21-06-2013, 04:37 PM | #1 |
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कहानी / रिश्ता
कहानी / रिश्ता
(लेखक: जयप्रकाश मानस) अंतर-जाल से क्या दोस्ती की चरम परिणति विवाह ही है ? अचानक यह प्रश्न एम.ए. फाइनल की क्लास में जब एक छात्रा ने शोखी से उछाला तो विभा ठिठक गई । एक पल के लिए उसे लगा कि यह प्रश्न समाजशास्त्र की शिक्षिका से नहीं वरन् डॉक्टर विभा भास्कर राव से किया गया एक व्यक्तिगत प्रश्न है। उस समय तो उसने यह कहकर कि ‘यह कोई गणित की क्लास नहीं जिसमें एक प्रश्न को हल करने का एक ही सर्वमान्य तरीका एवं निश्चित उत्तर होता है। यहाँ प्रश्न-उत्तरदेश-काल, समाज अथवा परिस्थितियों से प्रभावित होते रहते हैं जिन्हें केवल ‘हाँ’या ‘ना’के द्वारा चिन्हित नहीं किया जा सकता’, टाल दिया, लेकिन प्रश्न ने अचानक उसे 25 वर्ष पीछे ढकेल दिया । कॉलेज के अंतिम चरण में जब उसने भास्कर के साथ यह तय पाया कि ‘अंतरजातीय’ होने के कारण उनके विवाह में दोनों परिवारों की सहमति असंभव है और कोर्ट मैरिज के अलावा कोई चारा नहीं, तो इसकी प्रथम घोषणा उसने अपनी सबसे अंतरंग रहेली, नीता से की थी। तब नीता ने कुछ ऐसा ही प्रश्न किया था, ‘तुम लोग अपने परिवार की अपेक्षाओं के विरूद्ध जो निर्णय ले रहे हो यही तुम्हारे संबंधों का अंतिम विकल्प है ? क्या दोस्ती के दायरे में रहकर तुम लोग नहीं जी सकते ? तुम लोग अपने माँ-बाप को तो संकीर्ण विचारों वाला कहते हो पर क्या वे तुम पर खुदगर्ज या स्वार्थी होने का आरोप नहीं लगा सकते ?’ इस पर उसने नीता को खूब खरी-खोटी सुनाई थी और यह कहकर कि ‘नसीहत देने के लिए एक तू ही तो बची थी’, उसने वर्षों उससे बोलचाल तक बंद कर दी थी । परिवारों के विरोध को दीकयानूसी करार देते हुए, जीवन को अपने ढंग से जीने का दृष्टिकोण विभा एवं भास्कर को अविवेकपूर्ण नहीं लगा था और न ही उन्हें कभी अपने निर्णय पर पछतावा ही हुआ । हाँ, यह बात अलग है कि विवाह के बाद वे दोनों अपने परिवारों से पूरी तरह कट गए थे। पति, पैसा व प्रतिष्ठा के मामले में विभा खुद को न केवल भाग्यशाली मानती थी, वरन् उसे इस बात का गर्व भी था कि इन सब के लिए उसने कभी कोई समझौता नहीं किया । हाँ, जीवन में कुछ पल ऐसे अवश्य आए जब उसे लगा कि ‘सुख का कोई भी शिखर अभेद्य नहीं है।’ विवाह के बाद विभा को उस शहर में रहना अखरने लगा था। खास कर ऐसे मौकों पर तो वह बिल्कुल असहज हो जाती थी जब उन दोनों को साथ देखकर परिचितों की निगाहें आपस में कुछ अजीब सा संप्रेषण करती। अतः अवसर मिलते ही अपनी पोस्टिंग एक तराई वाले इलाके में करा ली जहाँ आमतौर से लोग जाने में कतराते थे। |
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