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#1 |
Diligent Member
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ना कर बर्बाद मुझे ऐ हुस्न वाले .....
मैं तुझ में ही समाया हूँ , पीछा छुडाना है मुस्किल मैं तेरा ही साया हूँ ! गम जुदाई वाला ना सह पाउँगा .... अब तेरी यादों का ही रुलाया हूँ , ना मार ठोकरें ऐ साथी ...... रेत का इक घर मैं बसाया हूँ ! ना कुरेद अब जख्मों को मेरे ..... तुझे क्या मालूम इस दिल में दर्द कितना मैं दबाया हूँ , मैं कटी पतंग की भांति डोर खो कर तेरे शहर में जाने कहाँ से आया हूँ ! भूलकर जख्मों आज यु ही...... थोडा बहूत मुस्कराया हु मैं ना कर तू और सितम मुझपे ऐ '''नामदेव ''' चोट ज़माने से ही बहूत खाया हूँ लेखक सोमबीर नामदेव गाँव डाया जिला हिस्सार हरियाणा 125001 Last edited by sombirnaamdev; 29-08-2012 at 01:40 AM. |
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चोट ज़माने से ही |
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