06-10-2011, 11:04 AM | #12 |
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Re: कुंवर बेचैन की रचनाएँ
यह बात-बात पर झल्लाना
चिट्ठी है किसी दुखी मन की। यह थकी देह पर कर्मभार इसको खाँसी, उसको बुखार जितना वेतन, उतना उधार नन्हें-मुन्नों को गुस्से में हर बार, मारकार पछताना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। इतने धंधे। यह क्षीणकाय- ढोती ही रहती विवश हाय ख़ुद ही उलझन, खुद ही उपाय आने पर किसी अतिथि जन के दुख में भी सहसा हँस जाना चिट्ठी है किसी दुखी मन की।
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