18-04-2012, 08:37 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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जिसने ग़म को साध लिया
चितवन करती काम तमाम ;
क़ातिल बनता है अन्जान . जब से उनसे आँख लड़ीं ; कितना छोटा हुआ जहान . पत्थर में धड़कन ढूंढें ; उम्मीदें कितनी नादान . वो मेरे ख़ातिर क्या हैं ; उनको शायद नहीं गुमान . आँखों में वो कौंध उठें ; कानों में जब पड़े अजान . हुस्न हमेशा ईद मनाये ; आशिक की किस्मत रमजान . जिसने ग़म को साध लिया ; जग में पायी है पहचान . ज़ख्म सजाकर पेश किये ; ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2, गोमती नगर , लखनऊ . |
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