09-06-2012, 08:09 PM | #10 |
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Re: श्रीयोगवशिष्ठ
खाना-पीना इत्यादि जो राजकुमारों की चेष्टायें हैं वह भी सब उनको बिसर गई हैं और मैं नहीं जानता कि उनको क्या दुःख हुआ । जैसे पीतवर्ण कमल होता है वैसे ही उनका मुख हो गया है । उनको युद्ध की सामर्थ्य कहाँ है? उन्होंने तो अपने स्थान से बाहर की पृथ्वी भी नहीं देखी है हमारे प्राण वहीं हैं उनके वियोग से हम नहीं जी सकते ।
इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यप्रकरणे दशरथाक्तिवर्णनन्नाम पञ्चमस्सर्गः ॥५॥ |
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