18-09-2011, 07:47 AM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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मन के औज़ार
कुछ अलग सोच ज़रा अमल में लाकर देखो ;
मन के औज़ार को हथियार बना कर देखो . जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ; उनकी मेहँदी में अपना खून मिला कर देखो . बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ; दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो . कुछ एक ढीठ हैं ऐसे , के जो साधे न सधें ; खुद को थोपो न उन पे , दिल में समा कर देखो . उम्र झगड़ों में गुज़र जाये , इससे बेहतर है ; थोड़े अधिकार को दूजे में बाट कर देखो . लाख दुश्मन हो , मगर जब बहुत बीमार पड़े ; तुम ऐन वक़्त उसे , उसके घर जाकर देखो . हर बड़े फैसले से पहले सबकी बात सुनो ; जिनसे मतभेद हैं उनको भी बुलाकर देखो . सामने वाला अगर आग - बबूला हो तो ; पलीता मौन का तुम उसके लगाकर देखो . रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया . |
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