17-11-2010, 10:39 PM | #11 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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सोचा है जब भी मैंने, कि धनवान तू बने / शक दोस्त को खोने का मुझे, बारहा हुआ // मिलते हैं आज हाथ 'जय', सटते हैं जिस्म भी / लेकिन दिलों के बीच, बहुत फासला हुआ //
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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