![]() |
#32 |
Diligent Member
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल ।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ॥ रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय । सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय ॥ रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय । ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय ॥ रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ |
![]() |
![]() |
Bookmarks |
|
|