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12-11-2010, 09:14 AM | #1 |
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प्रेम, प्रणय और धोखा
ज़िंदा है शाहजाहाँ की चाहत अब तक, गवाह है मुमताज़ की उल्फत अब तक ! जाकर देखो इक बार ताज को दोस्तों, पत्थर पत्थर से टपकती है मुहब्बत अब तक !!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
12-11-2010, 05:19 PM | #2 |
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गुड वर्क अनुज प्रेत
लेकिन इसमें जल्दी जल्दी कुछ प्रविष्टियाँ कीजिये ताकि मजे का मीटर तेज चलने लगे |
12-11-2010, 08:49 PM | #3 |
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अच्छा सूत्र है कल्याण जी. कृपया इसी तरह कार्य करते रहे. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ और चित्र. मेरे विचार से खाली चित्र देने के स्थान पर आपने जो दो पंक्तियाँ लिख दीं उसने इनका प्रभाव दस गुना कर दिया.
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13-11-2010, 10:07 AM | #4 |
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भूत भाई,
बहुत देर कर दी मेहरबान आते-आते....... अब आ ही गए है, तो दिखाईए अपना जलवा.... |
16-11-2010, 11:31 PM | #6 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
सब अपनी बीवी को चाहें, सूरत से और शिद्दत से /
नारि परायी पर जा अटकें, मर्द बेशरम इस आदत से // अब ऐसे इंसा लाखों हैं, जो हर साल बना दें ताजमहल / 'जय' वैसे अब ना शाहजहाँ, ना वैसी अब मुमताजमहल //
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
23-11-2010, 10:19 AM | #7 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी, फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी ! सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ, अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी !! हर तरफ भागते दोड़ते रास्ते, हर तरफ आदमी का शिकार आदमी !! रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ, हर नए दिन , नया इंतज़ार आदमी !! ज़िन्दगी का मुकद्दर सफ़र दर सफ़र, आखरी सांस तक बेकरार आदमी !! आखरी सांस तक बेकरार आदमी...............!!!
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25-11-2010, 09:29 AM | #8 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
दिल में एक डर था जिसे अभी मिटा न सका जब
तुम्हे देखा दिल का दर्द मिट गया मगर एक प्रेम रोग लग गया अब क्या करे हम न तुम मिलने आती हो न मिलने का वादा करती हो क्या होगा इस रोग का ! |
27-11-2010, 07:24 PM | #9 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
तेरी चाहत में अक्सर इस कदर गुजर जाता हूँ मैं ! की मीलों दूर होने पर भी, तेरे दिल में सिमट जाता हूँ मैं !! जब तेरी तन्हाई पेश -ए - नज़र पाता हूँ, तो ठंडी ठंडी चंद आहें भर कर रह जाता हूँ मैं ! हाय ये अलफ़ाज़ जो कभी, लबों से बयान होते नहीं और आंसू, जिन्हें सिर्फ आँखों से पि जाता हूँ मैं ........!!!
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27-11-2010, 11:28 PM | #10 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
मैं और मेरा अकेलापन सामने फ़ैली हुई पहाड़ियाँ ढलता हुआ सूरज पेड़ों के झुरमुट लम्बे होते हुए साए ऐसे में तुम बहुत याद आते हो और तुम यहीं हो हाँ यहीं तो हो !!
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