15-05-2012, 02:53 PM | #11 |
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Re: कुतुबनुमा
मीडिया की भूमिका पर उठते सवाल
मीडिया आजकल राजनीतिक रूप से चर्चा में है। मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। रविवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर में मीडिया से जुड़े दो बड़े कार्यक्रम हुए। एक कार्यक्रम नेशनल सैटेलाइट चैनल के शुभारंभ का था और दूसरा पत्रकारों के सम्मान का। सेटेलाइट टीवी के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्य अतिथि थे, जबकि पत्रकार सम्मान समारोह में देश के जाने-माने पत्रकार रामबहादुर राय। दोनों कार्यक्रमों में मीडिया की वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाते हुए चिंता जताई गई और जिम्मेदारियों की चर्चा गई। इसमें कोई दोराय नहीं कि टीवी चैनल पर प्रसारित और अखबारों में छपी खबरों को लोग सबसे ज्यादा तरजीह देते हैं। गांव-देहात सहित शहरों में भी छपी हुई खबरों को सबसे ज्यादा विश्वसनीय माना जाता है। गांव-ढाणियों में तो लोग इस बात पर अच्छी-खासी बहस भी करते हैं कि अखबार में छपी है, इसलिए यह बात गलत हो ही नहीं सकती। सच्चाई यह है कि मीडिया का व्यापारीकरण होता जा रहा है। इसके अलावा भी कई कारण हैं। इसलिए कई बार असावधानीवश या अन्य कारणों से अखबारों या टीवी चैनलों पर गलत खबरें भी आती हैं। टीवी चैनलों पर आजकल सबसे चर्चित शख्स निर्मल बाबा भी संकट में फंसे हुए हैं। वे फलां रंग के कपड़े पहनने, गोलगप्पे खाने, चैटिंग करने, फलां मंदिर में जाकर इतने रुपए का प्रसाद चढ़ाने के नुस्खे लोगों को बताते थे, अब उनके खिलाफ पुलिस जांच कर रही है। निर्मल बाबा के टीवी चैनलों पर छाए रहने का कारण पूरा व्यावसायिक है। अब बात करें पत्रकार सम्मान समारोह की। इसमें जाने-माने पत्रकार रामबहादुर राय ने मीडिया को आईना दिखाने में कसर नहीं छोड़ी। उनका कहना था कि आज की परिस्थितियों में मीडिया मोटा और रोगी हो गया है और इसका चरित्र बदल गया है। उन्होंने देश में चलने वाले 650 चैनल और प्रकाशित होने वाली बयासी हजार पत्र-पत्रिकाएं जो कुछ छपता और प्रसारित होता है, उस पर सवाल उठाए। राय का कहना था कि समय के साथ अखबार मुनाफाखोरी और सत्ता की बांह मरोड़ने वाला उपक्रम बन गए हैं। इतना ही नहीं, चुनाव के समय खबरों के बेचने-खरीदने के साथ अब तो सामान्यत: संस्थानों की खरीद हो रही है। उन्होंने मीडिया पर एकाधिकार करने वाले समूहों को लोकतंत्र का खतरा बताते हुए कहा कि ये देश के नीति निर्माताओं को दबाने के लिए किया जा रहा है। इन सब चर्चाओं का निष्कर्ष यही है कि मीडिया की विश्वसनीयता और चरित्र पर आज जो सवाल उठ रहे हैं, उस पर मीडिया संस्थानों और पत्रकार संगठनों को विचार करने की जरूरत है ताकि खबरों पर लोगों का विश्वास बना रहे।
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