04-01-2013, 12:27 PM | #32 |
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Re: लघु कथाएँ..........
व्यवस्था और कर्त्तव्य
एक राजा ने सुचारू रूप से राज्य संचालन के लिए कुछ नियम बनाए हुए थे, जिनका पालन सभी के लिए अनिवार्य था। उल्लंघन की दशा में दंड का प्रावधान भी था। इन्ही नियमों में से एक नियम यह था कि सूर्यास्त के बाद राजधानी का द्वार किसी के लिए भी नहीं खुलेगा। इसलिए राजमहल के लोग भी अपना कार्य समाप्त कर सूर्यास्त से पहले ही आ जाते थे। एक बार राजा किसी कारणवश पड़ोसी राजा के यहां गया और लौटते समय काफी देर हो गई। सूर्यास्त हो चुका था। जब राजा राजधानी के द्वार तक पहुंचा तो द्वार बंद हो चुका था। राजा के मंत्री ने संतरी को द्वार खोलने के लिए कहा। लेकिन संतरी बोला- मैं अपने राजा की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा। मंत्री के बार-बार आग्रह करने पर भी संतरी ने द्वार नहीं खोला। विवश होकर राजा और उसके साथ गए मंत्रियों को पास के किसी गांव में रात बितानी पड़ी। राजा ने सुबह संतरी को दरबार में बुलाया। सभी को लगा कि आज तो संतरी को फांसी की सजा सुनाई जाएगी। राजा ने संतरी से पूछा- तुमने रात को राजधानी का द्वार क्यों नहीं खोला? संतरी बिना डरे बोला- मैं तो आपके द्वारा बनाए गए नियम का पालन कर रहा था। मैं मानता हूं कि अपने कर्तव्य पालन में सदैव ईमानदारी और सजगता बरतनी चाहिए। मुझे इसके लिए जो भी दंड दिया जाएगा मैं स्वीकार करूंगा। राजा संतरी के पास आकर बोला- तुम दंड के नहीं, पुरस्कार के अधिकारी हो। कोई भी व्यवस्था तुम्हारे जैसे कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों से ही चलती है। |
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