01-02-2013, 08:38 AM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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इश्क़ में रीढ़ जो हटा देते
आप जब बे नक़ाब होते हैं ; तो बहुत ला जवाब होते हैं .
चाँद शरमा के मुँह चुरा लेता ; बादलों के नक़ाब होते हैं . आप जब शब गुज़ारें संग मेरे ; गाल खिल के गुलाब होते हैं . जब तलक़ आप मेहरबाँ रहते ; तब तलक़ हम नवाब होते हैं . छाँव गेसू की दग़ा देती है ; जब मुक़द्दर ख़राब होते हैं . कभी ख़ुशियाँ तो कभी ग़म मिलते ; इश्क़ में इन्कलाब होते हैं . इश्क़ की राह में ख़ुशियाँ कम हैं ; ग़म मग़र बे हिसाब होते हैं . इश्क़ दम तोड़ता है राहों में ; ये ही लब्बो लुआब होते हैं . इश्क़ लम्बा नहीं चलता उनमें ; जो भी हाज़िर जवाब होते हैं . इश्क़ में रीढ़ जो हटा देते ; बस वही क़ामयाब होते हैं . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . ( शब्दार्थ ~ शब = रात , गेसू = केश , इन्कलाब = सम्पूर्ण परिवर्तन , लब्बो लुआब = निष्कर्ष / नतीजे )
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