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भाग 1
तृप्ता चौंक के जागी, लिहाफ़ को सँवारा लाल लज्जा-सा आँचल कन्धे पर ओढ़ा अपने मर्द की तरफ़ देखा फिर सफ़ेद बिछौने की सिलवट की तरह झिझकी और कहने लगी : आज माघ की रात मैंने नदी में पैर डाला |
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