16-01-2012, 11:18 PM | #28 |
Diligent Member
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Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ
फिर तुम्हे याद किया
इश्क के फूल के पत्ते किताब में संभाले रखे हैं आज खोल के देखा तो पत्ते चूर चूर हो मेरे दामन में आ गिरे और पंखे की हवा से सारे कमरे में उड़ कर कमरे के कोने कोने में जा छुप बैठे फिर तुम्हे याद किया रात का अन्धेरा और गहरा हो गया चाँद भी बादलों के पीछे जा छिपा दिल की सूनसानी पूरे कमरे में फैल गयी बाहर गली में कुत्ते के रोने की आवाज़ …… क्या मोहब्बत सलामत तो है ? फिर तुम्हे याद किया जहाँ इश्क बहा करता था वहां शोक की नदी बहती है एक सपना जिसकी पूर्ती ना हो पायी हो मुझे लगा जैसे शून्य मेरे अन्दर फैल सा रहा है एक नासूर की तरह,इतना बढता हुआ के शायद तुम तक पहुँच जाए ? फिर तुम्हे याद किया कमरे के कोने में तुम्हारी किताब अभी भी सजी हुई रोज़ उसके पन्ने पलटती हूँ और वोह घड़ी जो तुम मेरे लिए तोहफा लाये थे अपनी टिक टिक कर रात भर मेरा साथ देती हैं जैसे उसको पता हो की तुम नहीं हो अब कभी नहीं हो |
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dushyant kumar, hindi poems, poems |
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