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Old 26-11-2010, 05:17 PM   #9
amit_tiwari
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Default Re: हिन्दू धर्म - हज़ार करम ???

हिन्दू धर्म में देवता की संकल्पना का उद्भव : yah सबको पता है की कुछ सबसे प्राचीन मानव बस्तियों में उत्तर भारत की मानव बस्तियां भी थीं | इनके निकटस्थ पडोसी भी साइबेरिया में थे |
यह काल संभव है ५०००-४००० BC . इस समय परिवार का जन्म हो चुका था और परिवार अब पुरुषप्रधान होने लगे थे | यह एक कुछ दिन पूर्व हुआ बदलाव ही था | संपत्ति अभी भी सामूहिक होती थी और संपत्ति का अर्थ धन नहीं गाय (पशु ) था, yahi कारण है की गाँव ( आबादी के समूह का पहला स्तर ) को संस्कृत ( उस समय की भाषा) में इसे ग्राम कहा गया | सबसे रोचक बात पुनः यह की उस समय ग्राम स्थायी नहीं होते थे, अर्थात ये आज के जैसे गाँव नहीं अपितु कारवां होते थे | जब दो ग्राम ( अर्थात कारवाँ) चलते चलते एक दुसरे के पास आते थे तो उनमें एक दुसरे की गायें लेने के लिए झगडे होते थे | इसका प्रमाण??? संस्कृत का शब्द देखिये संग्राम अर्थात युद्ध !!!
लेकिन इसका देवताओं की sankalpana से क्या सम्बन्ध? सम्बन्ध है | मैं थोडा आप sabhi के मन में तब का चित्र खीचना चाहता हूँ, एक ऐसा काल जहां अपनी जमीन नहीं है, परिवार हैं किन्तु अभी उनमें स्थायित्व नहीं आया, मनोरंजन का साधन नहीं है |
rigved का तीसरा मंडल तब के बारे में जानकारी देता है की देवताओं के तीन समूह होते हैं | भूमि, आकाश, ध्योस | पहले और दुसरे के बारे में बताने की aavashyakta नहीं है किन्तु ये तीसरा समूह रोचक है | ध्योस का अर्थ होता है क्षितिज पर स्थित अर्थात जिनकी स्थिति स्पष्ट नहीं है | इस समय तक अग्नि,इंद्र,वरुण आकाशीय देवता थे और विष्णु ध्योस में स्थित हैं | इंद्र को पुंडरिक कहा गया है |जिसका शाब्दिक अर्थ है बादलों में रहने वाला | हम सभी जानते हैं की इंद्र बारिश के देवता मने जाते हैं ( याद करें कृष्ण और गिरिराज पर्वत कांड ) और अपने पशुओं के लिए चारा खोजते मनुष्यों के लिए बारिश का देवता ही सबसे महत्वपूर्ण होगा | करेक्ट ? जितनी वर्षा! उतना चारा, उतने ही अधिक पशु और अधिक पशु का अर्थ है अधिक धन या लक्ष्मी | कृषि भी होने लगी थी और कृषि भी वर्षा पर निर्भर करती थी जिस कारण इंद्र का बोलबाला बना रहा | ऋग्वेद इस समय इंद्र के बारे में दो बातें kai बार कहता है;
१- लक्ष्मी इंद्र की पत्नी है |
२- इंद्र ने उषा देवी का बलात्कार किया |
अब इस बलात्कार वाली बात का क्या अर्थ है ये मैं नहीं समझ पाया किन्तु लक्ष्मी इंद्र की पत्नी है ये पॉइंट नोट करने लायक है | जो बारिश दे सकता है वही धन ला सकता है |

१००० BC के आसपास व्यापार बढ़ने लगा था, और व्यापार वर्षा पर नहीं चतुराई और काफी हद तक युक्तियों पर निर्भर करता है जिसके देवता हैं विष्णु | नतीजा समुद्र मंथन, गिरिराज कांड और ऐसी ही काफी युक्तियों के बाद लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हो गयी | अब तक मानव सभ्यता बहुत अधिक विकसित हो गयी थी और पुराने सारे इतिहास को छिपाना अनिवार्य था | नतीजा विष्णु के काफी अवतार बताये गए उन्हें अच्छी तरह से स्थापित किया गया और रामायण अस्तित्व में आई | रामायण उस काल के लिए एक आदर्श था, रामायण में एक आदर्श राजा था जिसने अपने पिता के लिए वनवास झेला, एक आदर्श भाई था जो अपने भाई के साथ वन चला गया वो भी शादी के तुरंत बाद , एक आदर्श पत्नी थी जिसने अपने पति की हर बात मानी | ये ऐसे मूल्य थे जो उस समय के लोग चाहते थे जिस कारण से वो स्थापित हुए और लोगों से अपेक्षा की गयी की रोज इसे पढ़ें |

अभी तक जो भी मैंने लिखा वो सिर्फ ऋग्वेद के तथ्य हैं, अब इससे मेरा निष्कर्ष : प्राचीन पूर्वज बेहद तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, वो वैज्ञानिक थे, उन्होंने अपनी जरुरत देखि और उसको पूरा करने के उपाय निकाले | जब एक जरुरत समाप्त हो गयी तो उन्होंने उस उपाय को अगली जरुरत के अनुसार ढाल लिया |
यह प्रक्रिया संवत १००८ तक चलती रही | १००८ में सायण ने सरे धार्मिक साहित्य का संकलन करके उसे सम्पादित करके उस रूप में रखा जिसे आज हम बुक स्टालों पर रखा पाते हैं और जिसे हम वास्तव में धर्म समझ लेते हैं किन्तु यह हमारा सौभाग्य था की सायण के समय में पुरातत्व उतना विकसित नहीं था और अब १९६० के बाद हुए उत्खनन से हम पुराने वेदों और पुरानों के वास्तविक वर्जन पढ़ सकते हैं और उन्हें एक दुसरे से तुलना करके अपनी समझ बढ़ा सकते हैं |

अभी किसी ने दुसरे धर्मों में भी भेद होने की बात कही | सही है ये, उदाहरण के लिए बौद्ध और जैन धर्म ही ले लेते हैं | जैन धर्म में विभाजन का रोचक कारण है; प्राचीन काल में अकाल पड़ा और जैन भिक्षुओं का एक दल दक्षिण में चला गया | अब जो जैन यहाँ उत्तर में रह गए उन्होंने स्वाभाविक कारणवश अपने नियोम में शिथिलता बरती | अब अकाल में jaan भी बचानी थी | किन्तु जब दक्षिण के जैन अकाल के बाद वापस आये उन्होंने उन बिचारों का तिरस्कार किया और स्वयं को अलग कर लिया | किन्तु इसका भी घूम फिरकर यही अर्थ निकलता है की धर्म पत्थर पे खिची लकीर नहीं अपितु मानव आविष्कार है | हम आज टीवी फ्रिज ऐसी में रहते हैं किन्तु आविष्कारी नहीं हैं | हम उन आविष्कारों पे झगडा कर लेते हैं जिन्हें आधी चड्ढी पहनने वाले हमारे पूर्वज करके चले गए |

यदि अभी भी इस संकल्पना पर किसी को कोई शक हो तो शायद यह एक तथ्य कुछ सहायता करे ; आज हिन्दू समाज विशेस रूप से शादी योग्य कन्या की अनिवार्य शर्त कुंवारापन मानता है | प्रश्न ये नहीं है की ये सही है या नहीं | मेरा प्रश्न ये है की की ये परंपरा कब और किसने प्रारंभ की ! कोई अनुमान |

उत्तर है, किन्तु कुछ अनुमान आने देते हैं ...
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