी ने श्रद्धा को एक साइकेट्रिस्ट को दिखाया और लगभग चार माह के इलाज के बाद श्रद्धा कुछ बताने की हालत में आ पाई | उसने बताया की वह अपनी इच्छा से एक लड़के के साथ गयी थी उस लडके से उसकी जान पहचान एक सोशल नेटवर्किंग साइट के द्वारा हुई थी | दोनों में दोस्ती हुई , मेल जोल हुआ और दोनों ने शादी करने का फैसला किया | माता पिता को इस डर से नहीं बताया की वह अनुमति नहीं देंगे | उस लड़के के साथ वह दिल्ली चली गयी | वहां जाकर एक छोटे से मंदिर में उन्होंने शादी की | उसके बाद वह लड़का उसे एक सुनसान सी जगह पर बने मकान में ले गया, जो मकान उसने अपने एक दोस्त का बताया | उस लड़के का व्यवहार अब उसके प्रति एकदम बदल गया था | वह उसे बात-बात पर पीटता था और शायद नींद की दवाई भी देता था, क्योंकि वह सारा दिन सोती रहती थी | एक दिन उसने फ़ोन पर उस लड़के को किसी से बात करते हुए सुना की वह उसे २५००० रु. के लिए किसी को बेचने जा रहा है, तो उसे वास्तवकिता का ज्ञान हुआ और एक दिन मौका देख कर वह वहां से भाग निकली और किसी तरह घर वापस आ पायी | यह केवल एक श्रद्धा की ही कहानी नहीं है , आज हम अगर अख़बार उठा कर देखें, तो रोज इस तरह की खबरें हमें पढने को मिल जाएँगी i हमें इस प्रकार की समस्याओं का समाधान खोजना ही होगा, जिससे हमारी युवा पीढी इस प्रकार की गलती करके अपना जीवन नष्ट न करे i श्रद्धा का भाग्य अच्छा था की वह घर वापस आ सकी और उसके माता पिता ने उसे अपना भी लिया | श्रद्धा जैसी कितनी ही लड़कियां तो घर वापस ही नहीं आ पाती और अगर आ जाती हैं तो उनके माता पिता समाज के डर से उनको अपना नहीं पाते| मुझे समझ नहीं आता, की ये छोटे-छोटे बच्चे कैसे इतने बड़े हो जाते हैं की अपने जीवन के इतने बड़े-बड़े निर्णय माता-पिता को बताये बिना अपने आप लेने लगते हैं | शायद यह टी. वी. और इन्टरनेट द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं का ही परिणाम है | इनका उपयोग करते-करते बच्चे यथार्थ से दूर अपनी एक अलग सपनों की दुनिया बना लेते हैं जहाँ सब कुछ उनकी इच्छा के अनुरूप ही होता है | हमें युवाओं को वास्तविकता और स्वपनलोक में ,अच्छे और बुरे में अंतर करना बताना चाहिए और साथ ही युवाओं को भी अपनी परिपक्वता का परिचय देना चाहिए और समझना चाहिए की जिन माता पिता को वह आज अपना शत्रु समझ रहे हैं, उन्होंने ही उन्हें इतने प्यार से पाल कर इतना बड़ा किया है और उनके प्रति भी उनके कुछ कर्तव्य हैं | शायद तभी इस समस्या और इस प्रकार की अन्य समस्याओं का समाधान संभव हो सकेगा |
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
18-01-2013, 07:32 PM | #7 |
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Re: कलियाँ और काँटे
------------------आपकी------------------
रोज रोज की खटपट और ब्यर्थ बहस से तंग आकर एक दिन मैंने अपनी पत्नी से आग्रह किया कि उसको मुझसे जो भी शिकायत है तथा मेरी और अपनी कमियां , गुण , अवगुण सबकुछ वो लिख कर दे !. क्योकि उसका मानना है कि मै उसको बोलने का मौका नहीं देता हूँ तथा उसकी बातों को सही से नहीं समझ पाता हूँ . मै यहाँ उनसे प्राप्त पत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ……… मेरे प्रिय, आपके आदेश को सिर-माथे रखते हुए मैं आज आपके सामने कुछ लिखित प्रस्तुत कर रही हूँ। अतीत … जब मेरी शादी हुई तब मैंने हमेशा इस रिश्ते को बहुत ख़ास समझा , बहुत महत्व दिया लेकिन मुझे आपकी तरफ से कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ ! मुझे कभी लगा ही नहीं कि आपको ………. ! मैंने कभी भी अपने और आपके बीच अपने माता पिता और रिश्तेदारों को आने नहीं दिया , ( इसका ये मतलब नहीं कि मैं उनसे प्यार नहीं करती हूँ ) लेकिन आप अपने रिश्तों को लेकर उलझे, लड़ते रहे ! इतना हमारे रिश्ते को महत्व नहीं दिया , हमेशा हमारे बीच कोई न कोई आता रहा ! एक लड़की जब अपना घर छोड़ कर दूसरे घर आती है तो ये उनका फ़र्ज़ होता है कि उसकी क्या इच्छाएं है, क्या भावनाएं है, पूछें समझें और बहु का भी फ़र्ज़ होता है कि वो भी ऐसा करे और सामंजस्य स्थापित करे ! आप हमेशा कहते रहे ” वो ये चाहते है, वो वो चाहते है, तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए” ! कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि क्या मै उन इच्छाओं को पूरा करने में खुश हूँ या नहीं ? मै क्या चाहती हूँ ? आप हमेशा कहते है कि जो आपके जितना करीब होता है वो उतना ही दुखी रहता है लेकिन मैंने ऐसा देखा नहीं कि जिन लोगो को आप अपने दिल के टुकड़े मानते है वो कभी भी दुखी रहते हो, तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल था ! खैर ये बातें पुरानी हो गयी, आपने इस विषय में ज्यादा परिवर्तन किया क्योंकि समस्या भी आपने ही ज्यादा उत्पन्न की , ऐसा मुझे लगता है! लेकिन मेरे बार बार कहने पर आपके परिवर्तन से ये समस्या ख़त्म हो गयी इसके लिए बहुत धन्यवाद व आभार! (ये पुरानी बात है इसका अब कोई औचित्य नहीं है! ) वर्तमान …. मैंने अपने ऊपर कभी भी बहुत रूपया खर्च नहीं किया ! जब आपको देखती थी खर्च करते हुए तो बड़ा अजीब लगता था हमेशा आपको टोकती रहती थी, हूँ ! लेकिन मेरा ऐसा सोचना गलत है , मै खर्च नहीं करती तो वो भी खर्च न करे ये सोचना मेरी गलती है , इसे मै मानती हूँ ! ये अब समझ आ रहा है , सबका अपना अपना स्वभाव होता है ! मै फिजूलखर्च नहीं कर सकती (आप रोकते नहीं है) तो आपसे क्यों उम्मीद करती हूँ कि आप कंजूसी करे ! शायद इसलिए कि मै आप पर अपना सम्पूर्ण अधिकार समझती हूँ, यहाँ पे मै गलत हूँ ! … सॉरी … सॉरी… सॉरी ! ये मै दिल से मान रही हूँ , कोशिश करूंगी कि शतप्रतिशत इसमें सफल होऊं ! आपका मानना है कि अभी भी लड़ाई माता पिता को लेकर होती है, लेकिन ऐसा नहीं है! ये गलत धारणा है ! पिछले ४ – ६ महीनो में हमारे बीच जो भी लड़ाई हुई वो अक्सर रात में हुई ! कभी खाने को लेकर, कभी सोने के समय को लेकर, कभी कभी उनको (माता – पिता) लेकर, ऐसा मेरा मानना है! कई बार (हमेशा नहीं) मेरी बातों को आप तिल का ताड़ बना देते है जिससे खटपट हुई ! मै फोन पे आधा घंटे से ज्यादा बात करती हूँ शायद दिन में एक दो बार! आप दिन में ज्यादा देर तक बात करते हैं आठ दस बार ! लेकिन यहाँ पर भी मै अपनी गलती मानती हूँ और कोशिश करूंगी कि ऐसा न हो! आपसे एक परिवर्तन अगर हो सके तो मेरी बातों को क्यों क्या कैसे इस नज़रिए से न देखे ( तिल का ताड़ ना बनाये ) ! अगर मै थक गयी हूँ तो रात का खाना आप ९ – ९.३० बजे तक खा लें ! आपने मुझे हमेशा खुश रहने के लिए कहा क्योंकि आपके अनुसार मेरी ख़ुशी में ही आपकी ख़ुशी है , घर का वातावरण मेरी तुलना में आप ज्यादा स्वस्थ व खुशनुमा रखते है ! इस सम्बन्ध में मै पचास प्रतिशत अपने आप को सफल मानती हूँ , पचास प्रतिशत बाकी है! इसका पूरा श्रेय आपको जाता है क्योंकि जैसा मैंने चाहा आपने वैसा माहौल को बनाया ! मै अपने तरफ से कोशिश करूंगी कि ज्यादा टोकाटाकी ना करूँ , स्वतंत्रता दूँ आपको ! सुबह से शाम तक मै खुश ही रहती हूँ ऐसा मुझे लगता है , देर शाम या रात को थकने कि वज़ह से थोड़ी मै भी चिडचिडी हो जाती हूँ पर अब हर समय ये कोशिश करूंगी कि खुश रहूँ ! अबतक हुई गलतियों के लिए सॉरी….. ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो आपको सदा खुश रखे ! आपकी ……….
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24-01-2013, 08:44 PM | #8 |
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Re: कलियाँ और काँटे
बदलती हवा
बदनाम बस्ती की सबसे जिद्दी लडक़ी इन दिनों बेहद चिंतित और गुस्से में है। उसे बेचैन कर दिया है इस खबर ने कि उस बस्ती की लड़कियां अब देश के गांवों, कस्बों में होने वाले रात्रिकालीन क्रिकेट मैचों में चीयर्स लीडर बनकर जा रही हैं। बात सिर्फ चीयर्स लीडर की नहीं है, इसकी आड़ में देह के धंधे का एक नया रूप शुरू हो गया है। लोगो की जरुरत के हिसाब से बस्ती की चीजें बदल गई हैं। मंडी के हिसाब से चीजें नहीं बदलीं। खुद को कलाकार कहने वाली लड़कियां अपनी कला अब अपने कोठो पर नहीं, लोगो की मांग के अनुसार कहीं भी दिखाने पर आमादा है। इनमें से कोई भी खुद को सेक्सवर्कर नहीं कहती। इन्हें अपना फन पेश करने का लाइसेंस मिला है। इन गलियों में कभी सूरज उगने का नहीं ढलने का इंतजार रहता था। दरवाजे तभी खुलते थे जब कोई दस्तक देता था। वहां एक परदा था जो हर किसी की जिंदगी से लिपटा हुआ था। उन गलियों से गुजरकर अक्सर हवा अलसाई हुई सी बहने लगती थी। अब हवा में शोखी है। रौनक गली अब किसी पुरानी रंग उड़ी पेंटिंग की तरह दिखती है। नई पीढी ने बहुत कुछ बदल दिया है यहां। उनके पुकारे कोई आए या ना आए, लोगो की पुकार, मांग उन्हें खेतो, खलिहानो से लेकर क्रिकेट के मैदानो तक ले जा रही हैं। इन दिनों देशभर में आईपीएल का खुमार सिर चढक़र बोल रहा है, वहीं छोटे छोटे नगरों में भी आईपीएल की तर्ज पर क्रिकेट नाइट टूर्नामेंट का चलन शुरू हो गया है। वहां भी दर्शकों के मनोरंजन के लिए सेक्सवर्कर मौजूद हैं। हर चौक्के-छक्के पर उनके ठुमके दर्शकों को सिसकारियों से भर देते हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते एक जिले के अधारपुर जगदेव मध्य विद्यालय परिसर में टी-20 नाइट क्रिकेट का आयोजन हुए । मैच के दौरान फूहड़ गानों का शोर उत्तेजना जगाता है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति और भी चौंकाने वाली है। पूरा ग्राउंड दर्शकों से खचाखच भरा हुआ है। ग्राउंड पर मैच चल रहा है और मंच पर डांस।
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24-01-2013, 08:45 PM | #9 |
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Re: कलियाँ और काँटे
मैदान में मौजूद ग्रामीण क्रिकेट टीम के कई सदस्य नाबालिग भी हैं। न पुलिस का ध्यान इस तरफ गया और सरकारी स्कूल परिसर में इसके आयोजन पर प्रशासन से अब तक कोई आपत्ति जताई है। हैलोजन लाइट के सुरमई अंधेरे में जलवाफरोश बालाएं चंद पैसों की खातिर भरे मैदान में ठुमक रही हैं। इन सबसे बेचैन लडक़ी नसीमा कहती हैं, धंधे का यह नया रूप ‘लॉन्च’ हुआ है, कहां पहले मुजरा और कव्वाली के दौर चलते थे। फिर आया आर्केस्ट्रा और अब ये चीयर्स लीडर का नया चलन। जिले के चतुर्भुज स्थान में परचम संस्था से जुड़ी नसीमा हंसती हैं, ‘आईपीएल में विदेशी लड़कियां हैं, हमारे यहां लोग ‘हाई प्रोफाइल’ चीजों को तुरंत अपना लेते हैं। देखिए, कैसे इस प्रवृत्ति ने एक मुजरे वाली को चीयर्स लीडर में बदल दिया।’ नसीमा बताती हैं कि इस तरह के क्रिकेट मैच ज्यादातर ग्रामीण अंचलों से सम्बद्ध नगरीय इलाको में खूब हो रहे हैं, जहां हर टीम का अपना चीयर्स लीडर होती है।’
यहां सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या सिर्फ आईपीएल की लोकप्रियता या उसकी नकल करने की प्रवृत्ति की वजह से बदनाम बस्ती की लड़कियां मैदान में चीयर्स लीडर बनकर पहुंच गई। इस सवाल का उत्तर देते हैं, बदनाम बस्ती पर किताब लिख रहे युवा कहानीकार। वह बताते हैं, ‘अब तो मेलों और मैचो में रंग जमाने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। दुख की बात है कि वहां अच्छी गानेवालिया रह गई हैं, न अच्छी नर्तकी। तवायफों ने इलाका छोड़ दिया। बस उनकी कहानियां बच गई हैं। करीब 100 सालों के इतिहास वाली यह बस्ती अब सिर्फ जिस्म की मंडी में तब्दील हो गई है।’ नसीमा तो सारा दोष प्रशासन को देती है, जिसे यह सब दिखाई नहीं देता। वह कहती हैं, ‘क्यों नहीं सरकार देह व्यापार का लाइसेंस दे देती है। कम से कम ये सब अलग-अलग रूप तो चलन में नहीं आते। क्या विडंबना है कि जो लोग इस व्यापार के खिलाफ है, वही लोग देह व्यापार के नए-नए रूप निकाल रहे हैं। चीयर्स लीडर के लिए क्या है? चौक्को-छक्को पर ठुमके? उनके जीवन का क्या?’ इस बस्ती की नई उम्र की लड़कियों में परंपरागत हुनर (मुजरा-कव्वाली) से कटकर हाई प्रोफाइल महफिलों में जाने का आकर्षण ज्यादा है। पहले कद्रदान इनकी दहलीज तक आते थे। अब नई लड़कियां उनके बुलावे पर कहीं भी उपलब्ध हैं-हर रूप में। चाहे वह आर्केस्ट्रा गल्र्स हो या चीयर्स लीडर। कभी महफिल की शान रही जीनत बेगम कहती हैं, क्या करे? कुछ तो करना होगा ना। महफिलें उजड़ गई हैं। राते बेमजा। समाज बदल गया है। पहले रतजगा हुआ करता था। रात रात भर संगीत की महफिल। जमींदार गए, कौन सजाएगा महफिल। पढी लिखी, मुंहफट नसीमा भी दार्शनिक हो उठती हैं, ‘पहले घर में बैठकर रोटी मिलती थी। अब रोटी का टुकड़ा खिसकता जा रहा है। हम उसके पीछे-पीछे जाते जा रहे हैं...।’ वह दुष्यंत का शेर सुनाती है..दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो, तमाशबीन दूकानें सजा कर बैठ गए।
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25-01-2013, 07:38 PM | #10 |
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Re: कलियाँ और काँटे
साभार : अंतरजाल
मातापिता और बच्चे मौजूदा दौर में देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी बहुत सी घटनाएं हो रही हैं जिनमें पति-पत्नी के झगड़ों में बच्चों को मौत मिल रही है। गृहकलह के चलते पहले बच्चों को मौत की नींद सुलाकर खुद भी आत्महत्या करने की घटनाएं किसी भी संवेदनशील मनुष्य को झकझोर जाती हैं। सहज ही मन में यह सवाल उठता है कि इन निर्दोष मासूम बच्चों का क्या कुसूर था? इन्हें क्यों जिंदगी शुरू होने से पहले ही मौत दे दी गई? चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं? संभवतया बच्चों की परवरिश कौन करेगा, जैसे सवालके चलते ही खुदकुशी से पहले बच्चों को मार डालने की घटनाएं हो रही हैं। पिछले एक हफ्ते में अगर यूपी में ही ऐसी चार घटनाएं हुई हैं तो संख्या निश्चित रूप से पूरे देश के लिए चौंकाने वाली है जिसकी ओर सभी का ध्यान जाना चाहिए। जरा इन घटनाओं पर गौर करें। हालिया दो घटनाएं जो हुई हैं उनमे पहली गाजीपुर जिले के सैदपुर इलाके में दहेज के लिए प्रताडि़त किए जाने से तंग आकर एक विवाहिता ने अपने दो मासूम बच्चों के साथ ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। मामला खानपुर थाना क्षेत्र के रामपुर गांव का है। यहां के निवासी युवक की शादी वर्ष २००६ में वाराणसी के चोलापुर थाना क्षेत्र स्थित नियार गांव की २४ वर्षीया रजनी के साथ हुई थी। एक सुबह रजनी अपने पुत्री खुशी (०३) और पुत्र युवराज (०१) के साथ सिंधौना आई और वाराणसी से औडि़हार जा रही एक यात्री ट्रेन के आगे कूद गई। तीनों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। हालांकि ससुराल वाले घटना की वजह मामूली पारिवारिक खटपट बता रहे थे, जबकि मृतका के मायके वालों का कहना था कि दहेज में मोटरसाइकिल लाने की मांग को लेकर रजनी को प्रताडि़त किया जा रहा था। इसी कारण वह दोनों बच्चों संग खुुदकुशी करने को मजबूर हुई। मृतका के पिता रामदुलार की ओर से दी गई तहरीर केआधार पर मृतका के पति तथा सास के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। दूसरी घटना बहराइच जिले के तुलसीपुर इलाके की है। यहां शादी के 22 साल बाद एक व्यक्ति ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी रचा ली। पहली पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह अक्सर उसे मारता पीटता। चार बच्चों की मां शकुंतला अपने पति की बेवफाई तो सहन कर गई लेकिन प्रताडऩा बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसने पहले अपने बच्चों को जहर मिला कर भोजन खिलाया फिर बाद में वही भोजन खुद भी खा लिया। इलाज के दौरान शकुंतला व उसकी पुत्री उमा देवी (१२) की मौत हो गई। जबकि जबकि तीन बच्चों की हालत नाजुक बनी हुई है। रुपईडीहा पुलिस ने आरोपी पति रामचंदर मिश्रा और उसकी पत्नी ऊषा देवी को गिरफ्तार कर लिया है। ऐसी ही दो घटनाएं और हुईं। मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ कसबे में एक महिला ने अपने दो मासूमों को फांसी पर लटका कर खुद भी फांसी लगा ली। गंधार गेट पर रहने वाले प्रवीण की बीवी कविता ने तीन साल के बेटे आदित्य और एक साल की बेटी भावना को छत के कुंडे पर लटका दिया। बाद में खुद भी पंखे से लटककर जान दे दी। पड़ोसियों ने कमरे का दरवाजा तोडक़र शवों को निकाला। सीतापुर के तालगांव थाना क्षेत्र में पत्नी से विवाद के बाद एक युवक ने अपनी दो बेटियों के साथ शारदा सहायक नहर में छलांग लगा दी। तीनों नहर में बह गए। बहादुरापुर मजरा कल्याणपुर निवासी शमशाद (२५) पुत्र अख्तर अपनी पत्नी रोजनी, दो साल की बेटी सोनी व छह माह की बेटी मोनी के साथ बस से बिसवां जा रहा था। वह तालगांव क्षेत्र के जीतामऊ चौराहे पर बस से उतर गया। इस बीच शमशाद व उसकी पत्नी में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। विवाद के बाद शमशाद की पत्नी वापस घर चली गई। इससे नाराज शमशाद ने अपनी दोनों बेटियों के साथ मोहम्मदीपुर गांव के पास नहर में छलांग लगा दी। बिसवां क्षेत्र में बड़ी बेटी सोनी की लाश बरामद हो गई है। ये घटनाएं इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि पति-पत्नी की कलह के चलते न केवल परिवार बिखर रहे हैं बल्कि बहुत बड़ी संख्या में बच्चों को जिंदगी से मुंह मोडऩे को मजबूर कर दिया जाता है? यह और कोई नहीं करता बल्कि उनके माता-पिता ही कर रहे हैं। सवाल पैदा होता है कि क्या जन्म देने वाले को यह हक है कि वह मौत भी दे दे? यह भी एक बड़ा सवाल है कि कैसे ऐसी दर्दनाक घटनाओं को रोका जाए। इस गंभीर मुद्दे पर समाजशास्त्रियों को भी विचार करने की जरूरत है। किसी भी तरह से बढ़ती हुई ऐसी घटनाओं पर तुरंत रोक लगाना जरूरी है।
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