09-06-2012, 08:14 PM | #12 |
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Re: श्रीयोगवशिष्ठ
हम तुमको उसी पद में प्राप्त करेंगे जिसमे कदाचित दुःख न हो । जैसे आकाश को चूहा नहीं काट सकता वैसै ही तुमको कदाचित् पीड़ा होगी । हे रामजी! हम तुम्हारे सम्पूर्णदुःख नाश कर देंगे । तुम संशय मत करो जो कुछ तुम्हारा वृत्तान्त हो सो हमसे कहो । इतना कहकर वाल्मीकिजी बोले, हे भारद्वाज! जैसे मेघ को देखकर मोर प्रसन्न होता है वैसे ही विश्वामित्र के वचन सुनकर रामजी प्रसन्न हुए अपने हृदय में निश्चय किया कि अब मुझको अभीष्ट पद की प्राप्ति होगी ।
इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यप्रकरणे रामसमाजवर्णनोनाम षष्ठस्सर्गः ॥६॥ |
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