28-12-2010, 12:24 PM | #21 |
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Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
उधर उस मरघट में
उठती लपटें भी सकूं देती है चलो, अच्छा ही हुआ, एक व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंचा... तमाम चिंताएं, दुश्वारियां अग्नि के हवाले कर. वो निश्चित होकर चल दिया... और, सब कुछ धुंए में उड़ जाता है. |
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