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एक लव स्टोरी यह भी
खूबसूरत , चंचल , मधुर मुस्कान की स्वामिनी अंजू से मेरी तीसरी मुलाकात मुकेश मानव जी के द्वारा आयोजित ' प्रेम कविता महोत्सव' पर हुई,साथ में अंजू के पति विवेक भी थे, पति की उपस्थिति में अंजू ने जिस तरह थोडा शरमातें हुए अपनी प्रेम कविताएँ सुनाई, उससे उस महफिल में चार चाँद लग गये - जो महफ़िल सिर्फ प्रेम कविताओं के लिए ही सजाई गयी थी ! आयोजन से मैं अंजूके साथ ही वापस आई , प्रेम-कविताओं की बातें करते- करते अंजू और विवेक ने बताया की उनकी लव मैरिज हुई थी , इतना जानना था की फिर कब , कैसे , क्या हुआ , किसने किसको पहले प्रपोज़ किया ....ये सब जानने के लिए मैं उत्सुक हो गयी , विवेक तो थोडा शरमा रहे थे और सारी बातों को मजाक में ले रहेथे , उन्होंने मजाक करते हुए कहा, "मुझे नहीं मालूम था की इससे प्यार होने के बाद इसकी बोरिंग कविताओं को झेलना पडेगा," लेकिन अंजू ने गंभीरता से जो थोडा बहुत अपनी प्रेम कहानी के बारे में बताया वो कुछ इस तरह थी अंजू और विवेक एक ही कॉलेज में थे, अक्सर किसी न किसी बात को लेकर दोनों आपस में झगड़ते रहते थे. इसके बावजूद भी दोनों एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते थे , जो कभी कभी एक अच्छे दोस्त भी एक दूसरे के बारे में नहीं जानते.समय बीतता गया, करीब दो वर्ष बाद विवेक ने ये महसूस किया की उसे अंजू से प्यार है क्योकि कभी -कभी अंजू जब कॉलेज नहीं आती थी तो वो उसके बिना खुद को अकेला महसूस करता था | विवेक ने ही पहले अंजू को प्रपोज़ किया, कहीं न कहीं अंजू के दिल में भी विवेक के लिए प्यार था वो मन ही मन इस बात को स्वीकार कर चुकी थी, लेकिन विवेक से कह नहीं पाती थी.अंजू ने विवेक का प्रपोज़ल स्वीकार कर लिया लेकिन परिवार वालों की मर्ज़ी के बगैर वो शादी नहीं कर सकती थी और विवेक से प्यार की बात भी अपने परिवार के सामने रखने में वो हिचकिचा रही थी , अंजू की इस बात पर विवेक थोडा नाराज़ भी हुआ क्योकि विवेक अपने माता-पिता से अंजू के बारे में बात कर चुका था | दोनों ही अरेंज्ड मैरिज के पक्षधर थे और अपने संस्कारों के चलते परिवारवालों की रजामंदी के बगैर कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे | धीरे धीरे वक़्त गुजरता रहा, कॉलेज की पढाई ख़त्म करके दोनों अलग अलग जॉब करने लगे थे.कई बार दोनों ने यही सोचा की उन दोनों की शादी शायद संभव नहीं है लेकिन ईश्वर ने उन दोनों का गठबंधन तय कर रखा था. तभी तो कुछ वर्ष बाद जहाँ विवेक जॉब करता था वही अंजू की भी जॉब लगी और फिर एक बार दोनों का आमना -सामना हुआ , भूले तो वो कभी भी एक दूसरे को नहीं थे. एक बार फिर एक दूसरे को सामने पाकर मन में छुपी प्यार की भावनाएं एक बार फिर बाहर आ गयी | आखिर में विवेक ने ही हिम्मत करके अंजू के माता-पिता से अपनी शादी की बातचीत की , दोनों ब्राह्मण परिवार से थे , दिल्ली में ही पले बढे थे. इसलिए उनके माता पिता को भी उनकी शादी पर कोई आपत्ति नहीं हुई, सात साल के अफेयर के बाद दोनों की शादी खूब धूम -धाम से हुई, सबसे बड़ी बात की रिश्तेदारों और पड़ोसियों की निगाह में ये एक अरेंज्ड मैरिज ही थी | शादी के सोलह साल हो गये और दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं ! विवेक गाडी ड्राइव कर रहे थे और बगल में बैठी अंजू हंसती, मुस्कुराती हुई अपनी प्रेम कहानी मुझे सुना रही थी उसकी आँखों में आज भी विवेक के लिए वही प्रेम मुझे दिख रहा था जो कभी शादी के पहले हुआ करता होगा. (लेखिका: शोभा मिश्रा) |
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#2 |
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कम शब्दों में भावों से भरी हुयी प्रेम कथा को मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार रजनीश जी।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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#3 |
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#4 |
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भावनात्मक कथा....................सुन्दर..................... ..
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#5 |
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