15-11-2012, 09:50 PM | #1 |
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मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
ब्लैक सेंट अलैक महोदयके द्वारा जारी किये गए सूत्र “राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार” में शेखावाटी क्षेत्र के ज़िक्र से प्रेरित हो कर ज़िंदगी का हिस्सा बन गए शहरों पर आधरित यह नया सूत्र आरंभ कर रहा हूँ.
सबसे पहले मेरा चयन “चूरू” नामक शहर है (जो राजस्थान के शेखावाटी अंचल का ही एक नगर है). देहरादून के डी.ए.वी. पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैं दिल्ली चला आया. यहाँ कुछ छोटे मोटे काम करने के बाद मेरी नियुक्ति एक बैंक में हो गयी. मैं बताना चाहता हूँ कि मुझे राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के अन्तर्गत चूरू नामक नगर में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जहाँ सन् १९७४ में एक बैंक कर्मचारी के रूप में मुझे दिल्ली से भेजा गया था. वहाँ मैं सन् १९८० तक अर्थात् छह वर्ष तक रहा. ये छह वर्ष आज भी मेरे दिल में किसी अमूल्य धरोहर की तरह सुरक्षित हैं. जिस शहर का नाम तक मैंने कभी न सुना था और न ही नक़्शे में उसका स्थान मालूम था वह मेरी आत्मा तक में इतना गहरा समा जाएगा कभी सोचा न था. वास्तव में मेरे जीवन का यह एक स्वर्ण युग था. प्रचलित धारणा के विपरीत वहाँ उन दिनों यथार्थ में घी दूध की नदियाँ बहती थीं (जो समय के अंतराल में लुप्त हो गयीं). इन्हीं छह वर्षों के दौरान ही मेरी शादी हुई और फिर वहीँ एकमात्र संतान प्राप्त हुई. वहीँ से पदोन्नत हो कर मैं श्रीनगर (जम्मू – कशमीर) चला गया लेकिन वहाँ के बारे में फिर बताऊंगा. चूरू अंचल के लोगों के मन प्यार से भरे होते हैं. चूरू ने मुझे कुछ ऐसे मित्र दिए जिनकी मित्रता पर मुझे आज भी गर्व है जैसे हरी भाई जी, नवनीत व्यास, ज़हूर अहमद गौरी तथा मेरे साहित्यिक मित्र हितेश व्यास (वर्तमान में कोटा नगर में हिंदी प्रोफेसर) और मंसूर अहमद ‘मंसूर’ (राजस्थान उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित शायर). रेत के टीलों और धोरों के अलावा वहाँ की भित्ति-चित्रों वाली विशाल आकार वाली पुरातन लेकिन उजाड़ हवेलियाँ जैसे साँस लेती हुई प्रतीत होती हैं, ऐसा लगता है जैसे तपस्या में निमग्न तपस्वी हों. वहाँ के तांगे, ऊँट गाड़ियां, गधा गाड़ियां (जिन्हें मिनिस्टर गाड़ी भी कहा जाता था), वहाँ की ढफ, भांग और सांग में भीगी होली, गोगो जी का मेला तथा अन्य बहुत से मेले ठेले भूले नहीं भूलते. इसके अलावा दोस्तों के साथ रेडियो पर तामीले इर्शाद सुनना और प्रतिदिन रात को खाना खाने के बाद रेत के टीलों में सैर करने जाना. धीरे धीरे वहाँ काफी बदलाव आ गए जैसे तांगे, ऊँट तथा गधा गाड़ियों का अंत और ऑटो रिक्शा का वर्चस्व. |
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