24-08-2013, 01:29 PM | #1 |
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गीत - जी लूँ जरा सा
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ मुझे लग रहा मैँ मनुज हूँ मरा सा तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा खोई खुशी फिर न ढूँढे मिली है झुलसी कली फिर न वापस खिली है किसी ने जलाया कि पौधा हरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा इस बेबसी पे हँसे ये जमाना सूझे नहीँ आज कोई ठिकाना बहुत काँपता है बदन ये डरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा कोई नहीँ हमसफर ना सहारा अपना बना कर सभी ने नकारा घड़ा मैँ कि हूँ एक घिन से भरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा... गीतकार - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 25-08-2013 at 03:54 AM. |
24-08-2013, 06:03 PM | #2 |
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Re: गीत - जी लूँ जरा सा
[QUOTE=आकाश महेशपुरी;355047]गीत- जी लूँ जरा सा
॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ ॰ मुझे लग रहा मैँ मनुज हूँ मरा सा तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा खोई खुशी आजतक ना मिली है ढूँढा कि छोड़ी न कोई गली है किसी ने जलाया कि पौधा हरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा इस बेबसी पे हँसे ये जमाना सूझे नहीँ आज कोई ठिकाना बहुत काँपता है बदन ये डरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा कोई नहीँ हमसफर ना सहारा अपना बना कर सभी ने नकारा घड़ा मैँ कि हूँ एक घिन से भरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा... गीतकार - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri एक निराश और हताश ह्रदय की अवस्था का वर्णन आपकी रचना में बहुत बारीकी से किया गया है, जो रचना के अंतिम बिंदु पर पहुँच कर आत्म-वितृष्णा से भर उठता है, किन्तु कहीं न कहीं उम्मीद की डोर भी पकड़े हुये है. बहुत सुन्दर गीत. |
25-08-2013, 02:42 AM | #3 |
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Re: गीत - जी लूँ जरा सा
आदरणीय रजनीश जी। आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है। आपने गीत के भाव को महसूस किया रचना धन्य हुई। हार्दिक आभार।
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25-08-2013, 09:44 AM | #4 |
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Re: गीत - जी लूँ जरा सा
कविता में अनपढ़ हूँ थोडा सा
इस रचना से कुछ सीख लूँ जरा सा |
19-09-2020, 04:12 PM | #5 |
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Re: गीत - जी लूँ जरा सा
आंशिक परिवर्तन के बाद
गीत – जी लूँ जरा सा ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ मुझे लग रहा मैँ मनुज हूँ मरा सा तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा खोई खुशी आजतक ना मिली है ढूँढा कि छोड़ी न कोई गली है किसी ने जलाया कि पौधा हरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा इस बेबसी पे हँसे ये जमाना सूझे नहीँ आज कोई ठिकाना बहुत काँपता है बदन ये डरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा कोई नहीँ हमसफर ना सहारा अपना बना कर सभी ने नकारा घड़ा मैँ कि हूँ एक दुख से भरा सा- तुझे देख लूँ आज जी लूँ जरा सा – आकाश महेशपुरी |
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