31-03-2013, 08:35 PM | #1 |
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मेरे पापा - आत्मकथा या कहानी
अंतरजाल से प्राप्त एक कहानी प्रस्तुत है। इस आत्मकथ्यात्मक कहानी के सभी चरित्र आपको चिरपरिचित महसूस होंगे और मेरा विश्वास है कि इस कथा को पढ़ते पढ़ते कई बार तो आप स्वयं को इस कथा के मुख्य चरित्र के रूप में पायेंगे। यद्यपि कथानक आज से 50-60 वर्ष पुराना अवश्य है किन्तु आपको बांधे रखने में पूर्ण सक्षम है। कथा के मौलिक लेखक/लेखिका को मेरा शत शत नमन एवं धन्यवाद।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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