21-11-2010, 09:35 PM | #11 |
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Re: रचनाएँ
साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय |
ज्यों मेहंदी के पात में, लाली रखी न जाए || संत पुरुष की आरती, संतो की ही देय | लखा जो चाहे अलख को, उन्ही में लाख ले देय || ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार | हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार || हरी संगत शीतल भया, मिटी मोह की ताप | निश्वास सुख निधि रहा, आन के प्रकटा आप || कबीर मन पंछी भय, वहे ते बाहर जाए | जो जैसी संगत करे, सो तैसा फल पाए || कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार | साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार || आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर | इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर || ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय | सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय || रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥ |
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कबीर के दोहे, रचनाएँ, hindi poems |
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