10-12-2010, 08:43 AM | #33 |
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Re: तेनाली राम की कहानियॉ
व्यापारी ने कहा। ‘तुम्हें तुम्हारी चोटी का मुँहमाँगा दाम दिया जाएगा।’ तेनालीराम ने कहा। ‘सब आपकी कृपा है लेकिन…।’व्यापारी ने कहा। ‘क्या कहना चाहते हो तुम।’-तेनालीराम ने पूछा। ‘जी बात यह है कि जब मैंने अपनी बेटी का विवाह किया था, तो अपनी चोटी की लाज रखने के लिए मैंने पूरी पाँच हजार स्वर्णमुद्राएँ खर्च की थीं। पिछले साल मेरे पिता की मौत हुई। तब भी इसी कारण पाँच हजार स्वर्णमुद्राओं का खर्च हुआ और अपनी इसी प्यारी-दुलारी चोटी के कारण बाजार से कम-से-कम पाँच हजार स्वर्णमुद्राओं का उधार मिल जाता है।’ अपनी चोटी पर हाथ फेरते हुए व्यापारी ने कहा।
‘इस तरह तुम्हारी चोटी का मूल्य पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ हुआ। ठीक है,यह मूल्य तुम्हें दे दिया जाएगा।’ पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ व्यापारी को दे दी गईं। व्यापारी चोटी मुँड़वाने बैठा। जैसे ही नाई ने चोटी पर उस्तरा रखा,व्यापारी कड़ककर बोला, ‘सँभलकर, नाई के बच्चे। जानता नहीं, यह महाराज कृष्णदेव राय की चोटी है।’ राजा ने सुना तो आगबबूला हो गया। इस व्यापारी की यह मजाल कि हमारा अपमान करे? उन्होंने कहा, ‘धक्के मारकर निकाल दो इस सिरफिरे को।’ व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राओं की थैली को लेकर वहाँ से भाग निकला। कुछ देर बाद तेनालीराम ने कहा, ‘आपने देखा महाराज, राजगुरु ने तो पाँच स्वर्णमुद्राएँ लेकर अपनी चोटी मुँड़वा ली। व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्णमुद्राएँ भी ले गया और चोटी भी बचा ली। आप ही कहिए, ब्राह्मण सयाना हुआ कि व्यापारी?’राजा ने कहा, ‘सचमुच तुम्हारी बात ठीक निकली।’
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