10-06-2013, 12:36 AM | #11 |
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Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
पौराणिक आख्यान / मिस्र
मृत्यु के देवता ओसिरिस का अंत मिस्र देश की पुरानी सभ्यता में मूर्ति पूजा को व्यापक मान्यता प्राप्त थी और देवी देवताओं के अनन्य रूप देखने को मिलते थे. वहां के पौराणिक आख्यानों के अनुसार सूर्य देवता ‘रा’ मिस्र के देवताओं का प्रमुख था अर्थात वह देवाधिदेव था. उसी ने स्वयं को बनाया और फिर सारी सृष्टि की रचना की. प्राचीन मिस्री साहित्य में ‘रा’ की महिमा तो सर्वव्यापक है ही, किन्तु देवताओं में ओरिसिस का वर्णन भी कम रोमांचक और लोमहर्षक नहीं है. ओसिरिस मृत्यु का देवता है. मृत्यु के बाद जीवन की अभिकल्पना जितनी गहराई से वहा की आस्था और विश्वासों से जुडी हुई है उसे देखते हए ओरिसिस को दिये गये विशेष महत्त्व तथा स्थान को समझना सरल हो जाता है. माना जाता था कि मरने के बाद राजा परलोक में प्रवेश कर जाता था. वह स्वयं ओरिसिस बन जाता था और मृत्यु के बाद हर व्यक्ति के पाप-पुण्य का विचार करता था. ओसिरिस के सम्बन्ध में मिस्र में एक मिथक बहुत प्रसिद्ध है. एक बार ‘रा’ को मालूम हुआ कि देवलोक के दो देवता जिनका नाम नुत्र और गेब था एक-दूसरे से प्यार करते हैं. ‘रा’ को क्रोध आ गया. उसने क्रोध में नुत्र को शाप दिया कि वह वर्ष के किसी भी दिन संतान को जन्म नहीं दी सकेगी. अब क्या किया जा सकता था. इस गंभीर समस्या से निपटने का एक रास्ता थोत नामक देवता ने निकाल लिया. उसने हर रोज थोड़ा थोड़ा समय चुराना शुरू कर दिया. इस चुराए हए समय से उसने अतिरिक्त पांच दिनों का निर्माण कर लिया. इन्हीं अतिरिक्त दिनों में नुत्र ने बच्चों को जन्म दिया. ये बच्चे थे – ओसिरिस, होरस, सेत, आइसिस और नेप्थे. मिस्र देश के प्राचीन निवासी वर्ष के अंतिम पांच दिनों को इन्हीं के नामों से पहचानते थे. नेप्थे और सेत का विवाह हो गया. ओसिरिस और आइसिस भी विवाह के बंधन में बांध गये. बाद में ओसिरिस मिस्रियों का राजा बना. धीरे धीरे उसे देवताओं में भी महत्वपूर्ण स्थान मिल गया. सेत ओसिरिस से ईर्ष्या करता था. अतः वह ओसिरिस को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगा. एक बार सेत मिस्र से बाहर दूसरे देश गया. उसने इस बीच एक ऐसा खूबसूरत ताबूत बनवाया जो ओसिरिस के शरीर के नाप से मेल खाता था. जब ओसिरिस वापिस आया तो सेत ने उसे दावत पर बुलाया. जब वह आया तो उसने उपस्थित मेहमानों से मुस्कुरा कर कहा कि आज हम एक खेल खेलते हैं. मुझे यह संदूक भेंट में मिला है. हम बारी बारी से इस संदूक में लेट कर देखते हैं. यह संदूक जिस किसी के नाप के अनुसार पाया जाएगा, संदूक उसी का हो जाएगा. एक एक कर मेहमान उसमे लेटते और उठ कर बाहर आ जाते. अब ओसिरिस की बारी थी. वह अचकचाया लेकिन हार कर उसे भी संदूक में लेटना पड़ा. संदूक तो बना ही उसके नाप का था, अतः वह उसमें ठीक से समा गया. सेत तो इसी घड़ी का इंतज़ार कर रहा था. बिना कोई समय गँवाए, उसने उसका ढक्कन बंद कर दिया और उसके छेदों से पिघला हुआ सीसा डाल दिया. फिर उसने अपने आदमियों को आदेश दिया कि इस ताबूत को नदी में जा कर वहां फेंक दो जहा पानी बहुत अधिक हो. ऐसा ही किया गया. ताबूत बहता हुआ लेबनान के समुद्र तट पर एक जगह किनारे आ लगा. वहां एक विशाल पेड़ उग आया. इस बीच उसकी पत्नि आइसिस को सारे घटनाक्रम का पता चला. उसे यह भी मालूम हुआ कि और वह उसे ढूंढते ढूंढते लेबनान के नगर बिल्बास पहुँच गई. बिल्बास के राजा ने एक दिन उस वृक्ष को देखा तो उसे काटने का आदेश दिया. वह चाहता था कि इस पेड़ के विशाल तने को काट कर महल में लगाया जाये. आइसिस ने महल में अपनी सेवा से सभी को प्रसन्न किया. बाद में उसने अपनी पहचान बतायी. वहां का राजा उसकी कहानी सुन कर बहुत द्रवित हुआ. बड़े वृक्ष की उस बल्ली में से आइसिस ने ओसिरिस का ताबूत निकलवाया. राजा ने ओसिरिस के सम्मान में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया. (एक प्रसंग यह भी है कि सेत ने ताबूत को चोरी कर के ओसिरिस के मृत शरीर के टुकड़े किये और मिस्र के अलग स्थानों पर फिंकवा दिये जिन्हें आइसिस ने अपने वफादारों की सहायता से ढुंढवाया और अंतिम संस्कार करवाया) ** |
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