18-01-2013, 08:49 AM | #1 |
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महादेवी वर्मा :: कविताएँ
मैं प्रिय पहचानी नहीं
पथ देख बिता दी रैन मैं प्रिय पहचानी नहीं ! तम ने धोया नभ-पंथ सुवासित हिमजल से; सूने आँगन में दीप जला दिये झिल-मिल से; आ प्रात बुझा गया कौन अपरिचित, जानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! धर कनक-थाल में मेघ सुनहला पाटल सा, कर बालारूण का कलश विहग-रव मंगल सा, आया प्रिय-पथ से प्रात- सुनायी कहानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! नव इन्द्रधनुष सा चीर महावर अंजन ले, अलि-गुंजित मीलित पंकज- -नूपुर रूनझुन ले, फिर आयी मनाने साँझ मैं बेसुध मानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! इन श्वासों का इतिहास आँकते युग बीते; रोमों में भर भर पुलक लौटते पल रीते; यह ढुलक रही है याद नयन से पानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! अलि कुहरा सा नभ विश्व मिटे बुद्*बुद्***-जल सा; यह दुख का राज्य अनन्त रहेगा निश्चल सा; हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि पथ की निशानी नहीं ! मैं प्रिय पहचानी नहीं ! |
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