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#1 |
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आइए, नए शब्द बनाएं
मित्रो, मेरे शहर में कई मंत्रियों, आईएएस, आईपीएस से सुसज्जित एक प्रख्यात (पॉश) कॉलोनी के नुक्कड़ पर एक पान विक्रेता सज्जन थे। 'थे', इसलिए कि अब वे वहां नहीं हैं यानी उनकी अस्थाई दुकान जबरन उठा दी गई, अब मुझे पता नहीं कि वे कहां हैं और मैं उन्हें शिद्दत से ढूंढता फिरता हूं। मुझे कभी अंदाजा नहीं था कि उनके पान में जो खूबियां हैं, उससे कहीं ज्यादा उनके अंदाज़ की तासीर है। यह इल्म मुझे अचानक हुआ। एक दिन किस्मत से मैं उनकी दुकान पर सिगरेट खरीदने के लिए रुक गया और उससे भी ज्यादा मेरी खुशकिस्मती कहें या संयोग, कि मैंने एक सिगरेट वहीं निपटाने का इरादा भी किया। ज़ाहिर है, मैंने एक सिगरेट सुलगाई और कश लेते हुए इधर-उधर के नज़ारे करने लगा। तभी मेरा ध्यान उनकी बातचीत पर गया, जो वे दुकान पर खड़े एक अन्य सज्जन से कर रहे थे।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#2 |
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मुलाहिजा फरमाएं-
"हुजूर, हमने कहा न, आपका काम 'निश्चितली' (निश्चित ही/अवश्य) हो जाएगा।" दूसरी ओर से कुछ जुमले आए और वे फिर शुरू हुए, "अरे, आपको नहीं पता। वो तो इसे मांग रहा था। हमने साफ़ कह दिया, यह तो नहीं मिलेगा, यह 'भेंटेड' (भेंट किया हुआ) है।" ऐसा ही एक अनुपम शब्द-प्रयोग उन्होंने किसी अन्य ग्राहक को पान देते हुए किया; बोले, "हुजूर, हमारे पान में जैसी 'नेचुरलता' (प्राकृतिक प्रवृत्ति) है, वैसी आपको कहीं न मिलेगी।" यह मेरा दुर्भाग्य था (तब से मैं मोबाइल फोन बनाने वाले को कोस रहा हूं) कि एक अर्जेंट कॉल आने के कारण मुझे वहां से रवाना होना पड़ा और जब मैं एक बार फिर वहां जाने का मौक़ा तलाश कर पाया तब तक उस आधुनिक व्याकरणाचार्य को प्रशासन उजाड़ चुका था। मेरी दुआ है कि वे जहां भी होंगे, सकुशल और प्रसन्न तो होंगे ही, लगातार नए शब्द भी गढ़ रहे होंगे। आइए, उनकी याद में आज से हम भी ऐसे ही कुछ नए शब्द गढ़ना शुरू करें। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#3 |
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अलैक जी, आपके लेखों में कहीं कहीं "टाईटपन" रहता है और कहीं कहीं गज़ब की "मुलायामनेस" दिखती है। "एक्चुअलिटी"(actual reality) क्या है ... कोइ नहीं समझ पाया है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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#4 | |
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मैंने कहीं खुद ही लिखा है - मियां, अलैक का भेद है क्या कोई समझ न पाए घर से निकले सू-ए-चमन और सहरा को जाए। अब यह और बात है कि यह पंक्तियां भी मैंने खुद पर मुकम्मल तौर पर लागू होते देख जनाबे-आला इब्ने इंशा से उधार ले ली थीं। ![]()
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#5 | |
Exclusive Member
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#6 |
Administrator
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अलैक जी के बहुत सारे सुत्रस में और बढ़िया सूत्र।
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#7 |
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शायद ये बेस्टेस्ट है...!!!
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#8 |
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बडा ही बेनेफिटमंद सूत्र है..!!
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#9 |
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उम्देस्ट धागा...................
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#10 |
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उम्देस्ट धागा बोले तो बेहतरीनेस्ट..!!
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