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Old 11-11-2012, 12:41 PM   #1
malethia
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Default वात्स्यायन का कामसूत्र

वात्स्यायन का कामसूत्र




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Last edited by malethia; 11-11-2012 at 01:22 PM.
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Old 11-11-2012, 12:49 PM   #2
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

वात्स्यायन के कामसूत्र का हिन्दी अनुवाद संस्कृत श्लोक सहित
वात्स्यायन के कामसूत्र में कुल सात भाग हैं। प्रत्येक भाग कई अध्यायों में बँटे हैं। प्रत्येक अध्याय में कई श्लोक हैं। सदस्यों की सुविधा के लिए पहले संस्कृत श्लोक और उसके नीचे उसका हिन्दी अनुवाद दिया गया है ! इसके हिंदी अनुवाद में मेरा कोई योगदान नहीं है ,प्रकाशित किया गया पूरा ग्रन्थ मैंने नेट से उठाया है ! आप लोगों की रुचि के लिए मैं इसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ !उम्मीद है आप लोगो को ये अवश्य पसंद आएगा !
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Old 11-11-2012, 12:56 PM   #3
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

भाग 1 साधारणम्
अध्याय 1 शास्त्रसंग्रहः

श्लोक (1)- धर्मार्थकामेभ्यो नमः।।
अर्थ- मै धर्म, अर्थ और काम को नमस्कार करने के बाद में इस ग्रंथ की शुरुआत करता हूं।
भारतीय सभ्यता, संस्कृति और साहित्य का यह बहुत पुराना चलन रहा है कि ग्रंथ की शुरुआत, बीच और अंत में मंगलाचरण किया जाता है। इसके बाद आचार्य वात्सायन ने ग्रंथ की शुरुआत करते हुए अर्थ, धर्म और काम की वंदना की है। दिए गए पहले सूत्र में किसी देवी या देवता की वंदना मंगलाचरण द्वारा करके, ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषय- धर्म, अर्थ और काम की वंदना को महत्व दिया है। इसको साफ करते हुए आचार्य वात्साययन नें खुद कहा है कि काम, धर्म और अर्थ तीनों ही विषय अलग-अलग है फिर भी आपस में जुड़े हुए है। भगवान शिव सारे तत्वों को जानने वाले हैं। वह प्रणाम करने योग्य है। उनको प्रणाम करके ही मंगलाचरण की श्रेष्ठता पाई जा सकती है।
जिस प्रकार से चार वर्ण (जाति) ब्राह्मण, शुद्र, क्षत्रिय और वेश्य होते हैं उसी प्रकार से चार आश्रम भी होते हैं- धर्म, अर्थ, मोक्ष और काम। धर्म सबके लिए इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इसके बगैर मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। अर्थ इसलिए जरूरी होता है क्योंकि अर्थोपार्जन के बिना जीवन नहीं चल सकता है। दूसरे जीव प्रकृति पर निर्भर रहकर प्राकृतिक रूप से अपना जीवन चला सकते हैं लेकिन मनुष्य ऐसा नहीं कर सकता है क्योंकि वह दूसरे जीवों से बुद्धिमान होता है। वह सामाजिक प्राणी है और समाज के नियमों में बंधकर चलता है और चलना पसंद करता है। समाज के नियम है कि मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है तो सामाजिक, धार्मिक नियमों में बंधा होना जरूरी समझता है और जब वह सामाजिक-धार्मिक नियमों में बंधा होता है तो उसे काम-विषयक ज्ञान को भी नियमबद्ध रूप से अपनाना जरूरी हो जाता है। यही कारण है कि मनुष्य किसी खास मौसम में ही संभोग का सुख नहीं भोगता बल्कि हर दिन वह इस क्रिया का आनंद उठाना चाहता है।
इसी ध्येय को सामने रखते हुए आचार्य वात्स्यायन ने काम के सूत्रों की रचना की है। इन सूत्रों में काम के नियम बताए गए है। इन नियमों का पालन करके मनुष्य संभोग सुख को और भी ज्यादा लंबे समय तक चलने वाला और आनंदमय बना सकता है।
आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र की शुरुआत करते हुए पहले ही सूत्र में धर्म को महत्व दिया है तथा धर्म, अर्थ और काम को नमस्कार किया है।
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Old 11-11-2012, 01:10 PM   #4
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

श्लोक (2)- शास्त्रो प्रकृतत्वात्।।


आचार्य वात्स्यायन ने काम के इस शास्त्र में मुख्य रूप से धर्म, अर्थ और काम को महत्व दिया है और इन्हे नमस्कार किया है। भारतीय सभ्यता की आधारशिला 4 वर्ग होते हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य की सारी इच्छाएं इन्ही चारों के अंदर मौजूद होती है। मनुष्य के शरीर में जरूरतों को चाहने वाले जो अंग हो यह चारों पदार्थ उनकी पूर्ति किया करते हैं।
इसके अंतर्गत शरीर, बुद्धि, मन और आत्मा यह 4 अंग सारी जरूरतों और इच्छाओं के चाहने वाले होते हैं। इनकी पूर्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष द्वारा होती है। शरीर के विकास और पोषण के लिए अर्थ की जरूरत होती है। शरीर के पोषण के बाद उसका झुकाव संभोग की ओर होता है। बुद्धि के लिए धर्म ज्ञान देता है। अच्छाई और बुराई का ज्ञान देने के साथ-साथ उसे सही रास्ता देता है। सदमार्ग से आत्मा को शांति मिलती है। आत्मा की शांति से मनुष्य मोक्ष के रास्ते की ओर बढ़ने का प्रयास करता है। यह नियम हर काल में एक ही जैसे रहे हैं और ऐसे ही रहेंगें। आदि मानव के युग में भी शरीर के लिए अर्थ का महत्व था। जंगलों में रहने वाले कंद-मूल और फल-फूल के रूप में भोजन और शिकार की जरूरत पड़ती थी। संयुक्त परिवार कबीले के रूप में होने के कारण उनकी संभोग संबंधित विषय की पूर्ति बहुत ही आसानी से हो जाती थी। मृत्यु के बाद शरीर को जलाया या दफनाया इसीलिए जाता था ताकि मरे हुए मनुष्य को मुक्ति मिल सके। इस प्रकार अगर भोजन किया जाए तो शरीर बेजान सा हो जाता है। काम (संभोग) के बिना मन कुंठित सा हो जाता है। अगर मन में कुंठा होती है तो वह धर्म पर असर डालती है और कुंठित मन मोक्ष के द्वार नहीं खोल सकता। इस प्रकार से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं। बिना धर्म के बुद्धि खराब हो जाती है और बिना मोक्ष की इच्छा किए मनुष्य पतन के रास्ते पर चल पड़ता है।

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Old 11-11-2012, 01:10 PM   #5
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

बुद्धि के ज्ञान के कारण समवाय संबंध बना रहता है। जैसे ही ज्ञान की बढ़ोतरी होती है वैसे ही बुद्धि का विकास भी होता जाता है। अगर देखा जाए तो बुद्धि और ज्ञान एक ही पदार्थ के दो हिस्से हैं।
जिस तरह से बुद्धि और ज्ञान एक ही है उसी तरह धर्म और ज्ञान भी एक ही पदार्थ के दो भाग है क्योंकि ज्ञान के बढ़ने से धर्म की बढ़ोतरी होती है। धर्म के ज्ञान में जितना भाग मिलता है तथा ज्ञान के अंतर्गत धर्म का जितना भाग पाया जाता है उसी के मुताबिक बुद्धि में स्थिरता पैदा होती है।
बुद्धि का संबंध जिस तरह से धर्म से है उसी तरह शरीर का अर्थ से संबंध है, मन का काम से संबंध है और आत्मा का मोक्ष का संबंध है। इन्ही अर्थ, धर्म, काम में मनुष्य के जीवन, रति, मान, ज्ञान, न्याय, स्वर्ग आदि की सारी इच्छाएं मौजूद रहती है। अर्थ यह है कि जीवन की इच्छा अर्थ में स्त्री, पुत्र आदि की, काम में यश, ज्ञान तथा न्याय की, धर्म और परलोक की इच्छा मोक्ष में समा जाती है।
इस प्रकार चारो पदार्थ एक-दूसरे के बिना बिना अधूरे से रह जाते हैं क्योंकि अर्थ- भोजन, कपड़ों के बगैर शरीर की कोई स्थिति नहीं हो सकती तथा संभोग के बगैर शरीर ही पैदा हो सकता है। शरीर के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता तथा मोक्ष की प्राप्ति के बगैर अर्थ और काम को सहयोग तथा मदद नहीं प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार से मोक्ष की दिल में सच्ची इच्छा रखकर ही काम और अर्थ का उपयोग करना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति मोक्ष की सच्ची इच्छा रखकर ही काम और अर्थ का उपयोग करता है तो वह व्यक्ति लालची और कामी माना जाता है। ऐसे व्यक्ति देश और समाज के दुश्मन होते हैं।
सिर्फ धर्म के द्वारा ही प्राप्त किए गए अर्थ और काम ही मोक्ष के सहायक माने जाते हैं। यह धर्म के विरुद्ध नहीं है। आर्य सभ्यता के मुताबिक धर्मपूर्वक अर्थ और काम को ग्रहण करके मोक्ष की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
आचार्य़ वात्स्यायन इस प्रकार कामसूत्र को शुरू करते हुए धर्म, अर्थ और काम की वंदना करते हैं। आचार्य वात्स्यायन का कामसूत्र वासनाओं को भड़काने के लिए नहीं है बल्कि जो लोग काम और मोक्ष को सहायक मानते है तथा धर्म के अनुसार स्त्री का उपभोग करते हैं, उन्ही के लिए है। नीचे दिए गए सूत्र द्वारा आचार्य वात्स्यायन में यही बताने की कोशिश की है।
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Old 11-11-2012, 02:00 PM   #6
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

श्लोक (3)- तत्समयावबोधकेभ्यश्चाचार्य़ेभ्यः।।

इसी वजह से धर्म,अर्थ और काम के मूलतत्व का बोध करने वाले आचार्यों को प्रणामकरताहूं।वह नमस्कार करने के काबिल है क्योंकि उन्होने अपने समय के देशकाल को ध्यान में रखते हुए धर्म, अर्थ और कामतत्व की व्याख्या कीहै।




Last edited by malethia; 11-11-2012 at 02:12 PM.
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Old 08-12-2012, 02:28 PM   #7
msk123456
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

nice book, thanks for posting.
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Old 08-12-2012, 11:09 PM   #8
Dark Saint Alaick
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

बेहतरीन सूत्र। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 10-12-2012, 04:35 PM   #9
malethia
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Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

श्लोक (15)
शास्त्रसंग्रहः। त्रिवर्गप्रतिपत्तिः। विद्यासमुद्देशः। नागरकवृत्तम्। नायकसहाय-दूतीकर्मविमर्शः। इति साधारणं प्रथमाधिकरणम् अध्यायाः पञ्ञ। प्रकरणानि पञ्ञ।।
कामसूत्र का अनुबंधन अधिकरण अध्याय और प्रकरण के रूप में किया गया है। पहले अधिकरण का नाम साधारण इस कारण से रखा गया है कि इस अधिकरण में ग्रंथातर्गत- सामान्य विषयों का परिचय है, किसी सिद्धान्त की व्याख्या अथवा तात्विक विवेचन नहीं किया गया है।
पहला प्रकरण, पहला अध्याय- शास्त्र-संग्रह। यहां पर शास्त्र-संग्रह का अर्थ है इस शास्त्र की सूची। ग्रंथ लिखने से पहले लेखक एक विषय सूची तैयार करता है और उसी सूची के द्वारा ग्रंथ की रचना करता है। इसी प्रकार आचार्य वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ की विषय सूची का नाम शास्त्र संग्रह रखा है अर्थात वह संग्रह जिससे यह ग्रंथ शासित हुआ है।
दूसरा प्रकरण, दूसरा अध्याय- त्रिवर्ग प्रतिपात्ति। काम, धर्म और अर्थ यह 3 त्रिवर्ग कहलाए जाते हैं। त्रिवर्ग की प्राप्ति का नाम प्रतिपात्ति है। इस अध्याय और प्रकरण में यह भी बताया गया है कि धर्म, अर्थ और काम को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा प्रकरण, तीसरा अध्याय- विद्यासमुद्देश। यहां पर सारी विद्याओं की नाम की सूची को विद्या समुद्देश का नाम दिया गया है। इस अध्याय का मुख्य मकसद है कि मानव को स्मृति, श्रुति, अर्थ विद्या और उसकी अंगभूत विद्या दंडनीति के अध्ययन के साथ कामसूत्र का अध्ययन जरूर करना चाहिए। यहां पर विद्याओं की नाम-सूची का अर्थ संभोग की 64 कलाओं से हैं।
चौथा प्राकरण चौथा अध्याय- नागरकवृत। नागरक से काम सूत्रकार का अर्थ विदग्ध अथवा रसिक व्यक्ति से होता है और वृत्त का अर्थ आचरण नहीं बल्कि दिनचर्या समझना चाहिए।
कामसूत्र के मुताबिक मनुष्य का सबसे पहले विद्या पढ़नी चाहिए, फिर अर्थोपार्जन करना चाहिए और इसके बाद विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश करके नागरक वृत्त का आचरण करना चाहिए। कोई भी मनुष्य जब तक कामकलाओं की शिक्षा प्राप्त नहीं कर लेता है तब तक उसको विवाह करने का कोई हक नहीं है। गृहस्थ जीवन को सही तरीके से चलाने के लिए अर्थ संग्रह जरूरी है। सुशिक्षित, धन-संपन्न मनुष्य ही अपने वैवाहिक जीवन को सही तरीके से चलाने में सक्षम हुआ करता है।
पांचवां प्रकरण, पांचवां अध्याय- नायक सहायदूती- कर्म- विमर्श। आचार्य वात्स्यायन के मतानुसार विवाह से पहले वर्ण धर्म के मुताबिक स्त्री और पुरुष का चुनाव करके प्रेम संबंध स्थापित करना चाहिए। अगर इस तरह के प्रेम संबंधों को स्थापित करने में किसी तरह की रुकावट आती है तो मदद के लिए स्त्री या पुरुष को जरिया बनाना चाहिए। स्त्री-पुरुष किस तरह के संबंध स्थापित करें, किस तरह के व्यक्ति को अपना जरिया बनाएं, इस अध्याय के अंतर्गत इन्ही बातों का उल्लेख किया गया है।
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Old 09-12-2012, 08:41 AM   #10
Shadow008
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Shadow008 will become famous soon enough
Default Re: वात्स्यायन का कामसूत्र

एक भी छायाचित्र नहीं है
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