02-12-2012, 09:41 PM | #11 |
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Re: छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानी
सूरत में लूट
इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में इजाफ़ा हुआ । 6 साल शास्ताखान ने अपनी १५०००० की फौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरंभ किया । सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था । शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ छः दिनों तक सूरत को के धनड्य व्यापारी को लूटा आम आदमी को नहीं लुटा और फिर लौट गए । इस घटना का जिक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है । उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अऩ्य एशियाई देशों में बस गये थे । नादिर शाह के भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी य़ूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी । सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया । और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई । राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया । इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा । जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुगलों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएंगे । इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी । बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे । इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे । शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी । बीजापुर के खिलाफ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे । |
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