11-11-2010, 04:06 PM | #1 |
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धार्मिक आरतियाँ
शनि भगवन की चालीसा ।। दोहा ।। जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।। जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।। जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।। चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।। परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।। कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ।। कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा ।। पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।। सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।। जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं ।। पर्वतहू तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत ।। राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों ।। बनहूं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई ।। लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा ।। रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।। दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ।। नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ।। हार नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।। भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।। विनय राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों ।। हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ।। तैसे नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ।। श्री शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई ।। तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।। पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ।। कौरव के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो ।। रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ।। शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई ।। वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना ।। जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी ।। गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ।। गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा ।। जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै ।। जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।। तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा ।। लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै ।। समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी ।। जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।। अदभुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।। जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।। पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।। कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।। ।। दोहा ।। पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार । करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।। Last edited by munneraja; 11-11-2010 at 05:48 PM. |
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