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Old 16-11-2012, 07:16 AM   #32
amol
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Default Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद

लव और कुश

जहां सीता जी निराश और शोक में डूबी हुई रो रही थीं, उसके थोड़ी ही दूर पर ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था। उस समय ऋषि सन्ध्या करने के लिए गंगा की ओर जाया करते थे ! आज भी वह जब नियमानुसार चले तो मार्ग में किसी स्त्री के सिसकने की आवाज कान में आयी! आश्चर्य हुआ कि इस समय कौन स्त्री रो रही है। समझे, शायद कोई लकड़ी बटोरने वाली औरत रास्ता भूल गयी हो! सिसकियों की आहट लेते हुए निकट आये तो देखा कि एक स्त्री बहुमूल्य कपड़े और आभूषण पहने अकेली रो रही है। पूछा—बेटी, तू कौन है और यहां बैठी क्यों रो रही है ?
सीता ऋषि वाल्मीकि को पहचानती थीं। उन्हें देखते ही उठकर उनके चरणों से लिपट गयीं और बोलीं—भगवन ! मैं अयोध्या की अभागिनी रानी सीता हूं। स्वामी ने बदनामी के डर से मुझे त्याग दिया है! लक्ष्मण मुझे यहां छोड़ गये हैं।
वाल्मीकि ने परेम से सीता को अपने पैरों से उठा लिया और बोले—बेटी, अपने को अभागिनी न कहो। तुम उस राजा की बेटी हो, जिसके उपदेश से हमने ज्ञान सीखा है। तुम्हारे पिता मेरे मित्र थे। जब तक मैं जीता हूं, यहां तुम्हें किसी बात का कष्ट न होगा। चलकर मेरे आश्रम में रहो। रामचन्द्र ने तुम्हारी पवित्रता पर विश्वास रखते हुए भी केवल बदनामी के डर से त्याग दिया, यह उनका अन्याय है। लेकिन इसका शोक न करो। सबसे सुखी वही आदमी है, जो सदैव परत्येक दशा में अपने कर्तव्य को पूरा करता रहे। यह बड़े सौंदर्य की जगह है यहां तुम्हारी तबीयत खुश होगी। ऋषियों की लड़कियों के साथ रहकर तुम अपने सब दुःख भूल जाओगी। राजमहल में तुम्हें वही चीजें मिल सकती थीं; जिनसे शरीर को आराम पहुंचता है, यहां तुम्हें वह चीजें मिलेंगी, जिनसे आत्मा को शान्ति और आराम पराप्त होता है उठो, मेरे साथ चलो। क्या ही अच्छा होता, यदि मुझे पहले मालूम हो जाता, तो तुम्हें इतना कष्ट न होता। सीता जी को ऋषि वाल्मीकि की इन बातों से बड़ा सन्टोष हुआ। उठकर उनके साथ उनकी कुटिया में आई। वहां और भी कई ऋषियों की कुटियां थीं। सीता उनकी स्त्रियों और लड़कियों के साथ रहने लगीं। इस परकार कई महीने के बाद उनके दो बच्चे पैदा हुए। ऋषि वाल्मीकि ने बड़े का नाम लव और छोटे का नाम कुश रखा। दोनों ही बच्चे रामचन्द्र से बहुत मिलते थे। जहीन और तेज इतने थे कि जो बात एक बार सुन लेते, सदैव के लिए हृदय पर अंकित हो जाती। वह अपनी भोलीभाली तोतली बातों से सीता को हर्षित किया करते थे। ऋषि वाल्मीकि दोनों बच्चों को बहुत प्यार करते थे। इन दोनों बच्चों के पालनेपोसने में सीता अपना शोक भूल गयीं।
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