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#1 |
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![]() तेरी हर अदा से छला जा रहा हूँ. आतिश-ए-दिल बुझा दो जला जा रहा हूँ. कि सहरा में तनहा चला जा रहा हूँ. मुझे और पीने दे पीने दे और, कि अपने तसव्वुर में जीने दे और. मुझे चाँद से ना सितारों से काम. मुझे गुलिसतां ना बहारों से काम. अगर हे तो तेरे इशारों से काम. यही बात सीने से निकलेगी और, कि अपने तसव्वुर में जीने दे और. मुझे तुमसे कोई भी शिकवा नहीं. रहे सामने इतना भी कम नहीं. अगर बात ना हो मुझे ग़म नहीं. रही कोई हसरत ना सीने में और, कि अपने तसव्वुर में जीने दे और. रहे दूर मुझसे तो ये भी कबूल. महकते रहेंगे सुर्ख यादों के फूल. हुयी जाने क्योंकर ये मीठी सी भूल, निगाहों से आज मुझे पीने दे और, कि अपने तसव्वुर में जीने दे और. Last edited by rajnish manga; 24-10-2014 at 11:22 AM. |
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#2 |
Super Moderator
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यह इश्किया कलाम नज़रों से गुजरा तो वाकई निगाहें गुलाबी हो गईं और दिल ... वह तो सीना फाड़ कर बाहर आने को बेताब हो गया। एक उम्दा गीत पढवाने के लिए शुक्रिया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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#3 |
Administrator
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रजनीश जी आपका ताज़ा कलाम पढ़ कर अच्छा लगा
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#4 | |
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बहूत खूबसूरत गजल धन्यवाद ![]() |
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#5 |
Super Moderator
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शुक्रिया, रफ़ीक जी. रचना पसंद करने के लिये बेहद मशकूर हूँ.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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