28-12-2010, 12:07 PM | #1 |
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अघोषित आलसी का इकबालनामा
उफ़ कहाँ से शुरू करूँ........ सर्दी बहुत थी, आलस का समय....... रजाई से बहुत ज्यादा प्रेम....... घर में ही बैठकर कोहरे के बारे में सोचना...... गाँव में सरसों बढ़ रही है......... पाणी लग रहा होगा..... बाजरे की रोटी ... सरसों के साग के साथ साथ गुड या फिर लहसुन की चटनी और बथुए का रायता... सब कुछ रजाई में बैठ कर ही याद आता है.... आलसपन ही हद........ १०० किलोमीटर दूर गाँव जाने से भी कतरा रहा हूँ........ ऊपर से मेरी जोगन (श्रीमती) को भी सुनाम-पंजाब जाना है – उसकी तयारी अलग से – कब छोड़ने जायूँगा..... कुछ पक्का नहीं है........
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