![]() |
#34 |
Super Moderator
![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241 ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() ![]() |
![]()
गज़ल
(शायर: अकबर इलाहाबादी) हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं मा रा, चोरी तो न हीं की है ना तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये हैं बा तें इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है इस मय से नहीं मतलब, दिल जिससे है बेगाना मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिचती है सूरज में लगे धब्बा, फितरत के करिश्मे हैं बुत हमसे कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है. (वाइज़ = धर्म उपदेशक) ***** |
![]() |
![]() |
Bookmarks |
|
|