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************************************ मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... . तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,... तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये .. एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी, बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी.. ************************************* |
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#52 |
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सबमें ईश्वर है.सब उसी के अंश हैं.फ़िर घृणा क्यों और किससे?इसलिए दुनिया में अगर कुछ करनीय है तो वह है सिर्फ और सिर्फ प्रेम और कुछ भी नहीं.लेकिन ऐसा तभी संभव है जब कोई व्यक्ति ईश्वर में स्थित हो जाए.फ़िर तो जित देखूं तित तूं वाली अवस्था हो जाती है.ऐसा व्यक्ति किसी पर नाराज नहीं हो सकता,कुपित नहीं हो सकता,क्रोधित नहीं हो सकता.वह मन के हाथों बेमोल बिक चुका होता है;बाध्य हो जाता है.ऐसा व्यक्ति इस दुनिया में सिर्फ एक ही काम कर सकता है और वह है प्रेम.
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#53 |
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लेकिन यह सर्वसिद्ध है कि सभी मानवेंद्रियों में सबसे प्रभावकारी हैं नेत्र.हम जो देखते हैं उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते.इसलिए हम जब किसी को अनुचित कार्यों में एक बार लिप्त देखते हैं तो कुपित हो जाते हैं.बार-बार देखते हैं तब क्रोध स्थायी भाव ग्रहण करने लगता है और हम उससे घृणा करने लगते हैं.हम भूल जाते हैं कि जो हमें दिख रहा है वह माया है और हम जाने-अनजाने उसका शिकार बन चुके हैं.हम भूल जाते हैं कि यहाँ देखनेवाला भी ईश्वर है;दुष्कर्म करनेवाला भी ईश्वर,पीड़ित भी ईश्वर और घृणा करनेवाला भी ईश्वर.
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ऐसा नहीं है कि अगर कोई अनुचित कर्म करे तो उसे ईश्वरीय कृत्य मानकर क्षमा कर दिया जाए तो उचित होगा.मायावी संसार में व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरुरी है कि मायावी कानून बने और मायावी दंड भी दिए जाएँ.इस सम्बन्ध में एक कथा बड़ी सटीक और प्रासंगिक है.कथा प्रेममूर्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के मुखारविंद के निस्सृत है.एक दिन शिष्य को उसके गुरु ने बताया कि सभी जीवों में ईश्वर है इसलिए सबसे प्रेम करो,किसी से भी नहीं डरो.एक दिन शिष्य जब भिक्षाटन पर था तब किसी राजा का हाथी पगला गया.चौराहे पर भगदड़ मच गई.सब भागने लगे.लेकिन शिष्य नहीं भागा उसने सोंचा कि गुरूजी के अनुसार तो यह हाथी भी ईश्वर है इसलिए क्यों भागा जाए?लोग चिल्ला रहे थे उसे सचेत करने लिए कि भागो हाथी तुम्हें कुचल देगा.लेकिन वह नहीं भागा और खड़ा रहा.परिणामस्वरूप हाथी ने उसे घायल कर दिया.गुरूजी को मालूम हुआ तो राजकीय आरोग्यशाला में भागे-भागे आए और शिष्य से पूछा कि यह गजब हुआ कैसे?तो शिष्य ने कहा कि हाथी में जो ईश्वर था उसने मुझे घायल कर दिया.तब गुरूजी ने कहा कि मूर्ख,सिर्फ हाथी में ही ईश्वर था और तुम्हें जो लोग सचेत कर रहे थे उनमें ईश्वर नहीं था?
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#55 |
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प्रेम करना आसान नहीं है.आखिर यह सर्वोत्तम अनुभव मुफ्त में मिले भी तो कैसे?प्रेम में अपना सबकुछ पिघला देना पड़ता है.अपना व्यक्तित्व,अपनी सोंच,अपना अस्तित्व सबकुछ खाक कर देना होता है,तब जाकर मिलता है सच्चे प्रेम के बदले सच्चा प्रेम.कबीर कहते हैं कि प्रेम हाट में नहीं बिकता न ही बाड़ी में उपजता है.यह अनमोल फसल तो ह्रदय में उपजता है और ह्रदय में ही परिपक्व होता है और ह्रदय ही इसका रसास्वादन करता है.
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पुरुष और स्त्री दुनिया को चलानेवाले दो पहिए हैं.जबतक दोनों अलग-अलग हैं दुनिया की गाड़ी नहीं चल सकती,ठहर जाएगी;सबकुछ समाप्त हो जाएगा.सुनता हूँ कि सबके लिए कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई है जो तत्काल अज्ञात है,अनजाना है.लेकिन भविष्य में वही उसके लिए सबकुछ न सही बहुत-कुछ हो जाएगा;क्योंकि वही प्रेम का सबसे सघन साक्षात् प्रतिरूप बनकर उसके जीवन में आएगा.लेकिन क्या यह प्रेम सिर्फ सांसारिक प्रेम होगा,शारीरिक होगा या यह प्रेम ईश्वरीय प्रेम की ऊंचाइयों को भले ही प्राप्त कर न पाए उसके निकट पहुंचेगा.मैं आदर्शवादी हूँ.मुझे सपनों में जीने की आदत है.मैं रोज कल्पना करता हूँ कि मैं अपनी अर्द्धांगिनी से बेईन्तहा मुहब्बत करता हूँ और हमारे प्रेम ने ईश्के मजाजी से ईश्के हकीकी तक का सफ़र तय कर लिया है.हमारे प्रेम ने उन्हीं ऊंचाईयों को हासिल कर लिया है जो कभी उसने राम और सीता के मध्य प्राप्त की थी.लेकिन मैं नहीं जानता हूँ उसका रंग-रूप,नाम और पता.इस समय वह कहाँ है और क्या कर रही है सबकुछ अनिश्चित भविष्य की धुंध में है..मैं उसकी पुकार सुन रहा हूँ लेकिन जान नहीं रहा कि वह कौन है और कहाँ है.वह भी इसी तरह मेरे दिल की आवाज को कहीं गुमसुम बैठी सुन रही है और व्याकुल है आवाज के स्रोत को जानने के लिए.मगर कहाँ,रहस्य है और तब तक यह रहस्य बना रहेगा जब तक भविष्य वर्तमान नहीं बन जाता.
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