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आज से ६०० वर्ष पूर्व १३९८ एडी मे कबीर दास का जन्म भारत में हुआ. कहा जाता है कि वो १२० वर्ष की उम्र में १५१८ में समाधिस्त हुये. यही भक्तीकाल का शुरुवाती समय माना गया है. व्यवसाय से जुलाहे होते हुये भी, जिस काम का उस वक्त मशीनीकरण नहीं हुआ था और बहुत मेहनत करना होती थी, कबीर दास जी ने चिट्ठाजगत के लिये इतने दोहे लिखे कि इससे हम सबको सबक लेना चाहिये जबकि हम तो दिन भर कम्प्यूटर पर कार्य करते है और कोई शारीरिक परिश्रम भी ज्यादा नहीं करते.
अब जब उस जमाने में कबीर दास ने अपने सारे दोहे हिन्दी चिट्ठाकारों के लिये लिखे, तो हिन्दी चिट्ठाकार तो रहे ही होंगे नहीं तो क्या उन्हें उस समय सपना आया था? इसका अर्थ यह हुआ कि भक्तिकाल में ही चिट्ठाकाल की भी शुरुवात हुई या उससे भी पहले. वो तो कतिपय चिट्ठा विरोधी ताकतों ने उन्हें सामाजिक कवि का दर्जा दे दिया कि सब समाज के लिये लिखा गया. सही कहा मगर चिट्ठा समाज के लिये कहते तो बिल्कुल सही होता.
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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#2 |
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अब इतने सारे दोहे चिट्ठाकारों की समझाइश के लिये लिख गये हैं कि सबकी व्याख्या करना तो यहाँ संभव नहीं है, उदाहरण के लिये ७ दोहों की व्याख्या कर दे रहा हूँ.
आग जो लगी समुंद्र में, धुआं न परगट होए सो जाने जो जरमुआ जाकी लागे होए. भावार्थ: जब किसी चिट्ठाकार का कम्प्यूटर या इंटरनेट कनेक्शन खराब हो जाता है तो उसके दिल में चिट्ठाजगत से दूर होने पर ऐसी विरह की आग लगती है कि धुँआ भी नहीं उठता. इस बात का दर्द सिर्फ़ वही जान सकता है जो इस तकलीफ से गुजर रहा हो. बाकी लोगों को तो समझ भी नहीं आता कि वो कितना परेशान होगा अपनी छ्पास पीड़ा की कब्जियत को लेकर.
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ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय
अपना तन शीतल करे, औरहु शीतल होय भावार्थ: जब भी कोई पोस्ट या टिप्पणी लिखो तो उसे रात में लिखकर रख लो, सुबह उठकर फिर पढ़ो कि कहीं भावावेश तो कुछ नहीं लिख गये और तब पोस्ट करो. इससे जहाँ दूसरों का सुख मिलेगा, आपको भी काफी शीतलता का अनुभव होगा. और चिट्ठा लेखन का उद्देश्य भी यही है.अन्यथा तो भडभडाहट वाली पोस्टों और टिप्पणियां ने किस किस तरह के तांडव नृत्य इसी चिट्ठाजगत में करवाये हैं.
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर भावार्थ: चिट्ठालेखन में कोई उम्र से छोटा बड़ा नही होता. उम्र भले ही ८० साल हो मगर यदि आप अच्छा नहीं लिखेंगे तो न तो कोई पढ़ेगा और न ही टिप्पणी मिलेंगी. तो आपका लिखना भी बेकार, आपका समय जो खराब हुआ सो तो हुआ ही (खैर जब ऐसा लिखोगे तो वो तो कौडी का नहीं होगा) और अगर किसी ने गल्ती से पढ़ लिया तो उसका समय और आपकी छ्बी भी खराब. अतः भले ही उम्र से कम और छोटे हो, मगर अगर अच्छा लिखोगे तो पूछे जाओगे. सिर्फ उम्र में बड़ा होने से कुछ नहीं होता है.
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बुरा जो देखण मै चला, बुरा न मिलया कोए
जो मन खोजा आपणा तो मुझसे बुरा न कोए भावार्थ:यह चिट्ठाजगत बहुत विशाल है. इसमें अगर खराब पोस्ट खोजने निकलोगे तो खोजते रह जाओगे और अंत में पाओगे कि सबसे खराब पोस्ट तो तुम्हारी स्वंय की है और तुम व्यर्थ ही यहां वहां टहलते रहे. बस अपने लिखन को चमकाओ और दूसरों की लेखनी में बुराईयां खोजने मत निकलो. जब तुम बहुत अच्छा लिखने लगोगे तो दूसरी तो उससे कम अच्छी अपने आप हो जायेंगी तो खोजने जाने की क्या जरुरत है.
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धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा, रितु आए फल होए भावार्थ: इन पंक्तियों मे कवि ने सभी चिट्ठाकारों से धीरज रखने की सलाह दी है. अगर आप किसी वरिष्ठ चिट्ठाकार की पोस्ट पर टिप्पणियां और वाह वाही देखकर अपनी पोस्ट को कमजोर समझें और मन उदास होने लगे कि मुझे क्यूँ नहीं इतनी वाह वाही. तो आपको धीरज धरने को कहा गया है. धीरे धीरे सब होगा, उन्होंने भी महिनों सालों मेहनत की है, कई सौ पोस्ट लिखी है, तब जा कर उनका वट वृक्ष टिप्पणी रुपी फल से लहरा रहा है. आपका भी मौसम आयेगा, फल मिलेगा, मगर सब धीरे धीरे होगा, धीरज धरो.
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काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होएगी, बहुरि करोगे कब. भावार्थ: यह खास तौर पर इन बातों को ध्यान मे रखकर लिखी गई है जैसे बिना बताये बिजली कई कई दिन तक गायब रहती है या इन्टरनेट कनेक्शन नहीं मिलता. कम्पयूटर सुधारक नहीं मिलते आदि आदि. तो अगर आज सब ठीक चल रहा है, तो आज ही लिखकर पोस्ट कर दो, कल पर मत टालो. क्या पता कल बिजली गायब रुपी, कनेक्शन गायब रुपी या कम्प्यूटर खराब रुपी परलय आ जाये, तो बस पोस्ट धरी की धरी रह जायेगी, फिर कब छापोगे क्या मालूम और रेटिंग से जाओगे, सो अलग.
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जय भाई, काफी पुरानी बात है, लेकिन जहां तक मुझे याद है, एक अन्य फोरम पर आपने एक सूत्र बनाया था, जिसमें हम भाषा की विसंगतियों पर चर्चा किया करते थे। मुझे याद है कि आपने उस सूत्र में कुछ अनुपम भाषिक प्रयोग प्रस्तुत किए थे और मैंने भी अपनी हाजिरी लगाई थी। आपसे अनुरोध है कि उस सूत्र को यहां पुनर्जीवित करें, मैं आपका तहे-दिल से साथ देने का वादा करता हूं। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#9 | |
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आपका बहुत बहुत अभिनन्दन है अलैक बन्धु व्यंग्य के इस बाजार (सूत्र) में। हाँ, मुझे ध्यान आ रहा है .. मैंने एक सूत्र बनाया था संदर्भित विषय पर ..... उस सूत्र में आपने एक विशिष्ट शब्द को लिखा था जो आपके नुक्कड़ के एक पानवाले बन्धु ने बोला था ... अभी वह शब्द मेरे मस्तिष्क पटल में उभर नहीं रहा है। .. खैर .. मैं शीघ्र ही इसी विषय में शोध (सामग्री एकत्र) करने के बाद सूत्र निर्मित करता हूँ। आप सहित सभी प्रबुद्ध जनों के स्वस्ति-वचनों का याची हूँ। धन्यवाद।
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