01-12-2012, 07:43 PM | #31 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
वशिष्ठजी बोले, हे रामजी!जिनको दुःख सुख चलाते हैं और जो इन्द्रियों के इष्ट में सुखी और अनिष्ट में दुःखी होते हैं और रागद्वेष के अधीन बर्तते हैं उनको ऐसे जानो कि वे नष्ट हुए हैं | जिनका पुरुष प्रयत्न नष्ट हुआ है वे बारम्बार जन्म पावेंगे और जिनको सुख दुःख नहीं चलाते उनको अविनाशी जानो | वे जन्ममरण की फाँसी से मुक्त हुए हैं और उनको शास्त्र का उपदेश नहीं है | हे रामजी! रागद्वेष तब फुरता है जब मन में इच्छा होती है और इच्छा तब होती है जब संसार की सत्यता दृढ़ होती है जिसको असत्य जानता है उसको बुद्धि नहीं ग्रहण करती और इच्छा भी नहीं होती और जिसको सत्य जानता है उसमें बुद्धि दौड़ती है |हे रामजी! अज्ञानी को संसार सत्य भासता है इससे वह दुःख पाता है | जब वह शान्तपद का यत्न करे तब दुःख से मुक्त हो |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
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