गुल फेंके है औरों की तरफ बल्कि समर भी
ऐ खाना बर अन्दाज़े चमन कुछ तो इधर भी
किशोर: भीगी भीगी रातों में, मीठी मीठी बातों में ऐसी बरसातो में, कैसा लगता है? लता: (ऐसा लगता है तुम बनके बादल, मेरे बदन को भिगोके मुझे, छेड़ रहे हो ओ छेड़ रहे हो ) \- २ लता: (अम्बर खेले होली उई माँ भीगी मोरी चोली, हमजोली, हमजोली ) \- २ ओ, पानी के इस रेले में सावन के इस मेले में छत पे अकेले में कैसा लगता है किशोर: ऐसा लगता है तू बनके घटा अपने सजन को भिगोके खेल खेल रही हो ओ खेल रही हो लता: ऐसा लगता है तुम बनके बादल मेरे बदन को भिगोके मुझे छेड़ रहे हो हो. छेड़ रहे हो किशोर: (बरखा से बचा लूँ तुझे सीने से लगा लूँ आ छुपा लूं आ छूपा लूँ ) \- २ दिल ने पुकारा देखो रुत का इशारा देखो उफ़ ये नज़ारा देखो कैसा लगता है, बोलो? लता: ऐसा लगता है कुछ हो जायेगा मस्त पवन के ये झोकें सैंया देख रहे हो ओ देख रहे हो ऐसा लगता है तुम बनके बादल मेरे बदन को भिगोके मुझे छेड़ रहे हो हो छेड़ रहे हो