09-12-2010, 09:33 PM | #21 |
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Re: सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड श्लोक(श्रीरामचर
दो.-तब मुनि कहेउ सुमंत्र सन सुनत चलेउ हरषाइ।
रथ अनेक बहु बाजि गज तुरत सँवारे जाइ।।10क।। तब मुनिने सुमन्त्र जी से कहा, वे सुनते ही हर्षित हो चले। उन्होंने तुरंत ही जाकर अनेकों रथ, घोड़े औऱ हाथी सजाये; ।।10(क)।। जहँ तहँ धावन पठइ पुनि मंगल द्रब्य मगाइ। हरष समेत बसिष्ट पद पुनि सिरु नायउ आइ।।10ख।। और तहाँ-तहाँ [सूचना देनेवाले] दूतों को भेजकर मांगलिक वस्तुएँ मँगाकर फिर हर्षके साथ आकर वसिष्ठ जी के चरणों में सिर नवाया।।10(ख)।। |
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