09-08-2013, 06:55 PM | #31 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: डायरी के पन्ने और तुम ......
मेरा और मेरे दोस्त का टिकट आखिरी वक़्त तक कन्फर्म नहीं हुआ था...दीदी ने हमें अपने बर्थ के पास ही आ जाने के लिए कहा.हम उन दोनों के बर्थ के पास आकर बैठ गए..दीदी के कॉलेज के किस्से जो वेटिंग रूम में अधूरे रह गए थे वो उन्हें पूरा करने लगीं...और हम तीनों उनके कॉलेज के दिनों की यादों को बड़े चाव से सुन रहे थें.दीदी बहुत देर तक जाग नहीं सकीं और वो सोने चली गयीं.मेरे दोस्त को इतनी तेज़ नींद आ रही थी की वो दीदी की बातों के बीच में ही बैठे बैठे एक कोने में सो गया था.सिर्फ हम दोनों जाग रहे थे.उसने मुझे कैफे में ही कह दिया था..."आज तुम ट्रेन में सो मत जाना..हम पूरी रात बातें करेंगे".
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
Bookmarks |
|
|