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17-09-2013, 11:36 PM | #1 |
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जय श्री गणेश
क्यों हैं गणपति अग्र पूज्य ? (रूपकों की भाषा).................
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17-09-2013, 11:37 PM | #2 |
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Re: जय श्री गणेश
प्राचीन समय का प्रत्येक शास्त्र,प्रत्येक मन्त्र,विश्वास,ग्रन्थ या महावाक्य किसलिए महत्वपूर्ण है ओर किस तत्व को पाकर वह शक्तिशाली बना है? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि उस शास्त्र,ग्रन्थ या विश्वास की अन्त:कुक्षी में सत्य का कोई न कोई बीज मन्त्र छिपा है...............
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17-09-2013, 11:38 PM | #3 |
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Re: जय श्री गणेश
ये समूचा संसार वृ्क्ष सत्य का ही दूसरा रूप है,जिसके प्रत्येक पत्ते पर आपको सत्य के बीजमन्त्र लिखे मिलेंगें.जिस ग्रन्थ,शास्त्र,कथा-कहानी या किसी परम्परा में उस सत्य की शक्ति विद्यमान है,जो उसकी व्याख्या करने में सक्षम है—वही मानव समाज के लिए उपयोगी है...............
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17-09-2013, 11:39 PM | #4 |
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Re: जय श्री गणेश
आज अगर खोज की जाए तो आप पाएंगें कि भारतीय संस्कृ्ति,शास्त्रों,परम्पराओं और विश्वासों के मूल में ऎसे सत्य छुपे हैं—जो काल के क्रूर पंजों से बचे आज भी उतने ही नित्य-नवीन और अमृ्त तुल्य सृ्जन शक्ति से भरपूर हैं................
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17-09-2013, 11:40 PM | #5 |
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Re: जय श्री गणेश
दरअसल, हमारे शास्त्र पुराण ऎसी असंख्यों कथा-कहानियों से भरे हुए हैं, जो ऊपर से बेहद सरल, साधारण बल्कि यूं कहें कि कपोल कल्पित सी प्रतीत होती हैं; पर जिनका अर्थ बहुत ही गूढ रहता है और जो अमर सत्यों की प्रतीक हैं.वैदिक कथाओं में छिपे रूपकों को समझने के दृ्ष्टिकोण से आज हम गणेश जी के जन्म की कथा पर बात करते हैं .................
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17-09-2013, 11:41 PM | #6 |
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Re: जय श्री गणेश
गणेश जी के जन्म की कथा से तो हर कोई भली भान्ती परिचित ही है, जिसमें कहा गया है कि “देवी पार्वती जी ने स्नान करके स्वच्छ होते समय जो अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाकर खडा कर दिया और उसमें प्राण डाल दिए. उस पुतले नें भगवान शिव को अन्त:पुर में प्रवेश करने से रोका और शिव जी ने उसका सिर काट लिया, फिर दूसरा सिर उसके स्थान पर लगा दिया.................
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17-09-2013, 11:41 PM | #7 |
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Re: जय श्री गणेश
अब जहाँ एक आम साधारण व्यक्ति, जिसने कि मुश्किल से जीवन में महज दो चार ग्रन्थों के नाम भर सुने होते है, वो भला इन कथाओं में निहित रहस्यों को कहाँ से समझेगा. उसके लिए तो गणपति हकीकत में शरीर के मैल से ही उत्पन हुए होंगें. वो बेचारा इन कथाओं को सुनता है.................
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17-09-2013, 11:42 PM | #8 |
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Re: जय श्री गणेश
पढता भी है तो सिर्फ श्रद्धावश. उसमें सिर्फ और सिर्फ उसकी आस्था जुडी होती है, बिना किसी अर्थ को जाने——लेकिन कोई अन्य धर्मावलम्बी या फिर ऎसा व्यक्ति जो कि नास्तिक विचारधारा का होने के चलते श्रद्धा से भी पूरी तरह से शून्य है.................
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17-09-2013, 11:44 PM | #9 |
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Re: जय श्री गणेश
वो तो झट से कह देगा कि “हिन्दू धर्म में तो यूँ ही फालतू की अगडम-बगडम सी गप्पें हाँकी हुई हैं”. लेकिन इन रूपकों की भाषा समझे बिना उसका मर्म भला कहाँ जाना जा सकता है..................
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17-09-2013, 11:48 PM | #10 |
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Re: जय श्री गणेश
यहाँ इस कथा प्रसंग में जो पार्वती है—-वो उस आत्मा की प्रतीक हैं, जो अगणित जन्मों और युगों के प्रयत्न और अनुभवों के पश्चात ईश्वर तक पहुँचती है. उसका मैल वह तत्व (Matter) है, जिससे सृ्ष्टि का वह अंग बना है, जिसे प्रकृ्ति कहते हैं तथा जिसके प्रभाव में पहले वह आत्मा फंसी थी..................
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